यूरोप को एक भूत सता रहा है – कम्युनिज्म का भूत. इस भूत को झाड़-फूंक कर भगाने के लिए पुराने यूरोप की सभी ताकतें एकजुट हो गई हैं. पोप ईसाई धर्मगुरू पोप पायस नवम् हो या जाररूस का शासक जार निकोलस प्रथम, मेटर्निखआस्ट्रिया साम्राज्य का चांसलर (प्रधानमंत्री) मेटर्निख हो या गीजोलूई फिलिप के राजतंत्र में 1840 से 1848 तक फ्रांस का प्रधानमंत्री गीजो, फ्रांसीसी रैडिकलफ्रांसीसी रैडिकल लोग सिद्धांत में तमाम समाजवादियों और कम्युनिस्टों का विरोध करते थे. हो या जर्मनी की खुफिया पुलिस – सबने मिलकर इस झाड़-फूंक के लिए एक पवित्र गठबंधन बना लिया है.

अब हाल यह है कि हर देश में सत्ताधारी पार्टी विपक्ष की पार्टी को बदनाम करने के लिए उसे कम्युनिस्ट बताती है. जवाब में विपक्ष की पार्टी जैसे अपने से आगे बढ़ी हुई विरोधी पार्टियों पर कम्युनिज्म का ठप्पा लगाती है, वैसे ही अपने प्रतिक्रियावादी विरोधियों पर भी कम्युनिस्ट होने का आरोप मढ़ती है. इस तथ्य से दो बातें साफ होती हैं.

1.    यूरोप की सभी ताकतों ने यह मान लिया है कि कम्युनिज्म खुद में एक ताकत बन गया है.
2.    यही वह उचित समय है जब कम्युनिस्टों को खुलेआम पूरी दुनिया के सामने ऐलान कर देना चाहिए कि उनके विचार, उनके लक्ष्य और उनकी दिशाएं क्या हैं. इस प्रकार, कम्युनिज्म के भूत वाले किस्से को खत्म करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी को अब एक घोषणापत्र जारी करना चाहिए.

इस उद्देश्य से लंदन में विभिन्न राष्ट्रों के कम्युनिस्ट जमा हुए और उन्होंने यह घोषणापत्र तैयार किया, जिसे अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, इतालवी, फ्लेमिश और डेनिश भाषाओं में प्रकाशित किया जाएगा.