शुरू में प्रधानमंत्री ने सारे भाषणों में कहा कि यह ‘काले धन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक’ है. लेकिन बाद में वे बात बदल कर ‘जाली नोट’ और ‘आतंकवादी फण्डिंग’ पर बोलने लगे. बाद में उन्होंने काले धन का नाम लेना भी छोड़ दिया और बोलने लगे कि नोटबंदी का असल मकसद भारत को ‘कैशलेस’ अर्थव्यवस्था बनाना है.

  • केवल 4 से 6% काला धन ही कैश में है, बाकी सोना, जमीन-जायदाद या विदेशी बैंकों में है. यूपीए सरकार ने 2014 में जब 2005 से पहले छपे नोटों को बंद करने बात कही तो भाजपा ने सबसे पहले उसका विरोध किया था. तब इस तथ्य को भाजपा ही सामने लाई थी (देखें बाॅक्स). यह सर्वविदित है कि नोटबंदी से काला धन पर कोई असर नहीं होता है.

  • 1 दिसम्बर तक 77% बंद नोट बैंकों में जमा हो चुके थे. अब तक लगभग सारे नोट बैंकों में वापस चुके हैं. जाहिर है कि काला धन नष्ट नहीं हुआ है और न ही काले धंधे वालों को पकड़ा गया या सजा मिली.

  • सरकार ने साथ ही साथ काला धन रखने वालों के लिए एक लीपापोती योजना (वाॅलण्टरी इन्कम डिस्क्लोजर स्कीम) शुरू कर दी. यानि, काला धन के जमाखोरों का बाल भी बांका नहीं होने दिया.

2014 के चुनावों में मोदी का ‘जुमला’ था ‘विदेशी बैंकों से काला धन वापस लाना’ और ‘जनता के सभी खातों में 15 लाख रुपये जमा कराना’. 8 दिसम्बर की नोटबंदी के बाद ‘काला धन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक’ नया ‘जुमला’ बन गया. और अब, काला धन पर चुप्पी साध कर ‘कैशलेस इकोनाॅमी’ ताजातरीन जुमला है. कोई बता सकता है कि अगला ‘जुमला’ क्या होने वाला है?

नोटबंदी पर भाजपाई यू-टर्न

मोदी बता रहे हैं कि इन्दिरा गांधी समेत कांग्रेस की पिछली सरकारों में इतनी हिम्मत ही नहीं थी कि नोटबंदी जैसा फैसला ले सकतीं. वे जानबूझ कर झूठ बोल रहे हैं – सच तो यह है कि यूपीए सरकार के काल में रिजर्व बैंक ने जब आंशिक नोटबंदी का फैसला लिया तब भाजपा ने इसे ‘गरीब विरोधी’ बताया था!

2014 में रिजर्व बैंक ने 2005 से पहले छपे नोटों को वापस लेने की घोषणा की थी, तब भाजपा ने काफी कड़े शब्दों में इसका विरोध किया था. हालांकि आज की नोटबंदी के मुकाबले यह कदम कुछ भी नहीं था.

तब भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी ने कहा था:

“काले धन वाले, शहरों के और साधन-सम्पन्न लोग पुराने नोटों को नये नोट से बदलवा लेंगे. परन्तु गरीब, आम औरत व आदमी, या वे महिलायें जिन्होंने पति से छिपा कर कुछ पैसा बचा के आटे के डिब्बे, या दाल-चावल में छिपा कर रखा है – ऐसे लोगों पर नोटबंदी का असर पड़ेगा.”

लेखी ने कहा था कि डाॅलर या अन्य विदेशी मुद्राओं में बचत करने वालों को नुकसान नहीं होगा, लेकिन जिनकी नकदी रुपयों में है इससे बुरी तरह प्रभावित हो जायेंगे. तब उन्होंने कहा था कि ऐसा कदम ‘गरीबों पर अनुचित हमला’ है और मांग की थी कि “कितनी करेंसी बरबाद होगी, उसमें से कितनी ग्रामीण भारत में है, और गरीबों पर इस कदम के दुष्प्रभावों के आकलन पर रिजर्व बैंक एक रिपोर्ट प्रकाशित करे.”

यूपीए सरकार करे तो आंशिक नोटबंदी भी गरीब विरोधी है, परन्तु भाजपा सरकार की इतने बड़े पैमाने पर, अचानक, गुप्त तरीके से फैसला ले कर की गई नोटबंदी जिससे चारों ओर अफरा-तफरी और भारी संकट खड़ा कर दिया कैसे ‘गरीबों के फायदे’ में? क्या भाजपा मोदी ‘ऐप’ के छल-कपट वाले सर्वे का प्रचार करना छोड़, नोटबंदी के दुष्प्रभावों की निष्पक्ष जांच के लिए तैयार है?