(26 जुलाई 1994 के पटना में आइसा द्वारा आयोजित समानांतर छात्र असेम्बली में दिया गया उदघाटन भाषण,
समकालीन लोकयुद्ध, 15 अगस्त 1994 से)

करीब एक साल पहले इसी जगह छात्र असेम्बली हुई थी. मैं उसमें शामिल था. वहां आपके छात्र संगठन आइसा ने राज्यव्यापी छात्र आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया था. उसके बाद से बिहार में छात्र आंदोलन की एक नई लहर आई. उसकी शुरूआत आइसा ने की थी. एक लड़ाकू छात्र आंदोलन बिहार की धरती से आइसा के नेतृत्व में उठना शुरू हुआ. आपने, आपके संगठन ने यह भी कोशिश की कि तमाम जो वामपंथी छात्र संगठन हैं, लोकतांत्रिक छात्र आंदोलन हैं, सबको एक साथ लेकर इस आंदोलन को और तेज किया जाए. आपकी हमेशा कोशिश रही कि सरकार के द्वारा वार्ता के नाम पर आपके आंदोलन को स्तब्ध करने की कोशिशों को नाकाम कर दिया जाए, आपकी एकता के बीच फूट डालने, दरार पैदा करने की साजिशों को खत्म कर दिया जाए. मैं यह कहूंगा कि इस मामले में आइसा ने सरकार की कोशिशों को नाकाम बनाया. इन तमाम प्रक्रियाओं के जरिए आइसा आज बिहार के छात्र आंदोलन में सबसे दृढ़, उसूली तौर पर खड़ा हुआ अग्रदूत संगठन बन चुका है.

आज के नए दौर में आपके सामने नए-नए कार्यभार भी हैं. आज आपकी बिहार के व्यापक आम छात्र समुदाय की इच्छा-भावनाओं, उनकी आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करना होगा. आपको व्यापक छात्र एकता के लिए कोशिश करनी होगी. आज आपको एक संगठित आंदोलन की शुरूआत करनी होगी. दो-चार-दस छात्र-नौजवानों को लेकर कुछ बिखरे ऐक्शन एक शक्तिशाली छात्र आंदोलन की जगह नहीं ले सकते. आज इस बात की जरूरत है कि आप एक शक्तिशाली, एक संगठित छात्र आंदोलन की शुरूआत करें. एक साल पहले आपने जो कार्यक्रम इस असेम्बली के जरिए ठीक किए थे उन्हें आपने पूरी लगन-मेहनत के साथ पूरा किया. इसके लिए आपको पुलिस की लाठियां खानी पड़ी. मेरा विश्वास है कि इस असेम्बली के जरिए जो नए कार्यभार ठीक करेंगे उसे भी आप अवश्य पूरा कर दिखाएंगे. आपमें वह लगन है, आपमें वह हिम्मत है, मैं यह पूरा विश्वास करता हूं.

छात्र आंदोलन का सवाल जब भी आता है, उसकी दिशा का सवाल सबसे महत्वपूर्ण बनता है. बिहार की खास परिस्थितियों में छात्र आंदोलन को, छात्र संगठन को एक विशिष्ट दिशा लेकर चलना होगा. छात्र आंदोलन के जरिए जिस छात्र शक्ति का, छात्र-ऊर्जा का निर्माण, उसका इस्तेमाल आपको सामाजिक परिवर्तन के लिए करना होगा. बिहार में जो परिस्थिति है, चारों तरफ जो सड़ांध है, भ्रष्टाचार है, जातिवाद का माहौल है इस सबसे उबरने की ताकत सिर्फ इस छात्र आंदोलन में ही है. इस आंदोलन से निकलते वाली शक्ति को, ऊर्जा को एक आमूल बदलाव के लिए चालित करना होगा. यह आपके सामने बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यभार है, आपकी दिशा है. मैं यह कहना चाहूंगा कि छात्र आंदोलन को यथास्थितिवादी राजनीतिक शक्तियों की आपसी उठा-पटक का मोहरा नहीं बनने देना चाहिए. आपको इस आंदोलन में एक नई दिशा देनी होगी, इसकी दिशा बदलनी होगी.

