भारत में शताब्दियों पुराने उपलब्ध ऐतिहासिक अभिलेखों में भी हम महिलाओं की बराबरी और अधिकारों की आकांक्षा और दावेदारी देख सकते हैं. छठी शताब्दी ईसापूर्व की बौद्ध भिक्षुणियों द्वारा रचित ‘थेरीगाथा’ गीतों में हम सुमंगलमाता नामक भिक्षुणी की ‘रसोई घर के हाड़तोड़ उबाऊ श्रम से/भूख की कठोर पकड़ से/और खाली बरतनों से/छतरी बुनने वाले उस बेईमान पुरुष से भी’ मुक्ति की कामना सुन सकते हैं. और इसी तरह मुत्ता नाम की भिक्षुणी की ‘ओखली, मूसल और अपने शातिर स्वामी से’ मुक्ति की कामना भी सुनते हैं.