11 जुलाई 1996 को सवर्ण भूस्वामियों की एक निजी सेना (रणवीर सेना) ने बिहार के भोजपुर जिले के बथानी टोला में 21 लोगों की निर्मम हत्या की थी (इनमें 11 महिलाएं, 10 वर्ष से कम उम्र की 5 बच्चियां, 8 वर्ष से कम उम्र के 4 बच्चे और एक पुरुष शामिल थे). ये सभी दलित और मुस्लिम भूमिहीन गरीब थे. जनसंहार दिन के 2 बजे शुरू हुआ. हमलावर पड़ोस के बड़की खड़ांव गांव से आये थे जो अगले तीन घण्टों तक फूस की झोपड़ियों में आग लगाते रहे, औरतों व बच्चों को तलवारों से काटते रहे, गोलीबारी करते रहे. महज 100 मीटर की दूरी पर थाना था और विभिन्न दिशाओं में 1-2 किमी की दूरी पर 3 अन्य पुलिस कैम्प अवस्थित थे. लेकिन भरी दुपहरी में मौत के उस तांडव को रोकने के लिये कहीं से कोई पुलिस नहीं आई और बथानी टोला को उसके अपने हाल पर छोड़ दिया गया.

आरा सेशन कोर्ट ने वर्ष 2010 में इसी जनसंहार के लिये दोषी 23 लोगों को सजा सुनाई -- 3 लोगों को मृत्युदंड दिया गया और 20 को उम्रकैद. लेकिन अप्रैल 2012 में पटना हाइकोर्ट ने इन सभी 23 लोगों को बरी कर दिया. नीतीश कुमार की बिहार राज्य सरकार ने कहा है कि वह इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में जायेगी. लेकिन इस औपचारिक भंगिमा के पीछे उसकी असली मंशा उसके एक मंत्री गिरिराज सिंह के इस कथन से जाहिर हो जाती है कि “बथानी टोला जनसंहार के मामले को जल्द-से-जल्द खत्म कर देना चाहिये. इस मुद्दे पर अधिक चर्चा नहीं करनी चाहिये, क्योंकि इससे माहौल बिगड़ सकता है.” इस प्रकरण ने एक बार फिर नीतीश सरकार के सामंती आधार को उजागर कर दिया जो उनकी गरीबपरस्त भंगिमा और ‘न्याय के साथ विकास’ की जुमलेबाजी के पीछे छिपा रहता है.