हम जानते हैं कि 8 मार्च 1917 को रूस में रोटी, जमीन और अमन के नारे के साथ पेत्रोग्राद की सड़कों पर हजारों महिलाओं का सैलाब उमड़ आया था. वे मजदूरों के लिये जमीन और रोटी के साथ साम्राज्यवादी प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति की मांग कर रहीं थीं.
क्या उन्हीं नारों की अनुगूंज हम आज भी अपने चारों ओर नहीं सुन रहे हैं ?

मंहगाई, भूख और रोटी का सवाल

  • रोटी का सवाल भारत में एक विस्फोटक प्रश्न है. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के शताब्दी वर्ष (2010-2011) में खाद्य पदार्थों में हुई मूल्य वृद्धि ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं.

  • अंतर्राष्ट्रीय खाद्य एवं शोध संस्थान द्वारा अक्टूबर 2008 में जारी ग्लोबल और इण्डियन हंगर इण्डेक्स (भूख सूचकांक) के अनुसार भारत में भुखमरी के हालात अफ्रीका के 25 उप-सहारा देशों और अन्य दक्षिण एशियाई देशों (बांग्लादेश को छोड़कर) से बदतर हैं.

  • ग्लोबल जेण्डर गैप रिपोर्ट 2009 ने भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवनस्थितियों पर किये सर्वे में भारत को सबसे निचले पायदान पर रखा है (134 देशों में 134वें स्थान पर). इसका अर्थ है कि तीसरी दुनिया के गरीब देशों में भी भारतीय महिलाओं की स्थिति भुखमरी, कुपोषण और मातृत्व मृत्यु-दर के मामले में सबसे ज्यादा खराब है.

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार मंत्रालय के 2005-06 के सर्वे के अनुसार भारत की आधी से अधिक महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) है. खाद्य पदार्थों में 20 प्रतिशत की मूल्यवृद्धि का उन महिलाओं के ऊपर क्या असर पड़ेगा जो पहले से ही भुखमरी और कुपोषण से ग्रस्त हैं?

आइये, सरकार की उन नीतियों के विरुद्ध अपने संघर्ष को तेज करें जिनकी वजह से मंहगाई बढ़ रही है और महिलायें भूख और कुपोषण की ओर धकेली जा रही हैं. हमें यूपीए सरकार के ‘राइट टू फूड बिल’ (भोजन का अधिकार बिल) के उस मसौदे का विरोध करना होगा जिसमें खाद्य सुरक्षा के साथ भद्दा मजाक किया गया है. इस मसौदे में खाद्य सुरक्षा को एक ओर बीपीएल परिवारों तक सीमित करने की बात है, और दूसरी ओर सरकार बीपीएल सूची से गरीबों भारी संख्या में लगातार बेदखल करती जा रही है. हमें राशन व्यवस्था में भ्रष्टाचार के खिलाफ और सबके लिये खाद्य सुरक्षा के लिए संघर्ष तेज करना होगा.