कोविड महामारी हाहाकार के दौरान हमने देखा कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था, खासकर ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त है. सरकार मेडिकल कॉलेजों और कुछेक डेडिकेटेड कोविड अस्पतालों के जरिए महामारी का मुकाबला करना चाह रही थी. हमने हमेशा इसका विरोध किया. हमारा साफ मानना था कि ग्रामीण इलाके की प्राइमरी और सेकेन्डरी स्वास्थ्य व्यवस्था को कारगर बनाए बगैर महामारी का मुकाबला संभव नहीं है. सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था, खासकर ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था के पुनर्जीवन के लिए बड़े आंदोलन के उद्देश्य से हमने अस्पतालाें का एक प्राथमिक सर्वे किया. सर्वे के निष्कर्ष चौंकानेवाले थे.

11 जिलों के 548 स्वास्थ्य उपकेंद्रों (हेल्थ सब सेन्टर - HSC), 85 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (एडिशनल प्राइमरी हेल्थ सेन्टर - APHC), 44 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (प्राइमरी हेल्थ सेन्टर - PHC), 21 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (कम्युनिटी हेल्थ सेन्टर - CHC), 9 रेफरल अस्पतालों, 5 अनुमंडल अस्पतालों, 3 सदर अस्पतालों की जांच रिपोर्ट हम संग्रहित कर सके हैं. राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल, जिरादेई, सिवान और दरभंगा मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल की भी प्राथमिक रिपोर्ट हम प्राप्त कर सके हैं. (देखें, परिशिष्ट-2, पेज नं-40).

स्वास्थ्य उपकेन्द्रः यह स्वास्थ्य व्यवस्था की पहली सीढ़ी है. जांच के दौरान हमने सबसे बदहाल स्थिति इसकी देखी. 80-90 दशक में कार्यरत आम तौर पर सभी केन्द्र आज निष्क्रिय व नाकारगर हो चुके हैं. कुल 584 केन्द्रों में सिर्फ अरवल जिला के कलेर प्रखंड के कोइल भूपत, अगानूर, सकरी खुर्द और उसरी में नर्स नियमित आती हैं. स्वास्थ्य उपकेन्द्रों का छोटा हिस्सा सरकारी भवन में है और बड़ा हिस्सा किराए के निजी भवनों में है. सरकारी भवनों का बहुत बड़ा हिस्सा जर्जर हो चुका है. लोग इसमें भूसा, जलावन या गोबर.गोइठा रखते हैं. इमामगंज (करपी, अरवल), कौरी (पालीगंज, पटना), कनपा (बिक्रम, पटना) सहित दरभंगा के अनेक केन्द्रों में भूसा रखा हुआ है और वे जर्जर हो चुके हैं. सिकरिया (पालीगंज, पटना) के ढहे हुए केन्द्र को दबंगों ने, तो हुलासी टोला (मनेर, पटना) के केन्द्र पर पूर्व विधायक के भाई ने कब्जा कर रखा है. यही हालत परेव (बिहटा, पटना) केन्द्र की है. लई (पटना) के केन्द्र में जानवर बांधा जाता है. सियारामपुर (पालीगंज, पटना) में भवन के अभाव में नर्स स्थानीय दबंग के दालान पर बैठा करती हैं. लेकिन किसी गरीब की हिम्मत कहां है कि उनके दरवाजे पर बैठकर इलाज करवाए! रोहतास जिला में कागज पर केन्द्र चलते हैं. हद तो तब हो गई जब गोरैया खांड़ी (धनरुआ, पटना) और बेर्रा, तिनेरी, इन्दो (सभी मसौढ़ी, पटना) में जब हमारे साथी केंद्र का सर्वे करने पहुंचे, तो जनता ने आश्चर्य व्यक्त किया कि उन्हें नहीं पता कि यहां कोई अस्पताल चलता है! मतलब कागज पर अस्पताल चल रहा है. तब तय है कि इसके पीछे कोई घोटाला चल रहा है. सभी जिलों में लोगों ने आम तौर पर बताया कि सिर्फ टीकाकरण के समय कोई नर्स या स्वास्थ्य विभाग का कोई आदमी आता है. राजधानी के जिला सहित राज्य के विकसित जिलों की जब यह दशा है, तो दूर के और पिछड़े जिलों के बारे में सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है. स्वास्थ्य व्यवस्था की पहली सीढ़ी पूरी तरह तहस-नहस की जा चुकी है.

अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रः जांच के 85 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की कहानी भी कोई अलग नहीं है. अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र  ही प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्था की दूसरी सीढ़ी हैं. अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर चिकित्सकों के अमूमन न्यूनतम आधा पोस्ट खाली हैं. यहां आम तौर पर बहाल डॉक्टर भी नहीं आते या बहुत ही अनियमित आते हैं. जांच में सिर्फ दो जगह चन्दा (कलेर), कोरियम (अरवल) – अरवल जिलांतर्गत – केंद्रों पर डॉक्टर नियमित आते हैं. एपीएचसी में शायद ही किसी जगह प्रसव कराने की व्यवस्था है. सिवान में जांच के 14 केन्द्रों में से 5 पूरी तरह बंद हैं. कोरणा, मैरवां में डाक्टर ही बहाल नहीं है तो सोरमपुर (फुलवारी, पटना) में बहाल दोनों डाक्टर डेपुटेशन पर रहते हैं. समदा एवं कोदहरी (दोनों पालीगंज, पटना) के केन्द्रों पर ऑपरेशन के साधन हैं, लेकिन डाक्टर नहीं आते. आम तौर पर किसी अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर स्त्री रोग विशेषज्ञ बहाल नहीं है. दरभंगा के 1 केन्द्र पर विशेषज्ञ हैं और 3 जगह प्रसव कराने की भी व्यवस्था है. पिंजरावां (कुर्था, अरवल) के केन्द्र पर सिर्फ नर्स आती हैं, जबकि 1 डाक्टर भी बहाल हैं. खटांगी (अरवल) में होमियोपैथिक डाक्टर बहाल हैं, लेकिन वे नहीं आते. दुलारपुर (गड़हनी, भोजपुर) की कहानी नायाब है. लोग बताते हैं कि यहां कभी मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार गिरफ्रतार हुए थे. इसलिए दुबौली में जिला का सबसे बड़ा अतिरिक्त प्रा. स्वा. केन्द्र 2 वर्षों से बनकर तैयार है, लेकिन उद्घाटन के अभाव में यूं ही पड़ा हुआ है. एपीएचसी पर आम तौर पर एम्बुलेन्स न के बराबर है.

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रः सर्वे के 44 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी) में भी डाक्टरों.नर्सों.कम्पाउंडरों के कम से कम आधे पद खाली हैं. एकाध जगह तो बिना डाक्टर के ही प्रा. स्वा. केन्द्र चलता है. गुठनी (सिवान) में स्वीकृत 7 पोस्ट में सिर्फ एक पर डाक्टर की बहाली है; तो आन्दर (सिवान) में 8 में एक. हुसैनगंज (सिवान) में चिकित्सकों के 9 पोस्ट हैं, लेकिन एक भी बहाली नहीं है. जिरादेई का केन्द्र अतिरिक्त प्रा. स्वा. केन्द्र में चलता है. भवन जीर्णशीर्ण है. कोविड की दूसरी लहर के समय जब माले के स्थानीय विधायक ने क्षेत्र विकास मद से यहां अस्पताल के लिए ऑक्सीजन सिलिंडर आदि देने की बात की, तो प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी ने हाथ जोड़ दिया. कहा कि उसे रखेंगे कहां? छत से पानी टपकता है. कुर्था (अरवल) का प्रा. स्वा. केन्द्र और सामुदायिक स्वा. केन्द्र भवन के अभाव में एक ही भवन में चलता है. दुल्हिन बाजार (पटना) में बहाली 6 हैं, लेकिन 3 डेपुटेशन पर रहते हैं. गड़हनी (भोजपुर) का भवन जर्जर है और प्रांगण में पानी भरा रहता है. सबसे अजीब स्थिति ओकरी पीएचसी (मोदनगंज, जहानाबाद) की है, जहां के एक कमरे में 1995 से ही पुलिस ओपी है. चिकित्सा पदाधिकारी स्थानीय नहीं हैं, इसलिए अस्पताल में ही रहते हैं. उनके आवास की कोई व्यवस्था नहीं है. जिस टेबुल पर दिन में वे मरीज देखते हैं, रात में उसी पर सोते हैं! रघुनाथपुर (ब्रह्मपुर, बक्सर) में 6 में 6 डाक्टर बहाल हैं और नर्सें 16 में 7 और यहां आक्सीजन युक्त 2 एम्बुलेंस भी हैं. पीएचसी में आम तौर पर परिवार नियोजन का ही ऑपरेशन होता है. कुछेक जगह ही महिला डाक्टर की पोस्टिंग है. दवाइयों की इन केन्द्रों पर हमेशा कमी रहती है. डाक्टरों-नर्सों के लिए आवास का अभाव है, जबकि प्रखंड मुख्यालय अवस्थित पीएचसी के चौबीसों घंटे खुला रहने का प्रावधान है. पीएचसी पर ऐंबुलेंस की भारी कम है और एनजीओ द्वारा संचालित हैं.

सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रः  सेकेन्डरी स्वास्थ्य प्रणाली यहीं से शुरू होती है. यहां विशेषज्ञ डाक्टरों की बहाली तथा सर्जरी की भी व्यवस्था व सिजेरियन का प्रावधान है. सबसे पहली समस्या यहां भी डाक्टरों, विशेषज्ञों व नर्स-कम्पाउंडर-अन्य स्टाफ की भारी कमी है. धनरुआ (पटना) सीएचसी का उदाहरण देखिए. पहली बात तो यह कि केन्द्र में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी बहाल नहीं किए गए हैं. पीएचसी के डाक्टर के कामचलाऊ प्रभार की व्यवस्था है. यहां डाक्टर एवं अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों के 69 पोस्ट सृजित हैं, लेकिन बहाली सिर्फ 10 की है. विशेषज्ञ डाक्टरों के 6 पोस्ट हैं, लेकिन बहाली शून्य है. स्टाफ नर्स 16 की जगह 5 बहाल हैं. स्वास्थ्य प्रशिक्षक, एलएचवी, ओटी सहायक, फार्मासिस्ट, प्रयोगशाला प्रावैधिक, एएनएम, ओटी टेक्निशियन, रिहैबिलिटेशन वर्कर, लिपिक, ड्रेसर-कम्पाउंडर, वार्ड ब्वाय के पद पर एक भी व्यक्ति कार्यरत नहीं है, जबकि 33 पद सृजित हैं. यही हालत राजधानी अवस्थित  फुलवारी सीएचसी की है, जहां चिकित्सकों के 18 सृजित पदों में सिर्फ 9 की बहाली है और नर्स आदि के 145 में सिर्फ 49. चरपोखरी (भोजपुर), करपी (अरवल), काको, हुलासगंज (दोनों जहानाबाद), बिहियां (भोजपुर) में भी यही हाल है. नवानगर (बक्सर) सीएचसी में 8 की जगह सिर्फ 1 डाक्टर हैं और 37 की जगह 6 नर्स! ओबरा में 13 चिकित्सक की जगह महज 2 की बहाली है और नर्स की एक तिहाई. 16 में 5! सबसे शर्मनाक बात यह है कि खुद स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पांडेय के पैत्रिक गांव बलियां (महाराजगंज, सिवान) में आलीशान सीएचसी कई वर्ष से बनकर तैयार है, लेकिन वह आज तक चालू नहीं हुआ! महामारी के समय भी यह चालू नहीं किया गया.

रेफरल और अनुमंडल अस्पतालः  इसकी कहानी भी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की ही तरह है. बिहटा (पटना) रेफरल अस्पताल का भवन ही जर्जर है, तो दरौली (सिवान) का भवन निर्माणाधीन है. मैरवां (सिवान) में डाक्टर 4 की जगह एक हैं, तो घोषी (जहानाबाद) में 13 की जगह 5. अधौरा (कैमूर) रेपफ़रल अस्पताल का हाल जानिए. 1990 में ही 30 बेड का अस्पताल बनकर तैयार हो गया, लेकिन अस्पताल आज तक शुरू नहीं हुआ. अस्पताल को नक्सली उन्मूलन के नाम पर सीआरपीएफ ने कब्जा कर रखा है और जनता भगवान भरोसे है!

