नागरिकों को नकदी रखने के अधिकार से वंचित करने के विचार को बड़े पैमाने पर विरोध का सामना करना पड़ा है. 'द अमेरिकन थिंकर' पत्रिका में छपे अपने लेख में माइक कोनराड बताते हैं कि यदि लोग नकारात्मक ब्याज अदा करने की जगह अपने घर में नकदी रखने को तरजीह देंगें, तो सरकार उनसे कैसे निपटेगी:

"सरकारें जल्दी ही ऐसी स्थिति का मुकाबला करने को तैयार होंगी और नकदी को ग़ैर-कानूनी घोषित कर देंगी. लोगों को मजबूर किया जाएगा कि वे या तो अपना पैसा बैंकों में रखें या बाजार में लगाएँ. इस तरह केंद्रीय सरकार और केंद्रीय बैकों का उद्धार किया जाएगा....

"नकदी, व्यक्तिगत स्वायत्तता का आखिरी क्षेत्र बचा है...  इसमें ऐसी ताकत है जिसे सरकारें नियंत्रित नहीं कर सकतीं, इसलिए इसका खात्मा जरूरी है.

"जाहिर है, सरकारें हमें असली मकसद नहीं बताएँगी क्योंकि इससे प्रतिक्रिया हो सकती है. हमें बताया जाएगा कि यह हमारी ही 'भलाई' के लिए है. अब इस 'भलाई' को चाहे जैसे परिभाषित किया जाए. इसे हमारा फायदा बताकर बेचा जाएगा...

"खबरें छापी जाएँगी कि लूट-पाट घटी है. अपराध को अंतिम तौर पर हरा दिया गया है. लेकिन यह नहीं बताया जाएगा कि हैकिंग की घटनाएँ बेइंतहा बढ़ जाएँगी, बैकों के घोटाले आसमान छूने लगेंगे... गरीबों को कहा जाएगा कि अमीर अब अपनी आमदनी नहीं छिपा पाएँगे और उन्हें अपनी आमदनी पर समुचित कर देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा....

"हमसे कहा जाएगा कि अपराधी उद्योगपतियों को बुरी तरह चोट पहुँचेगी, उनके पास पड़ा नकदी का पहाड़ रद्दी के ढेर में बदल जाएगा लेकिन यह यक़ीन करने लायक बात नहीं है. इसकी बजाय होगा यह कि बिटकॉइन (एक डिजिटल मुद्रा, जिसके जरिए कूट भाषा में लेन-देन होता है और इसपर किसी भी देश के केंद्रीय बैंक का नियंत्रण नहीं होता) में बदलने का कमीशन बढ़ जाएगा. इसलिए काले धन के नेटवर्क में बिटकॉइन का हिस्सा तेज़ी से बढ़ा है. इसमें और भी वृद्धि होगी.

"कैशलेश समाज का असली मकसद है सम्पूर्ण नियंत्रण: चौतरफा नियंत्रण ...

"और इसे हमारे सामने ऐसे आसान और कारगर तरीके के रूप में पेश किया जाएगा जो हमें अपराध से मुक्ति दिलाएगा यानि फासीवाद को चाशनी में लपेटकर पेश किया जाएगा." (हियर कम्स द 'कैशलेस सोसाइटी', फरवरी 8, 2016)

इसी तरह की आशंकाएँ कई अन्य लोगों ने व्यक्त की है. मीजेज संस्थान में प्रमुख शोधकर्ता और अर्थशास्त्री थामस डिलोरेंजो ने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि:

"वित्तीय परिसंपत्तियों पर कब्ज़ा करने के लिए 'आतंकवाद के खतरे' का राज्यज्यादा सेज्यादा इस्तेमाल करेगा. अभी ही राज्य "आतंकवादी खतरे' की परिभाषा को बढ़ा रहे हैं जिसमें मेरे जैसे राज्य के आलोचकों को शामिल किया जा रहा है. अमेरिकी सरकार 'पैट्रीयाट ऐक्ट' जैसे कानूनों की आड़ में वित्तीय सम्पत्तियों को जब्त करता रहता है. यह बात कुछ साल पहले मुझे समझ में आयी जब मैंने एक नई कार की क़ीमत निजी चेक से अदा की और चेक वापस लौट आया. कार विक्रेता ने मुझे बताया कि आईआरएस (आंतरिक राजस्व सेवा) ने मेरी जानकारी के बग़ैर ही उस पैसे का 20 फीसदी काट लिया है जिसे मैंने म्यूचुअल फ़ंड से अपने बैंक खाते में डाला था. बाद में आईआरएस ने मुझे बताया कि आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिहाज से वे ऐसा कर रहे हैं और मैं अगले साल के अपने टैक्स में उस रकम को पहले से अदा किया गया मान सकता हूँ."

दिलचस्प यह है कि सबसे अमीर देशों के बड़े लोगों के बीच भी कभी-कभार विरोध की आवाज सुनाई पड़ जाती है. दुनिया के सबसे उन्नत देशों में शामिल जर्मनी के 2014 के बंडसबैंक के सर्वे के मुताबिक लगभग 80 फीसदी लेन-देन नकदी में होता है. इस बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कार्ल लुडविग थिएले ने 14 अप्रैल 2016 को एक भाषण में लेन-देन के माध्यम के रूप में नकदी के इस्तेमाल को रोकने का विरोध किया. उसने दोस्तोएव्स्की के कथन में थोड़ा बदलाव करते हुए कहा कि "नकदी, आजादी का आधार है". देखें '‍डिजिटल मुद्राः नकदी के विरुध्द वैश्विक युध्द' (डिजिटल करेंसी: द ग्लोबल वॉर ऑन कैश , एशियन वॉरियर, दिसंबर 10, 2016)

फिलहाल हम भारत में ऐसी स्थिति का सामना नहीं कर रहे हैं पर लक्षण साफ दिख रहे हैं. बैंकों ने अभी ही प्रति माह मुफ़्त पैसा निकालने की संख्या घटा दी है. इस तरह हमें मजबूर किया जा रहा है कि या तो हम नेट बैंकिंग और कार्ड के जरिए लेन-देन को अपनाएँ या नकदी की निकासी की क़ीमत अदा करें. ऐसे अघोषित दबाव दिन ब दिन बढ़ते ही जाने हैं. यदि हम यूरोप और अमेरिका में भयावह रूप धर चुकी डिजिटल तानाशाही के भारतीय संस्करण को रोकना चाहते हैं तो अभी ही इसका प्रतिरोध करना होगा.