(बनारस में संपन्न छठी पार्टी-कांग्रेस में समापन भाषण)

साथियो,

हमारी छठी पार्टी-कांग्रेस सफलता के साथ समाप्त हो रही है. सबसे पहले मैं ये कहना चाहूंगा कि विदेशों से कम्युनिस्ट पार्टियों के हमारे जो अतिथि साथी यहां आए, उनकी मौजूदगी ने हमारा हौसला बढ़ाया. कम्युनिस्ट आंदोलन हमेशा ही अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन होता है. हमें इस बात की खुशी है कि आज दुनिया के पैमाने पर मार्क्सवाद-लेनिनवाद की जो विचारधारा है, उसके भिन्न-भिन्न रूप से जो प्रयोग चल रहे हैं, हमारे ये जितने भी विदेशी साथी हैं, उनका प्रतिनिधित्व करते हैं. हमारी पार्टी-कांग्रेस में मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा के जो नए-नए आयाम हैं, प्रयोग हैं, उनकी मौजूदगी हमारे बढ़ते अतर्राष्ट्रीय संबंधों का भी संकेत है, और इस बात का भी संकेत है आज की दुनिया में तमाम कम्युनिस्टों को, चाहे उनके बीच बहुत सारे मतविरोध हों, आपस में मिलना चाहिए, एक दूसरे से सीखना चाहिए.

मैं, पार्टी की नई चुनी गई केंद्रीय कमेटी की ओर से, फिर एक बार अपने विदेशी मेहमानों का स्वागत करता हूं.

साथियो,

पिछले पांच दिनों में हमने तमाम बातों पर बहस की, बहुत सारे ऐसे मुद्दे उभरे, जिनपर हमारे बीच आपसी मतभेद थे. कभी-कभी बहसों में तीखापन भी था. चुनाव हुए, चुनाव में साथियों ने हिस्सेदारी ली. कुछ साथी जीते, कुछ हारे; लेकिन, मैं कहना चाहूंगा कि हमारी पार्टी की हमेशा यह परंपरा रही है कि हम अपने पार्टी अधिवेशनों में खुले तौर पर विचार-विमर्श करते हैं; इस प्रक्रिया में थोड़ी देर के लिए, हो सकता है, कुछ शिकायतें बनती हैं, कुछ मनमुटाव होते हैं, दिलो में कुछ चोट पड़ती है, लेकिन फिर चूंकि हम सब एक ही पार्टी के लोग हैं, हमारा एक ही आदर्श है, हमारी एक ही पार्टी है, हमरा एक ही लक्ष्य है, इसके लिए, हमने यह शपथ ली है कि जरूरत पड़ने पर हम अपना सबकुछ, अपना जीवन तक, इस लक्ष्य के लिए, इस पार्टी के आह्वान पर कुर्बान कर देंगे. जहां यह लक्ष्य है, वहां मैं समझता हूं कि थोड़ी देर के लिए आपस में पैदा हुआ कोई भी मनमुटाव, कोई भी कटुता, स्थाई नहीं हो सकती. इसलिए मुझे पूरा यकीन है, पूरा विश्वास है कि हम जब इस हॉल से बाहर निकलेंगे, तो हम सारे साथी उसी पुरानी गर्मजोशी के साथ, उसी पुरानी चट्टानी एकता के साथ, अपने देश का भविष्य बदलने के लिए, अपने देश को बदलने के संघर्ष में, उसी पुराने जोश-खरोश के साथ, एक साथ कदम मिलाते हुए चलेंगे. हमारी पार्टी की यह परंपरा रही है और आने वाले दिनों में भी हमारी यह परंपरा बरकरार रहेगी.

साथियो,

आपने यह देखा कि 1970 में हमारे देश में हामारी पार्टी का विभाजन हुआ था. तामाम गुट उभरे थे. पिछले पच्चीस वर्षों में दूसरे तमाम गुटों को हमने बिखरते देखा. लगातार उनमें होती हुई टूट-फूट को देखा. लेकिन, हमारी पार्टी भाकपा(माले) में, हमारे संगठन में, 1974 में अपने पुनर्गठन के बाद से आजतक, कोई फूट नहीं पड़ी, हमारी एकता लगातार मजबुत होती चली गई. बहुत से लोगों के लिए यह एक पहेली बनी हुई है. दूसरी तरफ, जब दूसरे तमाम नक्सलवादी संगठन लगातार टूट-फूट का शिकार होते रहे हैं, तब वह कौन-सा जादू है, किस वजह से भाकपा(माले) लिबलेशन  ने पिछले पच्चीस वर्षों में बिना किसी फूट के अपनी एकता को बरकरार रखा है, और खासकर आज के दौर में, जब हम देखते हैं कि सीपीएम, वह सामाजिक जनवादी पार्टी, जिसके साथ भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन के नेतृत्व के लिए हमारी प्रतिद्वंद्विता प्रधान बनी हुई है, उसके अंदर भी संकट गहरा रहा है. यहां तक कि कार्यनीतिक लाइन के सवालों पर उसका नेतृत्व विभाजित है, उसके भीतर विभाजन पैदा हो रहा है, ऊपर से नीचे तक इस पार्टी में गुटबंदियां पनप रही हैं. इस लिहाज से, हमारी पार्टी एक खास महत्व ग्रहण कर लेती है.

मैं समझता हूं कि हमारी एकता के पीछे जो बुनियादी कारण है, वह यह कि हमारे देश के कम्युनिस्ट आंदोलन की जो गौरवशाली परंपरा है, उस परंपरा को हमने हमेशा बुलंद रखा है. 1967 के नक्सलबाड़ी आंदोलन से लेकर 1970 के दशक में जो पूरा आंदोलन हुआ, तमाम गलतियों, भटकावों के बावजूद, उस आंदोलन में हमारे क्रांतिकारियों ने अपने देश में क्रांति लाने के लिए जो संघर्ष किया, जो कुर्बानियां दीं, हमने कभी भी अपने उस अतीत को, अपनी उस परंपरा को, अपने उस महान नेतृत्व को, जो का. चारु मजुमदार ने हमें दिया था, उसको कभी नहीं नकारा. अपने अतीत का हम सम्मान करते हैं, अपने अतीत को हमने हमेशा श्रद्धा की नजरों से देखा है, हमने हमेशा अपने शहीदों, अपने नेताओं की मर्यादा का झंडा बुलंद रखा है. लेकिन, साथ ही साथ, हम लगातार अपनी गलतियों से सीखते रहे हैं. हम अपनी गलतियों की खुलेआम आलोचना करते रहे हैं और नए-नए अनुभवों को समाविष्ट करते रहे हैं. अतीत की परंपराओं को बुलंद रखना और वर्तमान की आवश्यकताओं के साथ अपनी लाइन में आवश्यक पुनर्संयोजन करते रहना – मैं समझता हूं कि इन दोनों कार्यभारों को हमारी पार्टी ने सही ढंग से मिलाया है और यही हमारी पार्टी की एकता का असली राज है.

इसके साथ-साथ अपनी पार्टी के पुनर्गठन के समय से, हमने एक पूरी पार्टी व्यवस्था के निर्माण की कोशिश की है. ऊपर से नीचे तक, केंद्रीय कमेटी से लेकर निचले स्तर की कमेटियों तक, हमने पूरी पार्टी व्यवस्था खड़ी की है, एक सामूहिक नेतृत्व का हर स्तर पर हमने विकास किया है और हमने लगातार अपने पार्टी महाधिवेशन आयोजित किये हैं. आवश्यकता पड़ने पर हमने अखिल भारतीय पार्टी-सम्मेलन किए हैं. और इस तरह पूरी पार्टी का जो अनुभव है, उन सबको पार्टी नेतृत्व ने हमेशा समेटा है. यह एक महत्वपूर्ण कारण है. यह जो समग्र पार्टी व्यवस्था है, इसी की यह फसल है कि आज हमारी पार्टी के पास एक सामूहिक नेतृत्व हैं केंद्रीय स्तर पर आज हमारी पार्टी किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर नहीं है, किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित नहीं है, किसी व्यक्ति विशेष के करिश्मे से नहीं चलती है. हमारी पार्टी में बहुत लंबे प्रयोग के दौरान बहुत सारे अनुभवी साथी उभरे हैं. उनके बीच एक जबर्दस्त एकता बनी है. हमारी पार्टी की केंद्रीय कमेटी चार-पांच-सात गुटों का सम्मिश्रण नहीं है, बल्कि हमारी केंद्रीय कमेटी एक एकीकृत संगठन है, उसमें किसी तरह के किसी गुट का कोई अस्तित्व नहीं है और हमारे पार्टी नेतृत्व में तमाम अनुभवी साथी, जिन्हें पूरी पार्टी कतारों के द्वारा और आम जनता के द्वारा भी लंबे अरसे में विश्वास प्राप्त हुआ है, वे हमारी पार्टी की पॉलिट ब्यूरो का, हमारी पार्टी के सामूहिक नेतृत्व का निर्माण करते रहे हैं. मैं समझता हूं कि यही वह राज है, यही वे चीजें हैं, जिन्होंने इन पच्चीस सालों में हमारी पार्टी की एकता को मजबूत बनाया है, बरकरार रखा है और मैं विश्वास करता हूं कि नव निर्वाचित केंद्रीय कमेटी हमारी इस परंपरा को बुलंद रखेगी, आगे बढ़ाएगी. इस कांग्रेस में पूरे देशभर से आए हुए सात सौ के करीब प्रतिनिधियों ने नई केंद्रीय कमेटी के प्रति जो विश्वास व्यक्त किया है, हमारे ऊपर जो कार्यभार आपने दिया है, हमारे ऊपर जो जिम्मेदारियां आपने सौंपी हैं -- उन जिम्मेवारियों को यह केंद्रीय कमेटी अपनी पूर क्षमता, पूरी योग्यता के साथ निभाएगी और जो तमाम संघर्ष होंगे, जनता के जो संघर्ष हैं, पार्टी के जो संघर्ष हैं, उन तमाम संघर्षों की अगली कतार में हमारी पार्टी की केंद्रीय कमेटी के नेता खड़े रहेंगे. यह मैं आपसे वादा करता हूं.