महज 5 अनुमंडल अस्पताल का सर्वे हमें उपलब्ध हो सका है. राजधानी पटना के पालीगंज अनु. अस्पताल का अपना भवन नहीं है. रेफरल और पीएचसी दोनों में यह बिखरा हुआ है. ओपीडी पीएचसी में चलता है, तो प्रसव का काम रेफरल में होता है. डाक्टर 27 की जगह 10 हैं, जिनमें 2 डेपुटेशन पर हैं. नर्स.कंपाउंडर 50 की जगह 21 बहाल हैं. महिला डाक्टर लम्बे समय से अनुपस्थित हैं और पूछने पर टेढ़ा जवाब देती हैं! मसौढ़ी अनु. अस्पताल में डाक्टर 16 में 11 और नर्स आदि 50 में 22 हैं. यहां डाक्टरों का एक बड़ा हिस्सा डेपुटेशन पर रहता है. मोहनिया (कैमूर) में चिकित्सक 14 में 7 और नर्स आदि 66 में 26 हैं. बिक्रमगंज (रोहतास) में डाक्टर 27 में 13 और नर्स आदि 50 में 25 हैं. यहां आक्सीजन.युक्त 15 बेड हैं. सिजेरियन होता है. नर्स.कम्पाउंडर के लिए आवास नहीं है. चिकित्सकों के लिए 2 आवास हैं. डुमरांव में डाक्टर 30 में 13 और नर्स आदि 50 में 26 हैं. महामारी की दूसरी लहर में हमारी पार्टी के विधायक के प्रयास से 75 में 45 आक्सीजन.युक्त बेड उपलब्ध हुए हैं.

सदर अस्पतालः महज 3 सदर अस्पतालों की रिपोर्ट हमें मिल सकी है. सिवान में आइसीयू होते हुए भी यह चालू नहीं था. हमारी पार्टी के विधायक के अनशन पर बैठने पर शुरू हुआ. यहां डाक्टर 55 में 30 हैं, तो नर्स आदि 153 में 98 बहाल हैं. चिकित्सक आवास है. अरवल में सैंक्शन बेड 100 में से 70 उपलब्ध हैं. डाक्टर 30 में 17 हैं और 4 छुट्टी पर हैं. सर्जन और स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं हैं. न आक्सीजन.युक्त बेड है और न ही सिजेरियन होता है. ब्लड बैंक भी नहीं है. यह हर गंभीर मरीज को पटना रेफर करने वाला अस्पताल बना हुआ है. भभुआ में डाक्टर 54 में 21 और नर्स आदि 100 में 66 हैं. 100 बेड की जगह 52 उपलब्ध हैं. आंख को छोड़कर अमूमन सभी तरह के ऑपरेशन होते हैं. बेतिया सदर अस्पताल की आहुति सरकार ने मेडिकल कालेज के लिए कर दी है. अब यहां कोई सदर अस्पताल नहीं है. आरा सदर अस्पताल की रिपोर्ट नहीं मिल सकी है. लेकिन यहां पूरे महामारी के दौरान छात्र.नौजवान साथियों, पार्टी नेताओं और हमारे विधायकों के अथक प्रयास से अस्पताल में ऑक्सीजन, सीटी स्कैन, ईसीजी और आईसीयू तक की व्यवस्था हुई.

एक आयुर्वेदिक और एक मेडिकल कालेज की प्राथमिक रिपोर्ट हम हासिल कर सके हैं. जिरादेई (सिवान) अवस्थित राजकीय आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज का भवन खंडहर बन चुका है. यह देशरत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद के गांव में अवस्थित है. कालेज बंद है. कुछ कागजी काम कम्पाउंडर साहब के घर से होता है. दरभंगा मेडिकल कालेज में चिकित्सकों के स्वीकृत 528 पदों में सिर्फ 221 बहाल हैं. आधा से ज्यादा पद (307) खाली हैं. यहां न्यूरो सर्जन नहीं हैं. जल जमाव यहां की समस्या बनी हुई है. न सिर्फ छत से पानी टपकता है, बल्कि बारिश का पानी अस्पताल के अंदर भी घुस जाता है. उत्तर बिहार का यह सबसे बड़ा मेडिकल संस्थान है. इसके व्यापक विस्तार और गुणवत्ता बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन इसी की जमीन में एम्स खोलने का फैसला लिया जा चुका है. यहां नर्स 650 बहाल हैं, लेकिन आवास महज 50 के लिए है.

ऊपर की तस्वीर साफ बताती है कि संपूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था में बड़े सुधार की जरूरत है. महामारी के दूसरे दौर में हुई तबाही ने यद्यपि सरकार पर दबाव बनाया है,औश्र उसे कई तरह के कदम उठाने पड़ रहे हैं, लेकिन जब सरकार अपने सामाजिक दायित्व से भाग रही हो और हर कुछ निजी क्षेत्र को सौंपती जा रही हो, तो एक बड़े आंदोलन के जरिए ही सरकार को स्वास्थ्य व्यवस्था में बड़े सुधार के लिए बाध्य किया जा सकता है. इसमें चिकित्सा सेवा से जुड़े लोगों सहित पूरे समाज की भागीदारी जरूरी है.

 

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