संघ परिवार भारतीय मुसलमानों को देश के विभाजन के लिए दोषी ठहराता है और उनकी देशभक्ति पर सवाल खड़ा करता है. वे मांग करते हैं कि मसजिदों पर तिरंगा फहराया जाये ताकि मुसलमानों की देशभक्ति प्रमाणित हो सके. उनका कहना है कि यदि कोई भारत में रहना चाहता है तो उसे वंदे मातरम् और भारत माता की जय कहनी पड़ेगी. लेकिन राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करने का उनका अपना रिकाॅर्ड कैसा है?

‘दो राष्ट्र’ का सिद्धांत

डाॅ. अम्बेडकर ने सही पहचाना था कि सावरकर और जिन्ना ‘दो राष्ट्र’ के सिद्धांत पर एकमत थे. ‘थाॅट्स आॅन पाकिस्तान’ शीर्षक लेख में अम्बेडकर ने लिखा, “...यह चाहे जितना विचित्र लगे मिस्टर सावरकर और मिस्टर जिन्ना ‘दो राष्ट्र’ के सवाल पर एक दूसरे का विरोध करने की जगह एक दूसरे से पूर्ण सहमति में हैं... मिस्टर सावरकर चाहते हैं कि हिन्दू राष्ट्र वर्चस्वशाली राष्ट्र हो और मुसलिम राष्ट्र इसके मातहत राष्ट्र हो.”

1939 के हिन्दू महासभा के सम्मेलन के अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में सावरकर ‘दो राष्ट्र’ के सिद्धांत के जबर्दस्त पैरोकार के रूप में सामने आते हैं, वे घोषणा करते हैं:

  • “हम हिन्दू स्वयं में राष्ट्र हैं ... हम हिन्दू स्वयं ही स्थायी राष्ट्र के रूप में पहचाने जाते हैं” --- (देखें इंडियन एनुअल रजिस्टर, 1939, वाल्यूम ।।)

 

  • बाद में पिफर जोर देते हैं कि “मिस्टर जिन्ना के ‘दो राष्ट्र’ सिद्धांत से मेरा कोई झगड़ा नहीं है. हम हिन्दू अपने आप में राष्ट्र हैं और यह ऐतिहासिक तथ्य है कि हिन्दू और मुसलमान दो राष्ट्र हैं.”

(देखें इंडियन एनुअल रजिस्टर, 1939, वाल्यूम ।।)

 

वंदे मातरम् के बारे में क्या? हम आरएसएस को चुनौती देना चाहते हैं कि 15 अगस्त 1947 के पहले का वे अपना कोई भी दस्तावेज दिखा दें जिसमें ‘वंदे मातरम्’ शब्द का उल्लेख भी हो. सच्चाई है कि जब तक इस गीत का संबंध अंग्रेजों के खिलाफ चली आजादी की लड़ाई से था, तब तक आरएसएस ने इसके इस्तेमाल से परहेज किया. आजादी के बाद इस गीत के लिए इनका प्रेम सिर्फ इसलिए है क्योंकि यह जिस आनंदमठ उपन्यास से लिया गया है, उसमें मुसलमान विरोधी भावनायें मौजूद हैं. इसमें समाज को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने की संभावना का आरएसएस इस्तेमाल करना चाहता है.

आरएसएस की तिरंगे से नफरत

आज भाजपा और आरएसएस के लोग हाथ में तिरंगा लेकर ‘देशभक्त’ और ‘देशद्रोही’ का प्रमाणपत्र बांट रहे हैं. लेकिन तिरंगे के बारे इनका खुद का क्या सोचना है?

भारत की आजादी की पूर्वसंध्या पर 14 अगस्त 1947 को आरएसएस के मुखपत्र ‘आॅर्गनाइजर’ ने लिखा, “तीन की संख्या अपने आप में अशुभ है. तीन रंग के झंडे का खराब मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा और यह देश के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होगा।”

“यह (तिरंगा) हिंदुस्थान के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में कभी भी सम्मानित नहीं होगा... हमारी मातृभूमि, पुण्यभूमि हिंदुस्थान का एक ही निश्चित ध्वज हो सकता है, वह है भगवा ध्वज. … हिन्दू इस अखिल हिन्दू ध्वज के अलावा और किसी भी ध्वज को वफादारी से प्रणाम नहीं कर सकते. यह भगवा ध्वज ही राष्ट्रीय स्तर का है.”

(सावरकर, तिरंगे को राष्ट्रीय झंडे के रूप में
स्वीकार करने के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए, ए जी नूरानी, ‘अ नेशनल हीरो?’,
प्रफंटलाइन, वाल्यूम 21- अंक 22, अक्टूबर 23-नवंबर 5, 2004 में उद्धृत)

 

आरएसएस ने आजादी के 52 वर्षों के बाद गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने नागपुर के मुख्यालय में पहली बार तिरंगा फहराया

(http:èkèktimesofindia.indiatimes.comèkcityèkpuneèkTri-colour-hoisted-at-RSS-HQ-after-52-
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आज भी आरएसएस मुख्यालय और उनकी वेबसाइट पर बनी भारत माता की तस्वीर में भारत माता के हाथ में तिरंगा झंडा नहीं, बल्कि भगवा झंडा है!