साथियो,

हम यह मानते हैं कि हमारे सामने बड़ी-बड़ी चुनौतियां हैं, हमारे ऊपर तमाम हमले हुए हैं, इस पार्टी-कांग्रेस में हमने यह फैसला लिया है कि आने वाले दिनों में हमें तमाम चुनौतियों से जूझना है. लेकिन यह वह समय भी है, जो हमारे लिए बहुत संभावनाएं लेकर भी आया है. चुनौतियों और संभावनाओं का यह दौर है; हमें इन चुनौतियों का मुकाबला करना है और इन संभावनाओं का पूरी तरह उपयोग करना है. इस कांग्रेस ने हमें जो जिम्मेवारी दी है कि भारत के वामपंथी आंदोलन पर जो सामाजिक जनवादियों का नेतृत्व है, उन्हें उस नेतृत्व की जगह से किस तरह खदेड़ बाहर किया जाए और कैसे भारत के वामपंथी आंदोलन पर क्रांतिकारियों का नेतृत्व स्थापित किया जाए, यह हमारी समूची पार्टी के सामने जिम्मेवारी है. आज का समय हमारे लिए सबसे बेहतर समय है, क्योंकि सामाजिक जनवादी ताकतें आज आंदोलन के शीर्ष में कहीं खड़ी नहीं हैं क्योंकि वे सरकारी सत्ता का हिस्सा बन चुकी हैं. इसलिए इस सुनहरे मौके को काम में लगाते हुए भारत के वामपंथी आंदोलन पर क्रांतिकारी कम्युनिस्टों का नेतृत्व स्थापित करना चूंकि नक्सलबाड़ी के समय से हमारी ऐतिहासक जिम्मेवारी रही है, इसलिए इसे हमें पूरे जोश-खरोश के साथ पूरा करना है.

इसके साथ-साथ साथियों, हमारे ऊपर तमाम सामंती सेनाओं की जो चुनौती है, वह रणवीर सेना हो या इस प्रकार की दूसरी तमाम सामंती सेनाएं, जो बंदूक के बल पर, हथियारों के बल पर, हत्याओं और जनसंहारों के बल पर यह समझते हैं कि वे हमारी पार्टी का सफाया कर दे सकते हैं – उनकी चुनौती एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर हमारे सामने है हमें पूरे आत्मविश्वास के साथ इस चुनौती का मुकाबला करना है. हमें यह समझ लेना चाहिए कि सामंती ताकतों की ये जो कोशिशें हैं, ये उनकी आखिरी सांसें हैं. यह जो मरता हुआ सामंतवाद है, इस सामंतवाद का कोई भविष्य नहीं है. यह मरता हुआ सामंतवाद अपने को आखिरी तौर पर जिंदा रखने के लिए बदहवास होकर इस प्रकार के हमले कर रहा है. यह उसके जीवन का प्रतीक नहीं है, उसकी ताकत का प्रतीक नहीं है बल्कि उसके मरण का प्रतीक है, उसके अंत का प्रतीक है.

