अब तक हमने जो चर्चा की है, उसको इन तीन बिंदुओं में सूत्रबद्ध किया जा सकता है.

1.    अच्छे दिन, मेक इन इंडिया, बुलेट ट्रेन के फर्ज़ी जुमलों और पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के खोखले दावों की तुलना में नोटबंदीज्यादा गम्भीर, दीर्घकालिक असर छोड़ने वाला कदम है. इसका दीर्घकालिक मकसद (जिसके लिए लम्बे समय से प्रयास चल रहा था) डिजिटलीकरण है, जिसका ढाँचा (क) नकदी विनिमय और वित्त के क्षेत्र में नव उदारवादी ढाँचागत समायोजन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने, (ख) और अर्थव्यवस्था का पलड़ा ग़ैर-कारपोरेट असंगठित क्षेत्र के बरक़्स कारपोरेट संगठित क्षेत्र के पक्ष में झुकाने के लिए बनाया गया है. दूसरी तरफ नोटबंदी मुख्यतः एक राजनीतिक जुआ था जिसके जरिए मोदी की घटती हुई लोकप्रियता को बढ़ाने की कोशिश की गयी. इसने मोदी को ऐसे कड़े कदम उठाने वाले नेता के रूप में पेश किया जिसका साहस दूसरे लोग नहीं कर पाते. साथ ही साथ यह डिजिटलीकरण को जबरन रफ़्तार देने का प्रयास भी था. जहाँ इसके पहले पहलू को शासक वर्गीय अर्थशास्त्रियों का पूरा समर्थन प्राप्त था वहीं दूसरे पहलू की उन्हीं अर्थशास्त्रियों ने आलोचना की. क्योंकि यह उनके लिए अभूतपूर्व पिछली शताब्दी में कई देशों में सम्पूर्ण विमुद्रीकरण हुआ था : (क) वे देश जो बेलगाम मुद्रास्फीति से ग्रस्त थे, जहाँ मुद्रास्फीति की दर सालाना की जगह साप्ताहिक या मासिक रूप से नापनी पड़ती थी, जैसे कि प्रथम विश्व युद्ध में तबाह होने के बाद 1923 में जर्मनी में; (ख) ऐसे देश जिनकी अर्थव्यवस्थाएं ध्वस्त होने की कगार पर थीं, जैसे 2015 में ज़िम्बाब्वे में; और (ग) ऐसे देश जो गहरे आर्थिक या राजनीतिक संकट से गुजर रहे थे, जैसे 1982 में घाना, 1984 में नाइजीरिया, 1987 में म्यांमार, 1993 में जाइर और 1991 में सोवियत संघ. इन सभी मामलों में विमुद्रीकरण के पीछे कुछ न कुछ विशिष्ट व ठोस कारण थे. उदहारण के लिए ज़िम्बाब्वे में वहां के 1,00,000 करोड़ डॉलर का मूल्य गिर कर मात्र 35 अमेरिकी सेण्ट के बराबर हो गया जिस कारण सरकार ने बाध्य हो अपनी संकटग्रस्त राष्ट्रीय मुद्रा को छोड़ कर उसकी जगह अमेरिकी डॉलर अपना लिया. भारत की तरह इतने विशाल पैमाने पर (यद्यपि 86 % आंशिक) विमुद्रीकरण कभी नहीं किया गया, और वह भी विल्कुल सामान्य हालात के बावजूद इतने कपट पूर्ण तरीके से. था.

2.    नोटबंदी पर मोदी की छाप साफ नुमायाँ थी. 8 नवम्बर को जिस नाटकीय तरीके से नोटबंदी की घोषणा की गयी, उसके बाद जिस तरह ईमानदारी के उपदेश दिए गए, जिस तरह प्रधानमंत्री ने इतने व्यापक असर वाले फ़ैसले को लेने के पहले किसी और से सलाह-मशविरा करना गवारा नहीं समझा, जिस अक्खड़पन और घमंड के साथ सारी आलोचनाओं और सुझावों को फालतू बताया गया, जिस तरह सभी विरोधियों को भ्रष्ट और राष्ट्र-विरोधी के रूप में पेश किया गया और नोटबंदी की मार झेल रहे ईमानदार और मेहनतकश लोगों को राहत पहुँचाने के किसी भी बजटीय प्रस्ताव को क्रूूरतापूर्वक नकार दिया गया; यह सभी मोदी की अपनी खासियतें थीं. अपने नीयत और अंतर्वस्तु, असर और आशय में नोटबंदी निश्चय ही भारतीय फासीवाद के आर्थिक कार्यक्रम के विकास का एक प्रमुख तत्व है. इसकी रचना गोलवलकर के काबिल चेले ने शासन का डंडा चलाने की पूरी आजादी के साथ सत्ता हासिल करने के बाद की है. उसके रास्ते में गठबंधन सरकार की कोई बाधा नहीं है.

3.    डिज़िटलीकरण के कारपोरेट समर्थक झुकाव ने भाजपा को परम्परागत रूप से बनिया आधार वाली पार्टी से बड़े कारपोरेट की पार्टी में रूपांतरित कर दिया है, जिसकी शुरुआत वर्षों पहले हो चुकी थी. नोटबंदी का कदम सिर्फ टैक्स चोरी को रोकने का ही नहीं, बल्कि नागरिकों और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं आदि पर पूरी सरकारी निगरानी व नियंत्रण का रास्ता साफ करता है. इस तरह यह नवीनतम तकनीक से लैस सर्वशक्तिमान दखलंदाज राज्य का मार्ग प्रशस्त करता है जो इलेक्ट्रानिक (आधार, बायोमैट्रिक के साथ) पुलिसिंग में सक्षम होगा. और निश्चय ही मजबूत पुलिस राज्य फासीवाद की पूर्व शर्त होता है, जैसा कि अतीत में भी हुआ.

अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े बेशुमार लोगों के जीवन और आजीविका पर ये हमले ("आजीविका के साधनों" को बलपूर्वक छीनना) केवल एक बार में क्रूरतापूर्वक अंजाम नहीं दिए जा रहे (जैसे जमीन हड़पने के मामलों में होता है) बल्कि इन्हें धीरे-धीरे आर्थिक तरीकों के जरिए अंजाम दिया जा रहा है. साथ ही इस परियोजना को काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ पहले गम्भीर, कारगर और राष्ट्रीय स्तर के हमले के रूप में प्रचारित किया जा रहा है. इस सब के जरिए लोगों के ग़ुस्से और प्रतिरोध को भड़कने से रोक दिया गया है. मगर संघ गिरोह द्वारा फैलाई जा रही भ्रम की धुँध और कुहासे के बीच जीवन की कठोर सच्चाई भी सामने आने लगी है. और वह दिन दूर नहीं जब बड़बोलेपन के नशे में चूर भारत के खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ने वाले इस निरंकुश शासक को जनता मुँहतोड़ शिकस्त देगी.