• नोटबंदी शुरू होते ही महाजनों, सूदखोरों और दलालों की बन आयी. 300-400 रुपये में पुराने 500 के नोट के बदले का व्यापार खूब पनपा.  इस तरह जिनके पास जिन्दा रहने लायक कैश भी नहीं बचा था, उन गरीबों की मेहनत की कमाई को जम कर लूटा गया.

  • नोटबंदी के बाद से 230 करोड़ रुपयों के नये नोट आयकर विभाग ने जब्त किये हैं! इतने रुपयों में 96,410 लोग बैंक से रु. 24,000 तय साप्ताहिक सीमा के अनुसार पैसा निकाल सकते थे. या 9,55,532 लोगों को एटीएम से पैसा मिल सकता था. आप कल्पना कर सकते हैं कि पिछले दरवाजे से कुल कितना पैसा बंटा होगा जो आयकर विभाग की पकड़ में नहीं आ सका!

  • बंगाल के रानीगंज शहर में मनीश शर्मा जो पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा का उम्मीदवार था, को एक कोयला माफिया समेत छः लोगों के साथ 33 लाख रुपयों के साथ पकड़ा गया, जिनमें ज्यादातर नये नोट थे. इस व्यक्ति को वैसे तो भाजपा से बाहर कर दिया गया है, पर ये भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो का करीबी बताया जाता है.

  • तमिलनाडु के सेलम में भाजपा के एक युवा नेता जी हैं, नाम है जेवीआर अरुण. उन्होंने बाकायदा बयान दिया कि “देश की प्रगति के लिए हम सभी को लाइनों में खड़ा होना चाहिए”, ज्यादा देर नहीं हो पायी थी कि पुलिस ने उन्हें 20 लाख 50 हजार के कैश के साथ पकड़ लिया! इनके पास 2000 के नये 926 नोट भी थे.

  • गुजरात में 16 नवम्बर को 2.9 लाख रुपये की रिश्वत पकड़ी गयी, ये पूरी रकम 2000 के नये नोटों में थी. कहां से आये थे ये नोट?

ऊपर दिये गये उदाहरण बताते हैं कि नोटबंदी ने नये-नये रूपों को जन्म दे भ्रष्टाचार बढ़ाने का काम किया है. लाइनों में खड़ी जनता को कैश नहीं मिल पाया लेकिन भ्रष्टाचारियों के पास नये नोटों की कोई कमी नहीं हुई. अब चोरी पकड़ी जाने पर सरकार बैंको को दोषी बता कर अपना पल्ला झाड़ रही है.

बैंकों और रिजर्व बैंक के कुछ अधिकारी बेशक इस भ्रष्टाचार में शामिल हैं. लेकिन आम बैंक कर्मचारी तो आम जनता का गुस्सा झेल कर भी दिन रात मेहनत कर सरकार के पैदा किये संकट को कम करने में ही लगे थे.

सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर नोटबंदी के बाद भी भ्रष्टाचार फलता-फूलता रहा तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का झूठा प्रचार कर जनता को इतने बड़े संकट में डालने के पीछे असली मकसद क्या था?