साथियो,

हमारे सामने रणवीर सेना जैसी ताकतों की जो चुनौतियां हैं, उनकी जो सशस्त्र चूनौतियां है, उनका जोरदार मुकबला करने का संकल्प इस कांग्रेस ने लिया है. इस कांग्रेस ने यह संकल्प बार-बार दुहराया है कि भाकपा(माले) अपनी तमाम ताकतों को संगठित करते हुए इन ताकतों का मुंहतोड़ जवाब देगी. जिन तमाम तरीकों से इन ताकतों का सफाया किया जा सकता है, खत्म किया जा सकता है, उस किसी भी मामले में हम पीछे नहीं रहेंगे – यह इस कांग्रेस का संकल्प है. हम इन सामंती सेनाओं की चुनौतियों को स्वीकार करते हैं और उन्हें संघर्ष के मैदानों, लड़ाई के मैदानों में, परास्त करके दिखा देंगे. अतीत में भी तमाम निजी सेनाएं उभरी थीं और जनता के प्रतिरोध के सामने एक के बाद एक वे सारी सेनाएं खत्म हो गई. हमें पूरी तरह यकीन करना चाहिए कि इन नई उभरी सेनाओं का भी कोई भविष्य नहीं है और भाकपा(माले) के नेतृत्व में चल रहे जनसंघर्षों के हाथों, जनता के आक्रोश के हाथों इन सेनाओं का भी खात्मा होगा. ये हमारे सामने दूसरी चुनौती है.

तीसरी बात साथियो, इस कांग्रेस ने जो संकल्प लिया है, कि हमें देशव्यापी स्तर पर तमाम लोकतांत्रिक, प्रगतिशील, मानवाधिकार की ताकतों – इन तमाम ताकतों को हमें एक मंच पर इकट्ठा करना है; एक सही मायने का जो जनवादी मोर्चा है, लोकतांत्रिक मोर्चा है, उसका निर्माण राष्ट्रव्यापी स्तर पर हमें करना है. ऐसा एक लोकतांत्रिक मोर्चा, जो सही अर्थों मे भारतीय क्रांति का जादुई हथियार बन सकता है, ऐसा मोर्चा कोई अन्य दूसरी ताकत नहीं बना सकती, ऐसा मोर्चा सिर्फ भाकपा(माले) ही बना सकती है.

हम ये विश्वास करते हैं कि इस कांग्रेस ने हमारे समाने यह जो तीन कार्यभार रखे हैं – वामपंथी आंदोलन में क्रांतिकारी कम्युनिस्टों का नेतृत्व स्थापित करना, सामंती सेनाओं की चुनौती का कड़े रूप से मुकाबला करना और उन तमाम सेनाओं का सफाया करना और तीसरी बात यह कि अखिल भारतीय स्तर पर हमें जो तमाम लोकतांत्रिक, प्रगतिशील, मानवाधिकार की, आंचलिक स्वायत्तता की, राष्ट्रीयताओं की, आदिवासियों की और तमाम दलित-पिछड़े समुदायों की, लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए उनके जो तमाम संघर्ष हैं, उन्हें एकसूत्र में पिरोत हुए हमें एक व्यापक जनवादी मोर्चा बनाना है. मैं यह विश्वास करता हूं कि यह कांग्रेस हमें यह शक्ति देगी. इस सिलसिले में मैं यह कहना चाहूंगा कि हमारे इन्हीं कर्तव्यों को पूरा करते हुए हमारे बहुत से साथियों ने अपना जीवन कुर्बान किया है, हमारे सैकड़ों साथियों ने अपनी शहादतें दी हैं.

आइए, हम एक बार फिर संकल्प लें कि हम अपने इन शहीदों को कभी भूलेंगे नहीं. आइए, हम उनके शोक को शक्ति में बदल दें और हम यहां संकल्प लें कि हमारे शहीद अपने दिलों में जो सपने लेकर सो गए, वे सपने हमारी आंखों में आज भी जिंदा हैं. जब तक वे सपने पूरे नहीं होते, तब तक भाकपा(माले) चैन नहीं लेगी. यह संकल्प हमें दुहराना है.

हमारे शहीदों की स्मृति अमर रहे!

इंकलाब जिंदाबाद!