मार्क्स के अवस्मरणीय शब्दों में, "अगर मुद्रा एक गाल में खून का सहजात धब्बा लेकर इस दुनिया में आती है, तो पूंजी सिर से पैर तक, अंग-अंग में खून औ कीचड़ में तथपथ रूप में सामने आती है."