• रिजर्व बैंक के पूर्व उप-गवर्नर के.सी. चक्रवर्ती ने इस बात को ऐसे समझायाः “अगर आप एक किलो चावल खरीदें तो उसमें कुछ पत्थर भी होते हैं. आप उन कंकड़-पत्थरों को बीन कर निकाल देते हैं, पूरा चावल नहीं फेंकते. इसी तरह कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार अधिकारियों का काम है कि वे जाली नोटों और उन्हें बनाने वालों को पकड़ें एवं उन पर कार्यवाही करें. लेकिन यहां तो आम जनता को अपना ही पैसा निकालने के लिए लाइनों में खड़ा करवा दिया है क्योंकि आयकर विभाग और पुलिस आदि बिल्कुल नाकारा हैं ...”

  • नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेन्सी ;एन.आई.ए.द्ध के कहने पर कोलकाता स्थित भारतीय सांख्यिकीय संस्थान ने जाली नोटों पर एक अध्ययन किया था जिसके अनुसार भारत में कुल जाली नोट करीब 400 करोड़ रुपयों के करीब है. जिनमें रु. 100 और 500 के नोट लगभग बराबर मात्रा में हैं. मान लीजिये कि नोटबंदी की कवायद में 350 करोड़ के जाली नोट बेकार कर दिये गये. इसके लिए 15 लाख करोड़ के नोट बदल कर जनता को इतने भारी संकट में डाल देना कितनी समझदारी की बात है? ऊपर से नये नोटों में भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं और नयी करेंसी के जाली नोट भविष्य में भी बनेंगे. यह नल को खुला छोड़ कर फर्श पर पानी झाड़ने के बराबर है जिसका कभी अंत नहीं होगा.

नरेन्द्र मोदी ने ऐसे बदले भाषण

(फस्र्टपोस्ट, 5 दिसम्बर 2016, में प्रवीन चक्रवर्ती के लेख से)

प्रधानमंत्री की निजी वेबसाइट के अनुसार उन्होंने 13 से 27 नवम्बर के बीच देश भर में नोटबंदी पर 6 भाषण दिये, जिनमें रेडियो पर ‘मन की बात’ शामिल है. ये पूरे भाषण वेबसाइट पर मौजूद हैं.

इन भाषणों के (अनुवाद के बाद) डाटा विश्लेषण से पता चलता है कि नोटबंदी की कार्यवाही व उसके उद्देश्यों को लेकर उनका कथन भाषण दर भाषण बदलता गया.

नोटबंदी की घोषणा वाले 8 नवम्बर के भाषण में प्रधानमंत्री ने जितनी बार ‘जाली नोट’ बोला उससे चार गुना बार ‘काला धन’ शब्दों को प्रयोग किया.

27 नवम्बर आते आते अपने भाषण में उन्होंने जितनी बार ‘काला धन’ बोला उससे तीन गुना ज्यादा बार ‘डिजिटल/कैशलेस’ शब्दों को बोला, और ‘जाली नोट’ का तो जिक्र ही नहीं था. याद करिये, 8 नवम्बर के भाषण में ‘डिजिटल/कैशलेस’ पूरी तरह से गायब था.