जब हम 1974 की बात करते हैं, उसकी याद करते हैं, तो हम उन्हीं संदर्भों में उसको याद करते हैं. वह एक कोशिश थी, एक प्रयास था जिसने स्थापित राजनीतिक उठा-पटक के मोहरे के बतौर नहीं बल्कि छात्र आंदोलन में पूरी राजनीति को ही एक नई दिशा देने की कोशिश की थी. वह प्रयास असफल रहा, असंपूर्ण रहा. लेकिन बाद में जो प्रयास होंगे, उसमें यही कोशिश करनी होगी और जब मैं यह कहता हूं कि छात्र आंदोलन को यथास्थितिवादी राजनीतिक ताकतों का मोहरा बना लेने की साजिश के खिलाफ आगे बढ़ना होगा, मै इसमें यहां के वामपंथी आंदोलन की भी जो पुरानी धारा है, जिसके जरिए भी छात्र आंदोलन की क्रांतिकारी ऊर्जा को रोक दिया जाता है, मैं इस किस्म की वामपंथी राजनीति के खिलाफ भी विद्रोह करने की बात करता हूं.

छात्र आंदोलन को आपको आगे बढ़ाना है, राजनीति के वर्तमान मूल्यों के अंग बन जाने के लिए नहीं, बल्कि नए राजनीतिक मूल्यों की प्रस्थापना करने के लए. यह आपके सामने, बिहार के छात्र आंदोलन के सामने एक विशेष, एक खास जिम्मेदारी है. आपके सामने एक विशेष कार्यभार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का है. भ्रष्टाचार का सवाल बिहार के संदर्भों में सिर्फ कुछ व्यक्तियों द्वारा कुछ संपत्ति कमा लेने, कुछ पैसे बना लेने की बात नहीं है. भ्रष्टाचार बिहार में जिस पैमाने पर, जिस दर्जे तक और जिस तरह चलाया जाता है, जिस तरीके से वह संस्थाबद्ध हो चुका है, वह पूरे बिहार के विकास की प्रक्रिया को ध्वस्त कर देता है, पूरे बिहार के विकास की प्रक्रिया में वह एक परजीवी के रूप में काम करता है और पूरे बिहार को पिछड़े हालातों में रखने और उसे और भी पीछे ले जाने का काम करता है. इसीलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का सवाल, कुछ व्यक्तियों के खिलाफ लड़ने भर की बात नहीं है. आप देखेंगे कि बिहार में जो भी पंचवर्षीय योजनाएं बनी हैं, उनकी राशि तक यहां नहीं आ पाती, उसका खर्चा नहीं हो पाता है. इसीलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का सवाल आपके सामने अहम है. बिहार के विकास के लिए अवश्यंभावी है. आपने आह्वान दिया था कि जो भ्रष्ट मंत्री हैं, भ्रष्ट विधायक हैं, जो कारपोरेशन के भ्रष्ट चेयरमैन हैं, जो भ्रष्टाचार की संस्था के नायक हैं, उनके खिलाफ आइसा जुझारू जन प्रतिरोध चलाएगी, उनसे सवाल पूछेगी. मैं समझता हूं कि वह समय आ गया है. आपका संगठन वह पहला संगठन था जिसने इस मुद्दे पर आवाज उठाई. आज यह सिर्फ आपकी नहीं, पूरे बिहार की आम जनता की आवाज बन चुकी है. आपने यह मांग उठाई थी, इसीलिए आपकी जिम्मेवारी बनती है इस मांग को अमली रूप देने के लिए सीधी कार्रवाई में उतरने की. जो मांग आपने उठाई थी, जिसका प्रचार आपने किया था – सारे बिहार की जनता ने उस मांग को अपनाया है. आज आपसे उनकी मांग है कि आप इस आंदोलन को आगे बढ़ाएं और इस संदर्भ में आप सीधी कार्रवाई में उतरने का फैसला लें. यह आपके सामने आने वाली दिशा है, कार्यभार है.

इतिहास के बड़े-बड़े सामाजिक-राजनीतिक मसले विधानसभाओं, संसदों की चहारदीवारियों के अंदर कभी हल नहीं हुआ करते. इतिहास में हमेशा महत्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक मसले सड़कों की लड़ाइयों के जरिए हल हुआ करते हैं और इन लड़ाइयों में संसदों और विधानसभाओं को कभी-कभी कहीं-कहीं इतिहास में बमबार्ड भी कर दिया जाता है. यही आंदोलन के बढ़ने का इतिहास है.

आपने अपने आंदोलन की शुरूआत की थी विधानसभा के समक्ष एक जुझारू प्रदर्शन के जरिए. मैं उम्मीद करूंगा कि आप एक बार फिर और भी बड़ी छात्र-गोलबंदी के साथ सत्ता की गद्दी के सामने सवाल उठाएंगे. तमाम भ्रष्ट लोगों के लिए और भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारियों के लिए आइसा का नाम एक आतंक बन जाना चाहिए, थरथराहट का पर्याय बन जाना चाहिए.

यही मेरी आपसे अपील है, यही मेरा विश्वास है.