1960 के दशक के अन्तिम वर्षों और 1970 के शुरुआती सालों में नक्सलबाड़ी आन्दोलन अपनी जन्मस्थली में बुरी तरह कुचला गया मगर इसकी ज्वाला ने बुझने से इन्कार कर दिया. यह फिर से भोजपुर और मध्य बिहार के अन्य जिलों में धधक उठा. उन प्राथमिक मुद्दों में जिन्हें भाकपा(माले) आन्दोलन ने उठाया, महिलाओं के मान-सम्मान और अधिकार तथा डोली प्रथा, जिसका सीधा अर्थ गरीब खेतिहर परिवारों की महिलाओं का सामंतों द्वारा यौन शोषण था, जैसी शर्मनाक बर्बर सामन्ती प्रथाओं के अन्त के मुद्दे प्रमुखता से शामिल थे. भोजपुर आज भी शीला और लहरी जैसी उन लड़ाकू महिला साथियों को पूरी शिद्दत और गर्मजोशी से सलाम करता है जो पुलिस की गोलियों से शहीद हुई थीं.

गोरख पाण्डेय की कविता ‘कैथरकलाँ की औरतें’ बड़े ही प्रभावी ढंग से उस दास्तान की यादें ताजा करती है जो अस्सी के दशक में मध्य बिहार में सामन्ती दमन और पुलिस जुल्म के खिलाफ महिलाओं के जुझारू उभार की गवाह बनी – जिनमें महिलाओं ने ‘नक्सलियों’ के खिलाफ पुलिसिया छापामारी के दौरान पुलिस बल से राइफलें छीन कर उन्हें खदेड़ भगाया था.

क्रांतिकारी आन्दोलन से संबद्ध महिला संगठन बहुतेरे राज्यों में विभिन्न नामों और पहचान के साथ सक्रिय थे – जैसे बिहार में जनवादी महिला मंच और प्रगतिशील महिला मंच, उत्तर प्रदेश में प्रगतिशील महिला संगठन, तमिलनाडु में डेमोक्रेटिक वीमेन्स फ्रन्ट और बंगाल में प्रगतिशील महिला समिति. इन संगठनों ने स्वायत्तता के साथ अपने स्तर पर काम करते हुए महिला आन्दोलन की अन्य धाराओं के साथ भी ताल-मेल और एकजुटता के प्रयासों की पहल की. प्रगतिशील महिला समिति ने 1986 में कोलकाता में देश भर के कई स्वायत्त महिला संगठनों को आमंत्रित कर एक राष्ट्रीय महिला सम्मेलन का आयोजन किया. जनवादी महिला मंच और प्रगतिशील महिला मंच ने इंडियन पीपुल्स फ्रंट के साथ मिलकर पटना में 1988 में नारी मुक्ति संघर्ष सम्मेलन आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अगस्त 1992 में, जब साम्प्रदायिक उन्माद अपने चरम पर था, जिसकी परिणति आगे चल कर दिसम्बर 1992 में बाबरी मस्जिद के ध्वंस में हुई, इन्हीं संगठनों ने पटना में दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी ताकतों के खिलाफ दो दिन का राष्ट्रीय महिला कन्वेन्शन आयोजित किया. विभिन्न राज्यों में फैले और सक्रिय इन संगठनों ने एकजुट होकर1994 में आॅल इण्डिया प्रोग्रेसिव वीमेन्स एसोसिएशन (ऐपवा) का गठन किया.

यह क्रांतिकारी महिला आन्दोलन रणवीर सेना जैसी सामन्ती प्रतिक्रिया की ताकतों के खिलाफ हमेशा संघर्ष के अग्रिम मोर्चे पर डटा रहा. रणवीर सेना सामन्ती जमींदारों की निजी गुण्डावाहिनी थी जो क्रांतिकारी वाम झण्डे के तले संगठित हो रहे ग्रामीण गरीबों को उनकी राजनीतिक दावेदारी से विमुख करने के लिये आंतकित करती थी. और इसी क्रम में उसने 1996 में बथानी टोला और 1998 में लक्ष्मणपुर-बाथे जैसे पैशाचिक नर संहारों को अंजाम दिया जिनमें सैकड़ों ग्रामीण गरीब बड़ी बेहरमी से मार डाले गये. इनमें ज्यादातर महिलायें और बच्चे थे. इससे पहले 1990 के शुरुआती सालों में, जब पहली बार भोजपुर से भाकपा(माले) के पहले सांसद कामरेड रामेश्वर प्रसाद निर्वाचित हुए थे, सामन्ती ताकतों ने दनवार-बिहटा में होली के मौके पर महिलाओं के सामूहिक बलात्कार से इसका बदला लिया था. क्रांतिकारी महिला संगठनों ने जोरदार प्रतिरोधों के जरिये इस घृणित घटना का प्रतिवाद किया था.

2003 में मंजू देवी, जो ऐपवा की जहानाबाद इकाई की अध्यक्ष, भाकपा(माले) जिला कमेटी की सदस्य और अखिल भारतीय खेत मजदूर सभा की कार्यकर्ता थीं, को रणवीर सेना ने मार डाला. मंजू देवी ने बहुत सारी लड़ाइयों का नेतृत्व किया था, खासकर रणवीर सेना के ग्रामीण गरीब तबके के पुरुषों और महिलाओं पर किये जाने वाले बर्बर अत्याचारों के खिलाफ संघर्षों का. उनकी शहादत के बाद उनके हत्यारों को सजा देने के लिये जबरदस्त संघर्ष हुए; उनकी शहादत की याद में बनवाये गये स्मारक को सामन्ती ताकतों द्वारा बार-बार खण्डित और ध्वस्त करने की तमाम कोशिशों को ग्रामीणों ने नाकाम करते हुए उसकी हिफाजत की.

कैथर कला की औरतें

- गोरख पाण्डेय

... जुल्म बढ़ रहा था
गरीब-गुरबा एकजुट हो रहे थे
बगावत की लहर आ गई थी
इसी बीच एक दिन
नक्सलियों की धर-पकड़ करने आयी
पुलिस से भिड़ गयीं
कैथर कला की औरतें
अरे, क्या हुआ? क्या हुआ?
इतनी सीधी गउफ जैसी
इस कदर अबला थीं
कैसे बंदूकें छीन लीं
पुलिस को भगा दिया कैसे?
क्या से क्या हो गयीं
कैथर कला की औरतें?
यह तो बगावत है
राम-राम, घोर कलिजुग आ गया
औरत और लड़ाई?
उसी देश में जहां भरी सभा में
द्रौपदी का चीर खींच लिया गया
सारे महारथी चुप रहे
उसी देश में
मर्द की शान के खिलाफ यह जुर्रत?
... खैर, यह जो अभी-अभी
कैथर कला में छोटा-सा महाभारत
लड़ा गया और जिसमें
गरीब मर्दों के साथ कंधे से कंधा
मिला कर
लड़ी थीं कैथर कला की औरतें
इसे याद रखें
वे जो इतिहास को बदलना चाहते हैं
और वे भी
जो इसे पीछे मोड़ना चाहते हैं...