कोपनहेगन में लिए गये फैसले के अनुरूप, पहली बार 1911 में 19 मार्च को आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड ने अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया. 10 लाख से भी अधिक महिलाओं और पुरुषों ने अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की रैलियों में शिरकत करते हुए महिलाओं के काम के अधिकार, मताधिकार, सार्वजनिक पदों पर आसीन होने का अधिकार और गैरबराबरी के अंत के लिये अभियान को आवेग प्रदान किया.

रूसी कम्युनिस्ट नेता अलेक्सांद्रा कलन्ताय ने पहले अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में लिखा –

‘पहला अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 1911 में मनाया गया. इसकी सफलता कल्पनातीत थी. महिला कामगार दिवस पर जर्मनी और आस्ट्रिया मानो महिलाओं का एक विशाल उफनता हिलोरें लेता महासमुद्र था. हर जगह सभाओं का आयोजन था – छोटे-छोटे शहरों से लेकर गाँवों तक के सभागार इस कदर भर गये थे कि उन्हें पुरुष कार्यकर्ताओं को अपनी जगह महिलाओं के लिये खाली करने को कहना पड़ा.

यह निश्चित रूप से कामगार महिलाओं के जुझारूपन का पहला प्रदर्शन था. उस दिन पुरुष तो बच्चों के साथ घर में रुके और उनकी पत्नियाँ, घर की बंधक गृहिणियाँ, सभाओं में गयीं. सबसे विशाल प्रदर्शन में, जिसमें 30 हजार की भागीदारी थी, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों का बैनर हटाने की कोशिश की, महिलायें अड़ गयीं. इस कशमकश में खून खराबा संसद के सोशलिस्ट प्रतिनिधियों की मदद से ही बचाया जा सका’.

 

प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के प्रदर्शनों की योजना मौखिक संपर्क और प्रेस के जरिये प्रचारित की गयी थी. अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पहले के सप्ताह में दो पत्रिकाओं की शुरुआत हुई जर्मनी में ‘दि वोट फाॅर वीमेन’ और आस्ट्रिया में ‘वीमेन्स डे’. इनमें अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर केन्द्रित बहुत से लेख प्रकाशित हुए – ‘महिलायें और संसद’, ‘कामगार महिलायें और नागरिक दायित्व’, ‘एक गृहिणी का राजनीति से क्या संबंध है’ आदि. इनमें सरकार और समाज में महिलाओं की बराबरी के सवालों का बहुत गहराई से विश्लेषण किया गया था और इस बात पर खास बल दिया गया था कि महिलाओं के लिये मताधिकार को लागू कर केे संसद को अध्कि लोकतांत्रिक बनाया जाना बेहद जरूरी था.

प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के महज एक सप्ताह के अन्दर ही, 25 मार्च को न्यूयार्क शहर की ‘ट्रायंगिल शर्ट-वेस्ट’ नाम के परिधान बनाने वाले कारखाने में भीषण आग लग गयी. इस आग ने महिला कामगारों की बेहद दयनीय और खतरनाक दशाओं को उजागर कर दिया. इसमें 146 मजदूरों की जान चली गयी जिनमें से ज्यादातर महिलायें थीं. बाहर निकलने के दरवाजों पर लगे ताले और बेहद खराब सुरक्षा व्यवस्था इन मौतों के लिए जिम्मेदार थी. इस घटना ने अन्तर्राष्ट्रीय आयाम ले लिया और श्रमिक प्रतिरोध प्रदर्शनों की एक नयी लहर को जन्म दिया. इन प्रर्दशनों के जरिये अन्तर्राष्ट्रीय महिला परिधान कामगार यूनियन (इन्टरनेशनल लेडीज गारमेन्ट वर्कर्स यूनियन) पहली महिला-प्रधान यूनियन के बनने का रास्ता बना जो आगे चल कर अमेरिका की सबसे बड़ी यूनियनों में से एक बनी.