(लोकयुद्ध, 1-15 मार्च 1997)

‘बिल्ली सफेद हो या काली, मुख्य बात यही है कि वह चूहा पकड़ने में सक्षम है या नहीं’ – तेंग श्याओफिंग के इस कथित वक्तव्य के बारे में कहते हैं कि उन्होंने सफेद नहीं पीली बिल्ली कहा था.

तेंग श्याओफिंग अंत तक विवादास्पद व्यक्ति ही बने रहे. उनके निर्देशन में चीन में समाजवाद बना या पूंजीवाद, इस पर बहसें जारी हैं, लेकिन इतना तो तय है कि चीन दुनिया की एक प्रमुख आर्थिक शक्ति बन चुका है. विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले 10-15 वर्षों में चीन में जिस तीव्र गति से आर्थिक विकास हुआ है, वह दुनिया के इतिहास में एक चमत्कार है और कुछ ही वर्षों में चीन दुनिया की दूसरी प्रमुख आर्थिक शक्ति बन जाएगा.

चीनी क्रांति के बाद के दौर में समाजवाद के निर्माण के सवाल पर तेंग और माओ के बीच अंतर्विरोधरहे. तेंग का मानना था कि समाजवाद के दौर में चीन का प्रधान अंतर्विरोधपिछड़ी उत्पादक शक्तियों के तीव्र विकास के बिना उन्नत उत्पादन संबंधों को टिकाया नहीं जा सकता. इस आधार पर ल्यू शाओची के साथ वे इस मत के पोषक बने कि हमें सर्वाधिक जोर उत्पादक शक्तियों के विकास पर देना चाहिए एवं उत्पादन संबंधों को कदम ब कदम उन्नत करना चाहिए.

माओ के नेतृत्व में चीन नवजनवादी क्रांति के बाद तेजी से समाजवादी निर्माण की ओर बढ़ा और साठ का दशक आते-आते वहां समाजवाद का एक मजबूत ढांचा भी खड़ा हो गया. विकास के अगले चरण में पार्टी के अंदर बहसें तेज हो गईं  जिनकी परिणति सांस्कृतिक क्रांति में हुई. सांस्कृतिक क्रांति के दौरान पूंजीवाद के पथिक के रूप में तेंग श्याओफिंग चिह्नित हुए. प्रताड़ित हुए और उन्हें बीजिंग से बहुत दूर एक कारखाने में साधारण मजदूर के रूप में काम करने के लिए भेज दिया गया. तेंग श्याओफिंग ने दो-दो बार आत्मालोचना भी की और यह भी स्वीकार कि माओ का विरोध करके उन्होंने गलती की, वे वाकई पूंजीवाद के पथिक थे.

बहरहाल, पूंजीवाद के लौटने के खतरे को समाप्त करने, समाजवाद की उन्नत चेतना एवं नए समाजवादी मुनष्य का निर्माण करने जैसे जिन महान उद्देश्यों के लिए सांस्कृतिक क्रांति की शुरूआत हुई, वह दस वर्षों में विफल हो गई. सबसे बड़ी विड़ंबना यह रही कि इसका सबसे मुखर प्रवक्ता लिन प्याओ एक षड्यंत्रकारी साबित हुआ जिसने सैनिक विद्रोह के जरिए माओ की हत्या व सत्ता पर कब्जा करने की योजना बनाई थी. लिन प्याओ की साजिश को विफल करने का श्रेय चाओ एनलाई को जाता है, जो सांस्कृतिक क्रांतिकारीयों की नजर में उदारवादी थे. माओ ने फिर तेंग को बुलावा भेजा, लेकिन तेंग की पुनर्वापसी सामयिक ही साबित हुई. चाओ एनलाई की मृत्यु के बाद माओ के नजदीकी चार के गिरोह की तिकड़मों से तेंग फिर अपदस्थ हुए, उनकी पुनर्वापसी माओ की मृत्यु व चार के गिरोह के भंडाफोड़ के बाद फिर हुई और उसके बाद से जीवन के अंतिम दिनों तक वे चीन के सर्वमान्य नेता बने रहे.

उन्होंने समाजवाद के बहुत ही लंबे प्राथमिक दौर का सिद्धांत पेश किया; उत्पादन संबंधों में भारी तब्दीली की, उत्पादक शक्तियों के विकास के वास्ते विदेशी पूंजी व तकनीक के लिए चीन का दरवाजा खोल दिया; ‘पहले कुछ इलाकों को समृद्ध बनने दो’, इस नीति के तहत विशेष आर्थिक इलाके विकसित किए.

उनकी आर्थिक सुधार की नीतियों को पश्चिमी पूंजीवादी दुनिया ने खूब सराहा और यह उम्मीद जाहिर कि आर्थिक सुधार चीन में राजनीतिक सुधार को भी आगे बढ़ाएंगे अर्थात् कम्युनिस्ट पार्टी का एकछत्र शासन खत्म होगा.

इस मामले में तेंग कट्टरपंथी ही साबित हुए. पश्चिमी दुनिया में उनकी तमाम तारीफों के बावजूद बुर्जुआ राजनीतिक सुधारों की मांग कर रहे थ्येन आनमन चौहारे के आंदोलन को बेरहमी के साथ कुचल दिए जाने के सवाल पर तेंग हमेशा पूंजीवादी दुनिया की भर्त्सना के पात्र बने रहे, माओ के विलक्षण नेतृत्व में बने समाजवादी ढांचे की नींव पर ही तेंग ने आधुनिक चीन की इमारत खड़ी की है. कम्युनिस्ट पार्टी के शासन और समाजवाद के लक्ष्य के प्रति अविचलित दोनों व्यक्तित्व ही युगपुरुष थे. फिर भी माओ द्वारा प्रस्तुत यक्ष प्रश्न – ‘समाजवाद जीतेगा या पूंजीवाद’ – इसकी मीमांसा न तो माओ की सांस्कृतिक क्रांति कर पाई और न ही तेंग का समाजवादी आधुनिकीकरण का एजेंडा. 21वीं शताब्दी में भी चीन में यह जद्दोजहद जारी रहेगी.

फिर भी तेंग श्याओफिंग याद किए जाते रहेंगे, अपने जीवन काल में ही दो-दो बार सर्वोच्च नेतृत्व में वापसी के लिए; अपनी मशहूर उक्ति की ‘बिल्ली’ की ही तरह, जिसके बारे में अंग्रेजी मुहावरा है ‘कैट हैज नाइन लाइव्स’.

बीसवीं शताब्दी के इस अंतिम युग पुरुष को समकालीन लोकयुद्ध की श्रद्धांजलि.