(पांचवीं पार्टी कांग्रेस में स्वीकृत प्रस्ताव)

1. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) कामरेड लेनिन के नेतृत्व में रूस की 1917 की महान अक्टूबर क्रांति की पताका को दृढ़तापूर्वक बुलंद करती है. यह महज विश्व में सर्वप्रथम सफल होने वाली सर्वहारा क्रांति ही नहीं थी, बल्कि इसने एशिया में एक नई जागृति भी ला दी थी. हालांकि 75 वर्षों बाद यह क्रांति पराजय का शिकार हो गई, फिर भी इसके ऐतिहासिक महत्व को कभी धुंधला नहीं किया जा सकता.’

2. भाकपा (माले) सोवियत संघ में समाजवाद के निर्माण में तथा फासिस्ट आक्रमण के खिलाफ सोवियत संघ की रक्षा में कामरेड स्तालिन द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करती है.

तथापि, स्तालिन अच्छी-खासी मात्रा में अधिभूतवाद के शिकार थे और यही उनकी अत्यंत गंभीर गलतियों का मुख्य स्रोत था. उनके दौर में, अंतःपार्टी जनवाद के साथ-साथ समाज में समाजवादी जनवाद भी भारी विकृतियों से ग्रस्त था.

3. भाकपा (माले) आधुनिक संशोधनवाद के खिलाफ 1960 के दशक के शुरूआती वर्षों में माओ त्सेतुंग एवं चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चलाए गए संघर्ष को सही मानती है.

समाजवादी समाज में वर्ग संघर्ष का अस्तित्व और कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर उसका प्रतिबिंबित होना, पूंजीवादी पुनर्स्थापना का खतरा और आज तक समाजवाद तथा पूंजीवाद के बीच संघर्ष में जीत-हार का फैसला न हो पाना इत्यादि विषयों पर कामरेड माओ की थीसिस इतिहास द्वारा सही साबित हुई है. इस प्रकार, स्तालिनवादी अधिभूतवाद और ख्रुश्चेवी संशोधनवाद, दोनों के निषेधस्वरूप माओ विचारधारा विकसित हुई और उसने मार्क्सवाद-लेनिनवाद को एक बार फिर सही परिप्रेक्ष में रखा. माओ के संघर्ष का भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन पर गहरा प्रभाव पड़ा. आधुनिक संशोधनवाद के तमाम भारतीय रूपों के खिलाफ संघर्ष के दौरान हमारी मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी का उदय काफी हद तक इसी माओ विचारधारा की देन है.

4. ब्रेजनेव के बाद के दौर में सोवियत संघ में समाजवाद को पुनर्जीवित करने के लिए अतिमहाशक्ति की हैसियत का संपूर्ण रूपांतर, उसके गैर-लचीले आर्थिक ढांचे का पुनर्गठन और समाजवादी जनवाद की संस्थाओं का पुनर्निर्माण सचमुच अत्यावश्यक हो गया था. इसलिए गोर्बाचेव ने जब ‘पेरेस्त्रोइका’ और ‘ग्लासनोश्त’ की शुरूआत की तो उन्हें दुनिया भर के कम्युनिस्टों, प्रगतिशील शक्तियों और जनवादी लोगों का भरपूर समर्थन मिला. तथापि, बाद में साबित हुआ कि गोर्बाचेव उदार पूंजीवादी विचारधारा और पश्चिमी साम्राज्यवाद के साथ आर्थिक-राजनीतिक सहयोग के ढांचे के अंदर कामकाज कर रहे थे. इसलिए भाकपा(माले) गोर्बाचेव को दलत्यागी मानकर उनकी निंदा करती है.

5. भाकपा (माले) किसी भी अंतरराष्ट्रीय केंद्र अथवा बड़ी पार्टी की धारणा का दृढ़तापूर्वक विरोध करती है. अंतरराष्ट्रीय मामलों में वह अंतरराष्ट्रीय स्थिति के अपने खुद के मूल्यांकन पर आधारित स्वतंत्र नीति पर अमल करने में यकीन रखती है. जहां एक ओर हम वियतनाम से संबंध सामान्य करने और सुधारने के चीनी प्रयासों का स्वागत करते हैं, वहीं दूसरी ओर हम खाड़ी युद्ध के दौरान चीन द्वारा प्रदर्शित विदेश नीति की आलोचना किए बगैर नहीं रह सकते.

6. भाकपा (माले) भारतीय स्थितियों में बहुपार्टी व्यवस्था वाले सर्वहारा राज्य की संभावना से इनकार नहीं करती. तथापि, इसकी प्रकृति और इसके स्वरूप का निर्धारण केवल व्यवहार के दौरान ही हो सकता है.

7. भाकपा (माले) मार्क्सवाद की रक्षा में उठ खड़ा होना अपना सर्वप्रमुख कर्तव्य मानती है, जो आज विश्व पूंजीपति वर्ग के चौतरफा हमले का सामना कर रहा है, ताकि उसकी क्रांतिकारी अंतर्वस्तु का पुनरुद्धार किया जा सके और भारतीय क्रांति को पूरा करने की प्रक्रिया में उसे और अधिक समृद्ध किया जा सके.