कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र के बकुनिन द्वारा किए गए अनुवाद का प्रथम रूसी संस्करण सातवें दशक के आरंभ में ‘कोलोकोल’‘कोलोकोल' (घण्टा) – रूसी क्रांतिकारी-जनवादी अखबार, क्रांतिकारी जनवादी अ.इ. हर्जन तथा न.प. ओगार्योव द्वारा 1867 तक प्रकाशित. 1865 तक वह लंदन में तथा उसके बाद जेनेवा में छपता रहा. के मुद्रण कार्यालय से प्रकाशित हुआ था . उस समय पश्चिम “घोषणापत्र” के रूसी संस्करण में केवल साहित्यिक अनोखापन ही देख सकता था. परन्तु अब इस तरह का दृष्टिकोण असंभव है.

उस समय (दिसंबर 1847) सर्वहारा का आंदोलन कितना सीमित था, यह घोषणापत्र के चैथे अध्याय को यानी मौजूदा विभिन्न विरोधी पार्टियों के संबंध में कम्युनिस्टों की स्थिति को पढ़ने से साफ जाहिर हो जाता है. इसमें रूस और संयुक्त राज्य अमरीका का नाम ही गायब है. यह वो जमाना था, जब रूस को समूचे यूरोप के प्रतिक्रियावाद का आखिरी सुरक्षित गढ़ माना जाता था, जब अमरीका ने यूरोप की सारी अतिरिक्त सर्वहारा आबादी को अपने यहां जगह देकर खपा लिया था. दोनों देश यूरोप को कच्चा माल मुहैया कर रहे थे और साथ-ही-साथ उनके औद्योगिक माल की खपत करने वाली मंडियां भी थे. उस समय यह दोनों देश किसी न किसी रूप में मौजूदा यूरोपीय व्यवस्था के आधार-स्तंभ थे.

आज स्थिति कितनी बदल चुकी है? यूरोप की आबादी को अपने यहां बसाना उत्तरी अमरीका के लिए बेशुमार कृषि उत्पादन करने में मददगार सबित हुआ. अब उसके साथ प्रतियोगिता में छोटे-बड़े तमाम किस्म के यूरोपीय भू-स्वामित्व की नींव हिल रही है. इसके अलावा, इस आबादी के बसने से अमरीका अपने विशाल औद्योगिक संसाधनों का इतनी तेजी से, इतने बड़े पैमाने पर उपयोग कर रहा है कि उससे पश्चिम यूरोप, खासकर इंग्लैंड की अब तक की इजारेदारी की कमर टूट जाएगी. इन दोनों स्थितियों का खुद अमरीका पर एक क्रांतिकारी प्रभाव पड़ रहा है. किसानों का छोटे व मझोले दर्जे का भू-स्वामित्व, जो पूरी राजनीतिक संरचना का आधार है, कदम-ब-कदम विशाल फार्मों के साथ प्रतियोगिता में ढहता जा रहा है. इसके साथ ही औद्योगिक क्षेत्रों में पहली बार एक विशाल तादाद वाले सर्वहारा वर्ग का और पूंजी का अकल्पनीय पैमाने पर केंद्रीकरण हो रहा है.

और रूस! 1848-49 की क्रांति के दौरान यूरोप के राजाओं को ही नहीं; यूरोपीय पूंजीपतियों तक को सर्वहारा वर्ग से, जो अभी जाग ही रहा था, छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय रूसी हस्तक्षेप ही मिला. जार को यूरोपीय प्रतिक्रियावाद का सरदार घोषित कर दिया गया था. आज वही जार गातचिना में क्रांति का युद्धबंदी 1 मार्च 1881 को रूस में नरोदनाया वोल्या नामक गुप्त आतंकवादी संगठन ने सम्राट (जार) अलेक्सान्द्र द्वितीय की हत्या कर दी. उसके उत्तराधिकारी जार अलेक्सान्द्र तृतीय ने गद्दी पर बैठने ही क्रांतिकारी प्रदर्शनों और आतंकवादी कार्यवाही के डर से पीटर्सबर्ग के नजदीक अपने निवास गातचिना में शरण ने ली. है; और वही रूस यूरोप में क्रांतिकारी कार्यवाही का हिरावल बन गया है.

कम्युनिस्ट घोषणापत्र ने आधुनिक पूंजीवादी मिल्कियत के आसन्न विघटन की अनिवार्यता की घोषणा करते हुए उसे अपना लक्ष्य बनाया था. मगर रूस में हम पूंजीवादी धोखाधड़ी के तेजी से फैलने और हाल में पूंजीवादी भू-स्वामित्व के भी विकसित होने के अलावा, आधी से अधिक भूमि ऐसी पाते हैं जिस पर किसानों का ही स्वामित्च है. सवाल उठता है कि क्या रूसी ग्राम समुदाय जो यद्यपि बुरी तरह टूट कर बिखर रहा है, भूमि के आदिकालीन सामुदायिक स्वामित्व का ऐसा रूप है, जो सीधे कम्युनिस्ट किस्म के सामुदायिक स्वामित्व के उच्चतर रूप में पहुंच जा सकता है? या इसके विपरीत, उसे भी विघटन की उसी प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ेगा, जो प्रक्रिया पश्चिम के ऐतिहासिक विकास क्रम की लाक्षणिक विशेषता रही है?

इस समय इस सवाल का एकमात्र जवाब यही है – यदि रूसी क्रांति पश्चिम में सर्वहारा क्रांति के लिए ऐसा संकेतक बन जाए, कि वे दोनों एक-दूसरे की पूरक हो जाएं; तो भूमि का मौजूदा रूसी स्वामित्व कम्युनिस्ट विकास के लिए प्रस्थान-बिंदु बन सकता है.

जनवरी 1882: कार्ल मार्क्स व फ्रेडरिक एंगेल्स