(28 जुलाई, 1972, कामरेड चारु मजुमदार के शहादत दिवस की याद में, समकालीन लोकयुद्ध 16-31 जुलाई 1998)

कामरेड सीए ने संशोधनवादी पार्टी व क्रांतिकारी पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच जो महत्वपूर्ण विभाजन रेखा खींची थी, उसका सार यह था कि जहां पहला ऊपर के निर्देशों के इंतजार में बैठा रहता है, वहीं दूसरा अपनी स्वतंत्र पहलकदमी लेता और ऊपर के निर्देशों को भी सृजनात्मक ढंग से लागू करता है. ऐसा कर पाने के लिए क्रांतिकारी कार्यकर्ता को उद्यमी चरित्र का होना भी आवश्यक है और साथ ही उसकी अपने कार्यक्षेत्र पर, वहां की स्थितियों पर मजबूत पकड़ होनी चाहिए. बिना गहरी सामाजिक जांच-पड़ताल किए आपको बोलने का अधिकार ही नहीं है. हर ऐसी मान्यता, जो व्यवहार के धरातल पर टकरा रही हो, के खिलाफ प्रश्न उठाए बिना, हर परिघटना पर ‘क्यों’ और ‘कैसे’ आदि सवालों के बिना, भला मानव ज्ञान का विकास कैसे संभव है? ‘जीहुजूर’ किस्म के कम्युनिस्ट कार्यकर्ता भला ज्ञान व व्यवहार के क्षेत्र में नई-नई उपलब्धियां कैसे हासिल कर सकते हैं?

कार्यशैली का दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न है कामकाज की केंद्रित शैली. संघर्ष व आंदोलन के दायरे को हमें अविराम ढंग से आगे बढ़ाते चलना है, राष्ट्रीय व राज्य स्तरों पर हर संभव राजनीतिक पहलकदमी लेनी है, यह सब विवाद से परे है. लेकिन इन तमाम मामलों में अगर कोई वास्तविक उपलब्धि हासिल करनी है तो कुछ खास केंद्रित इलाकों पर विशेष जोर देने की कार्यशैली अपनानी होगी. नहीं तो पूरा प्रयास निरुद्देश्य, हवाई, निरर्थक कोशिशों में बदल जाएगा और हमारा व्यवहार एक ही दायरे में चक्कर काटता रहेगा.

चुनाव में हमने देखा कि जिन क्षेत्रों में कामकाज पर केंद्रित रूप से जोर दिया जा रहा था, वहां हमारा प्रदर्शन पहले से बेहतर हुआ, जहां माओ के शब्दों में ‘घोड़े पर चढ़कर बागीचे की सैर करने’ की कार्यशैली चल रहीथी वहां हमारी स्थिति बदतर हुई.

आप किसी भी इलाके या किसी भी जनसंगठन के जिम्मेवार हों, आपके पूरे व्यवहार में आम पहलू के साथ-साथ एक खास पहलू अवश्य ही होना चाहिए, जो दरअसल आपके व्यवहार की प्रयोगशाला है, जहां एक वैज्ञानिक के बतौर आप नए-नए प्रयोग करते हैं, अपनी धारणाओं को व्यवहार के धरातल पर परखते हैं, फिर उन निष्कर्षों का सामान्यीकरण करते हैं. आम से खास की ओर जाना, यह वैज्ञानिक कार्यशैली ही मार्क्सवादी कार्यशैली है.

कार्यशैली के प्रश्न पर फिलहाल आखिरी बात मैं यह कहना चाहूंगा कि आम राजनीतिक या आंदोलनात्मक गोलबंदी के साथ-साथ उभरते हुए नए-नए तत्वों पर विशेष ध्यान देना, उन्हें पार्टी शिक्षा व पार्टी संगठन की परिधि में खींच लाना, पार्टी सक्रिय दल व पार्टी शाखाओं का जमीनी स्तर पर गठन तथा उन्हें गतिशील बनाना कम्युनिस्ट कार्यशैली के अनिवार्य अंग हैं. जिस कार्यशैली में यह पहलू गायब है, वह निरी संशोधनवादी कार्यशैली है और इस संशोधनवादी धारणा पर आधारित है कि ‘आंदोलन ही सबकुछ है, लक्ष्य कुछ भी नहीं’. आंदोलन के दायरे को व्यापकतर बनाना लेकिन साथ ही साथ पार्टी संगठनों को जमीनी स्तर पर सचल बनाना -- इन दो आपात दृष्टि से विरोधी पहलुओं की एकता ही मार्क्सवादी कार्यशैली का सार है.

अखिल भारतीय स्तर पर पार्टी को संगठित करने एवं निचले स्तरों तक मजबूत व सचल पार्टी ढांचे का निर्माण करने की राह पर हमारे बढ़ते कदम ही कामरेड चारु मजुमदार के प्रति हमारा सच्चा सम्मान, सच्ची श्रद्धांजलि होगी.