इसमें कोई संदेह नहीं कि यह संकट वैश्विक है, मगर पूंजीवाद के असमान विकास का मूल नियम इस मामले में भी लागू होता है. इसलिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आप जर्मनी, अमरीका और चीन के प्रदर्शन अथवा उनकी स्थिति की समानता, मसलन, स्पेन, ग्रीस और यहां तक कि फ्रांस से भी नहीं कर सकते, अपेक्षाकृत गरीब देशों की बात तो जाने ही दीजिये.

यूरो जोन में शामिल देशों के प्रदर्शन में भारी असमानता को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता. जबकि दक्षिणी यूरोप गहरे, दीर्घकालीन अवसाद (डिप्रेशन) में फंसा हुआ है, वर्ष 2011 में जर्मनी द्वारा निर्यात 1,000 अरब यूरो की रिकार्ड मात्रा पर जा पहुंचा जबकि उसका व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) 158 अरब यूरो तक पहुंच गया, और इससे पहले वर्ष 2010 में उसका व्यापार अध्शिेष 155 अरब यूरो था (बीबीसी न्यूज, 8 फरवरी, 2012). यकीनन, इससे जर्मनी में अनिवार्य रूप से हो रहे धीमेपन (स्लो डाउन) के हाल के आंकड़ों को अनदेखा नहीं किया जा सकता.

और फिर, नौजवानों की बेरोजगारी (16 वर्ष से लेकर 25 वर्ष की आयु के रोजगार चाहने वालों) के मामले में आंकड़ों में विषमता बिल्कुल स्पष्ट है: स्पेन में 48.7 प्रतिशत, ग्रीस में 47.2 प्रतिशत, इटली में 31 प्रतिशत, पुर्तगाल में 30.7 प्रतिशत, लेकिन वहीं जर्मनी में 7.8 प्रतिशत, आॅस्ट्रिया में 8.2 प्रतिशत और नीदरलैंड में 8.6 प्रतिशत. दक्षिणी यूरोप के देशों में केन्द्रित नौजवानों की ऊंची मात्रा में बेरोजगारी ही इस बात को दर्शाती है कि क्यों वहां जनता द्वारा सड़कों पर किये जा रहे प्रतिवाद भी उभरे हैं. सिक्के का दूसरा पहलू यह तथ्य है कि नौजवानों की भारी मात्रा में बेरोजगारी नियोक्ताओं को पुराने स्थायी मजदूरों को, जो अपेक्षाकृत ऊंची मजदूरी पा रहे हैं, काम से हटाने की धमकी देने के आसान औजार के बतौर इस्तेमाल करने का मौका देती है.

हमें इस बात को भी सावधनी से नोट करना चाहिये कि जहां मेहनतकश लोग और साथ ही पूंजीवादी व्यवस्था भी बुरी तरह संकट का शिकार हैं, वहीं सबसे ऊंची पायदान के 1 प्रतिशत के पास पर्याप्त जोड़-तोड़ और दांव-पेंच के अवसर मौजूद हैं जिससे वे अपने खजाने में भारी इजाफा करते जा रहे हैं. इस तरह अमरीका में, “एस एंड पी-500 (साख के मुताबिक दर्जा तय करने वाली अमरीकी एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर द्वारा चिन्हित सर्वोच्च 500 कम्पनियों) द्वारा कमाया गया मुनाफा पिछले तीन वर्षों के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6 प्रतिशत से छलांग लगाकर 9 प्रतिशत हो गया है, इतना बड़ा हिस्सा तो आखिरी बार तीन पीढ़ियां पहले हासिल किया गया था.” (फाइनेंशियल टाइम्स, 13 फरवरी, 2012). एक अन्य अध्ययन की रिपोर्ट है कि “अमरीकी कारपोरेट कम्पनियों का मुनाफा जीडीपी के हिस्से के बतौर 1950 के बाद किसी भी समय की तुलना में अधिक है.” (फाइनेंशियल टाइम्स, 30 जनवरी, 2012).

विलियम के. टैब ने न्यूयार्क सिटी में 2012 लेफ्ट फोरम के पूर्णांग सत्र में भूमिका वक्तव्य के बतौर पेश किये गये निबंध ‘द क्राइसिस, ए व्यू फ्राम अॅकुपाइड अमेरिका’ में चिन्हित किया था कि वर्ष 2009 और 2011 के बीच राष्ट्रीय आय में वृद्धि का 88 प्रतिशत हिस्सा कारपोरेट मुनाफे के खाते में गया है, जबकि उसका केवल 1 प्रतिशत वेतन में लगा है. निजी आमदनी के लिहाज से वर्ष 2010 में (हमारे पास अंतिम आंकड़े इसी वर्ष तक उपलब्ध हैंद्ध समूची आय प्राप्तियों का 93 प्रतिशत हिस्सा सर्वोच्च 1 प्रतिशत अमरीकियों के पास गया है. वाॅल स्ट्रीट जर्नल में काफी पहले छपी एक खबर में कहा गया था कि “अमरीकी कम्पनियां पहले के किसी भी समय की अपेक्षा ज्यादा ऊंचा मुनाफा कमा रही हैं. लेकिन मुनाफे में से कारपोरेट टैक्स के बतौर होने वाली प्राप्तियों का हिस्सा कम से कम 40 वर्षों की अवधि में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है.”

मूल बात यह है कि पूंजीपति वर्ग- सबसे पहले तो वाॅल स्ट्रीट के बैंकरों की जमात ने एक जीवन-संकट तो अवश्य झेला था, लेकिन नवउदारवादी राज्य द्वारा सार्वजनिक खजाने से निकालकर कारपोरेट सेक्टर के हाथों अभूतपूर्व पैमाने पर विशाल मात्रा में किये गये सम्पदा के हस्तांतरण ने जल्द ही उनका मुनाफा पहले की स्थिति में ला दिया और पूंजी का और बड़े पैमाने पर संकेन्द्रण कर दिया. बड़ी वित्तीय निगमों को संकट से राहत के बतौर जो राशि मिली उसका इस्तेमाल अनैतिक गतिविध्यिां जारी रखने में किया और वे स्वरूप में वर्ष 2007 से कहीं ज्यादा विशाल बन गईं.

हाल में, दक्षिणी यूरोप के देशों द्वारा कर्ज न चुकाये जाने के चलते फ्रांस, जर्मनी और इंगलैंड में बैंकों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है. वे और अधिक ‘बाल-कटाई’ के लिये तैयार हो रहे हैं. लेकिन जहां आम शेयरधारकों को नुकसान उठाना पड़ता है, वहीं कारपोरेट सरगनों को, जो यूं तो नुकसान झेलते नहीं हैं, फिर भी पूरा पता होता है कि कैसे अपने नुकसान की तेजी से भरपाई कर ली जाय और निजी तौर पर अपने संचय के अभियान को कैसे जारी रखा जाय.