25 मई 1967 को दार्जिलिंग के नक्सलबाड़ी गांव में आतताई जमींदार के विरुद्ध संघर्ष में आठ महिलायें पुलिस की गोलियों से शहीद हो गईं. इनकी शहादत ने नक्सलबाड़ी के जुझारू किसान विद्रोह की नींव रखी. इसी विद्रोह से आगे चलकर भारत के कम्युनिस्ट आन्दोलन की क्रान्तिकारी धारा भाकपा(माले) का जन्म हुआ. यह किसान विद्रोह जंगल की आग की तरह आंध्रप्रदेश के श्री काकुलम में फैल गया जहाँ पंचाद्रि निर्मला जैसी महिलाओं ने पुरुष कामरेडों के साथ कंधे से कंध मिला कर बहादुरी के साथ लड़ते हुए अपनी शहादतें दी.

1980-90 के दशकों में महिला आन्दोलन

1980 और 90 के दशक महिला आन्दोलन के बहुत ही महत्वपूर्ण अध्यायों के गवाह बने – जैसे हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड में शराबविरोधी आन्दोलनऋ मूल्यवृद्धि के खिलाफ संघर्ष; बलात्कार – खासकर पुलिस हिरासत में बलात्कार – और राज्य दमन के खिलाफ आन्दोलन, जिनने सरकार को बलात्कार कानूनों में कुछ बदलाव के लिये मजबूर किया; दहेज और दहेज हत्याओं के खिलाफ संघर्ष, जिसके चलते दहेज विरोधी कानून बना; 1989 में रूपकुंवर सती कांड के बाद चले सती-विरोधी आन्दोलन ने सती प्रथा की रोकथाम के लिए व इसके महिमामण्डन के खिलाफ कानून का मार्ग प्रशस्त किया; पर्यावरण रक्षा के आन्दोलन (जैसे उत्तराखंड का चिपको आन्दोलन) आदि आदि. महिला आन्दोलन ने साम्प्रदायिकता के खिलाफ संघर्षों में हमेशा सक्रिय भूमिका निभाई. चाहे 1992 में सूरत हो, या 2002 का गुजरात, महिलायें हमेशा ही साम्प्रदायिक हिंसा और उन्माद की सबसे बड़ी शिकार रही हैं. महिला आन्दोलन के समक्ष उस समय एक जबर्दस्त चुनौती दरपेश हुई जब सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो फैसले के मद्देनजर, जिसमें देश की सर्वोच्च अदालत ने एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला के भरण-पोषण के हक में फैसला आने के बाद राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण के अधिकार के दायरे से बाहर करने के लिये एक विधेयक पेश कर दिया. यह कदम संघ परिवार और भाजपा द्वारा चलाये गये ‘राम जन्म भूमि’ आन्दोलन के मुद्दे पर उसी कांग्रेसी सरकार की साम्प्रदायिक ताकतों के पक्ष में शर्मनाक तुष्टिकरण की भरपाई के लिये एक राजनीतिक खेल था. मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के पक्ष में मजबूत लामबन्दी करते हुए महिला आन्दोलन ने साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ भी जबर्दस्त हमला बोला.

नक्सलबाड़ी की शहीद महिलायें

एक पुरुष (कामरेड खर सिंह मल्लिक)
और दो बच्चों के साथ 25 मई 1967 को
नक्सलबाड़ी के बेंगाई जोत में
आठ महिलाओं ने शहादत दीः

1. का. धनेश्वरी देवी
2. का. सोरुबाला बर्मन
3. का. सोनामोती सिंघा
4. का. सिमाश्वरी मल्लिक
5. का. नयनेश्वरी मल्लिक
6. का. समाश्वरी सैबानी
7. का. गौद्रो सैबानी
8. का. फूलमोती सिंघा

 

नक्सलबाड़ी की उन शहीद महिलाओं की
याद में रचे गये एक जनगीत से -

तराई आर्तनाद कर रही है
मेरा हृदय उसके साथ रो रहा है
नक्सलबाड़ी के धधकते खेत क्रन्दन कर रहे हैं
अपनी कत्ल कर दी गयी सात बेटियों के लिये.