विनिमय और वित्त के डिज़िटलीकरण पर अमेरिका प्रेरित ज़ोर कुछ ही समय में तीसरी दुनिया के देशों खासकर भारत जैसी बड़ी अर्थव्‍यवस्थाओं पर निगाह गड़ाने लगा. भारतीय राज्य और ऐसे व्यवसायी जिनके व्यावसायिक हित अमेरिका के साथ जुड़े हुए थे, इस मुहिम के लिए बढ़-चढ़ कर आगे आए. 2015 में यूएसएआईडी ने भारत में डिजिटल लेन-देन को आगे बढ़ाने के लिए वित्त मंत्रालय के साथ औपचारिक समझौता कर लिया. अगले वर्ष जनवरी में यूएसएआईडी ने एक रपट प्रस्तुत की जिसका शीर्षक था "बियांड कैश" (नकदी के पार).

दिसम्बर 2015 में अमेरिकी ट्रेजरी विभाग और यूएसएआईडी ने संयुक्त रूप से वाशिंगटन में एक वित्तीय समावेशन फ़ोरम आयोजित किया. इस फोरम में दुनिया के सबसे अमीर आदमी (जिसकी सम्पदा न जाने किस जादू से बढ़ती ही जाती है चाहे वह गरीबों के लिए जितना ही खर्च करे) ने बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से कहा:

"अर्थव्यवस्था का पूरी तरह डिजिटाइजेशन विकासशील देशों में अन्य जगहों के मुकाबले तेज रफ़्तार से हो सकता है. निश्चित रूप से यह हमारा लक्ष्य है कि हम आने वाले तीन सालों में बड़े विकासशील देशों में इसे सम्भव बनाएँ. … हमने भारत के केंद्रीय बैंक नचिकेत मोर, जो "येल वर्ल्ड फेलो " हैं और जिन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफं मैनेजमेंट, अहमदाबाद से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा, व्हॉर्टन स्कूल में फाइनेंस में विशेषज्ञता के साथ यूनिवर्सिटी ऑफं पेनसिलवेनिया से अर्थशास्त्र में पीएचडी की है, आजकल गेट्स फाउंडेशन भारत के प्रमुख हैं. वे भारतीय रिज़र्व बैंक की वित्तीय मामलों की निरीक्षण समिति समेत कई समितियों के सदस्य भी हैं. वे पेमेंट बैंकों के लाइसेंसिंग के लिए बनी आरबीआई की कमेटी के अध्यक्ष थे, व वित्तीय मामलों के लिए 2013 में बनी आरबीआई की एक अन्य कमिटी के अध्यक्ष थे. सिटीबैंक (जो अमेरिका के सब प्राइम घोटाले में गहरे तक शामिल थी, तथा विकासशील देशों में माइक्रो क्रेडिट व्यापार में लिप्त है) के पूर्व सीईओ विक्रम पंडित भी इस कमेटी में थे | के साथ पिछले तीन सालों में (2012 से) सीधे तौर पर काम किया. नतीजतन उन्होंने एक नए तरह के पेमेंट बैंक को स्वीकृति दी है जिससे उपभोक्ता मोबाइल फोन के जरिए बुनियादी लेन-देन कर सकेंगे."

गेट्स भारत में आधार कार्ड के "सर्वव्यापी होने" से बेहद उत्साहित थे क्योंकि इससे हर व्यक्ति को "पहचान सुनिि‍श्चत करके उसे सेवा प्रदान की जा सकेगी." यही मुख्य बात है- हर नागरिक चौबीसों घंटे अब निगरानी में रहेगा- वह कहाँ जाती है, अपने पैसे का क्या करती है, सब कुछ उनकी निगाह में रहेगा! अगर हम वित्तीय-तकनीकी उपक्रमों द्वारा कमाए गए मोटे मुनाफ़े को भूल भी जाएँ तो भी क्या यह आतंकवाद के खिलाफ चलाने वाले पवित्र युद्ध के लिए भी परम आवश्यक नहीं है, जिसमें हर नागरिक संदेह के दायरे में होता है और उसकी निगरानी की जरूरत होती है?

अपने व्याख्यान में गेट्स ने जोर दिया कि सरकारों को गरीबों की मदद "भयावह रूप से अक्षम" नकदी या अनाज देने के तरीक़ों से नहीं करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि मोबाइल बैंकिंग के जरिए भुगतान किया जाए तो "डिजीटलीकरण लोगों को चिन्हित करने में मददगार होगा". वित्तीय समावेशन गिरोह और बिल गेट्स द्वारा इस विचार को आगे बढ़ाया गया कि राज्य की लाभकारी योजनाओं का फायदा उठाने के लिए डिजिटल पेमेंट व्यवस्था में गरीब अवाम को धकेल दिया जाए.  

उन्होंने एक और दिलचस्प बात कही कि भारत जैसे देश अमेरिका की तुलना मेंज्यादा तेज रफ़्तार से डिज़िटलीकरण की दिशा में बढ़ सकते हैं क्योंकि वहाँ लोगों की निजता और डेटा को संरक्षित करने की कानूनी बाध्यताएँ बहुत कम हैं. बिल गेट्स ठीक फरमा रहे थे. भारत सरकार हमेशा ही इन चिंताओं को दरकिनार करने पर अड़ी रही है. जुलाई 2015 में आधार परियोजना को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान भारत के अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत का संविधान निजता के अधिकार की गारंटी नहीं करता. और सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया.