- विद्या भूषण रावत, हस्तक्षेप डाॅट काॅम से

हमारी न्याय व्यवस्था जातीय पूर्वाग्रहों का शिकार तो नहीं हो गई है? क्या हमारा पूरा तंत्र जातिवाद की आड़ में कानून और न्याय-प्रक्रिया का इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है? ...

पटना हाईकोर्ट का आज का निर्णय शर्मनाक है. अपराधियों को मात्र अफसोस के साथ गवाहों के न मिलने के बहाने पर बाइज्जत बरी करने से हम सभी आहत हैं. उम्मीद है, ‘गरीबों के मसीहा’ मान्यवर नीतीश जी, इस पर अपने अधिकारियों को कुछ निर्देश देंगे. नीतीश जी ने दलितों को बांटने के लिए, बहुत से काम किए हैं, अब उन जातियों को जिन्हें उन्होंने अपनी राजनीति से बांटा, न्याय दिलाने का समय है. देखना है अपने भूमिहार और दलित समर्थकों को कैसे एक साथ रखते हैं नीतीश बाबू. फिलहाल हम लोगों के लिए यह मानवाधिकारों का प्रश्न है ... और सबसे बड़ा सवाल यही कि क्या जुलाई 1996 को जो 21 दलितों का नरसंहार हुआ वह किसी ने नहीं किया, यदि नहीं तो नीतीश जी, इस केस को आगे न ले जाया जाए, लेकिन यदि हां, तो राज्य सरकार बताए कि कौन थे वे हत्यारे जिन्होंने इस क्रूरतम और घृृणित कार्य को अंजाम दिया? आज समय है ऐसी सेनाओं को ठिकाने लगानेे का. चिदंबरम की पुलिस और नीतीश के सिपाही क्या यह काम कर पाऐंगे, भोजपुर के लोग आपसे जवाब चाहते हैं.