1913-1914: युद्ध और दमन के प्रतिरोध में महिलायें

प्रथम विश्वयुद्ध की पूर्व संध्या पर, शांति का अभियान चलाते हुए रूसी महिलाओं ने अपना पहला अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया. 1913 में विचार-विमर्श के बाद अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की तिथि बदल कर 8 मार्च कर दी गयी – जो आज भी पूरी दुनिया में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के लिये प्रचलित है. 8 मार्च 1914 को समूचे यूरोप में महिलाओं ने युद्ध के विरूद्ध अभियान चलाते हुए रैलियाँ निकाली थीं.

अलेक्सांद्रा कलन्ताय ने 1913-1914 में रूस में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में लिखा था –

फ्रूसी कामगार महिलाओं ने पहली बार 1913 में ‘महिला कामगार दिवस’ में भागीदारी की. यह प्रतिक्रिया का वह समय था जब जारशाही ने मजदूरों और किसानों को अपने पैशाचिक जाल में जकड़ रखा था. खुले प्रदर्शनों के जरिये ‘महिला कामगार दिवस’ मनाने की बात सोची भी नहीं जा सकती थी. मगर संगठित महिला कामगार अपना अन्तर्राष्ट्रीय दिवस मनाने में कामयाब रहीं. मजदूर वर्ग के कानूनी मान्यता प्राप्त दोनों अखबारों बोल्शेविक प्रावदा और मेन्शेविक लूच में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में लेख प्रकाशित हुए, उन्होने विशेष लेख, महिला कामगार आन्दोलनों में शिरकत करने वालों की तस्वीरें और बेबल और जेटकिन जैसे कामरेडों के शुभकामना संदेश प्रकाशित किये.

उन काले निराशा से भरे सालों में सभाओं पर पाबन्दी थी. मगर पेत्रोग्राद में, कलाशैकोव्स्की एक्सचेन्ज पर पार्टी से संबंध रखने वाली महिला कामगारों ने ‘महिलाओं के सवाल’ पर पब्लिक फोरम का आयोजन किया. यह एक गैरकानूनी मी¯टग थी मगर हाल खचा-खच भरा हुआ था. पार्टी के सदस्यों ने इस सभा में भाषण दिये. मगर यह जीवन्त ‘बन्द’ बैठक अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि पुलिस ने इस तरह की कार्यवाहियों से आशंकित होते हुए हस्तक्षेप कर बहुत से वक्ताओं को गिरफ्तार कर लिया.

1914 में ‘महिला कामगार दिवस’ रूस में बेहतर ढंग से आयोजित हुआ. दोनों ही अखबारों ने खुद को इसके आयोजन से जोड़ा. हमारे कामरेडों ने ‘महिला कामगार दिवस’ की तैयारी में बहुत मेहनत की. पुलिस हस्तक्षेप के चलते वे प्रदर्शन आयोजित कर पाने में कामयाब नहीं हो सके. ‘महिला कामगार दिवस’ के आयोजन की योजना में शामिल लोग पकड़ कर जारशाही जेलों में ठूँस दिये गये और उनमें से कई को बाद में सुदूर उत्तरशीत क्षेत्र में निर्वासन झेलना पड़ा. स्वाभाविक रूप से ‘कामगार महिलाओं के लिये मताधिकार’ का नारा ज़ारशाही निरंकुशता को उखाड़ “फेंकने का खुला आह्नान बन गया था.”

1917: महिलाऐं बनी रूसी राजशाही को उखाड़ फेंकनें की चगारी

8 मार्च 1917 (उस समय के रूसी कलेंडर के अनुसार 23 फरवरी) को रूसी महिलाओं ने युद्ध – जो तब तक बीस लाख से अधिक रूसी सैनिकों कीे बलि ले चुका था – और भयावह खाद्य संकट के खिलाफ ‘रोटी और अमन’ के लिये हड़ताल शुरू कर दी. पीटर्सबर्ग में महिला टेक्सटाइल कामगारों ने हड़ताल शुरू करते हुए अन्य फैक्ट्रियों से सहयोग और समर्थन का आह्नान किया. चार दिन की इस हड़ताल ने जार को गद्दी छोड़ने पर मजबूर कर दिया. रूसी राजशाही उखाड़ फेंकी गयी और इस अवसर पर गठित अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को मत का अधिकार दिया.

‘महिला दिवस’ इन तमाम सालों में दुनिया भर में संघर्ष और प्रतिरोध का दिन बना रहा.

महिला दिवस, ईरान, 1979

1979 में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, अमेरिका-पोषित शाह को उखाड़ फेंकने वाली क्रांति के दौर में, और दक्षिणपंथी अयातुल्लाह खुमैनी के इस्लामिक शासन के सत्ता में आने के ठीक बाद, एक लाख महिलाओं और पुरुष समर्थकों ने तेहरान विश्वविद्यालय पर रैली की. सुबह से ही बालिका हाई स्कूलों और तेहरान विश्वविद्यालय में सभायें होने लगीं. ईरान में महिलाओं के लिये बुर्का पहनना अनिवार्य करने के खुमैनी के फतवे के खिलाफ, लाखों की तादाद में महिलाओं ने 8 मार्च को तेहरान भर में मोर्चा निकाला. इनमें पश्चिमी परिधान में वस्त्रों के साथ-साथ पर्दानशीं औरतें भी शामिल थीं – मगर वे सब की सब जबरन पर्दा थोपे जाने का विरोध कर रहीं थी. दूसरे शहरों में भी विरोध प्रदर्शन आयोजित हुए. महिलाओं ने अपनी मर्जी के मुताबिक कपड़े पहनने की आजादी सहित बराबरी के अधिकार की मांग की. प्रदर्शनकारियों के कुछ खास नारे ये थेः ‘स्वतंत्रता हमारी संस्कृति में है, यह शर्मनाक है कि हम घर में कैद रहें’, ‘स्वतंत्रता और समानता हमारा अनिवार्य अधिकार है’, ‘जबरिया पर्दा के खिलाफ संघर्ष करो, तानाशाही का नाश हो’, ‘आजादी का नया सबेरा, पर हम अब भी आजाद नहीं’, ‘महिलाओं का मुक्तिदिवस – न तो पश्चिमी है न पूर्वी, यह अन्तर्राष्ट्रीय है’. बहुतेरी घटनाओं में महिला प्रदर्शनकारियों को सड़कों पर पीटा गया. प्रधानमंत्री कार्यालय के चारों ओर की सड़कों से प्रेस के अनुमान के मुताबिक लगभग 15000 महिलाओं को खदेड़ने के लिये रिवोल्यूशनरी गार्डों ने हवा में गोलियाँ दागी. महिला प्रदर्शनकारियों पर हमला करने वाले धार्मिक कट्टरपंथियों की परवाह न करते हुए कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन जारी रहे.