- डेकन हेराल्ड, 21 अप्रैल 2012

1996 में बिहार के बथानी टोला नरसंहार के मामले में न्याय की चाह को पटना उच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत के फैसले को उलट देने से गंभीर धक्का लगा है. जिन 23 लोगों को सेशन कोर्ट ने सजा दी थी उन सबको उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया.

नरसंहार के गवाहों ने हत्यारों को पहचाना. फिर भी नामजद 63 लोगों के खिलाफ चार्जशीट तैयार करने में पुलिस को चार साल लगे. इसके भी दस साल बाद सेशन कोर्ट ने फैसला सुनाया. इस फैसले को पटना हाई कोर्ट द्वारा उलट देने का मतलब है कि सभी 23 आरोपी अब आजाद घूमेंगे ... भारत के हाल के इतिहास में दलितों के सबसे बड़े इस भयानक कत्लेआम के इतने सारे आरोपी मुक्त हो गए, इसी से पता चलता है कि दलितों के लिए न्याय की लड़ाई कितनी तकलीफदेह है.

दुख और तकलीफ अकेले बथानी टोला के हिस्से नहीं आई. 1995 से 2002 के दौरान बिहार के अनेक दलित और मुस्लिम गांवों में ऊंची जातियों, राजपूतों और भूमिहारों की वाहिनी रणवीर सेना ने कहर ढाया था. ...तथ्य यह है कि रणवीर सेना प्रमुख ब्रम्हेश्वर सिंह ‘मुखिया’ को आरोपी ही नहीं बनाया गया था- उसके खिलाफ दर्ज 22 मामलों में से 16 में वह बरी हो गया और शेष 6 में उसे जमानत मिल गई - यह तथ्य ही बताता है कि बिहार में रणवीर सेना का प्रभाव कितना ज्यादा है.