हम आगे बढ़ें, इससे पहले हमें स्मरण कर लेना होगा कि मार्कस पूंजीवादी संकट के विस्तृत सिद्धांत को खोज निकाल पाते, इससे पहले ही उनको अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा से अलविदा कहना पड़ा था. उनके जीवनकाल में पूंजी के द्वितीय खंड और तृतीय खंड को, अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांतों (थ्योरीज आॅफ सरप्लस वैल्यू) को और ग्रंड्रिस को, प्रकाशन के उपयुक्त नहीं बनाया जा सकता था, न ही वे पूंजीवादी अर्थतंत्र और राजप्रणाली के बहुतेरे अन्य पहलुओं की जांच-परख करने की अपनी योजना को ही साकार रूप दे सके थे. स्वाभाविक रूप से मार्कस के सिद्धांत की ढेर सारी किस्म की परस्पर भिन्न व्याख्याएं मौजूद हैं, मसलन रोजा लक्जमबर्ग का लेनिन से विरोध, और अर्नेस्ट मेंडल द्वारा पाॅल स्वीजी के खिलाफ की गई बहस, इत्यादि. इन विचार-शाखाओं के बीच समृद्ध और जारी बहस की समीक्षा करने का यहां स्थान नहीं है ऋ पूंजीवादी संकटों के सम्बंध में बुनियादी मार्कसवादी समझ की हमारी धारणा की संक्षिप्त रूपरेखा को ही हम यहां पेश कर सकते हैं.