पूंजी किसी तरह संकट से बच निकलने और अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के साथ-साथ अपने मुनाफे को बरकरार रखने के लिये ऐसे विभिन्न उपाय अपनाती है जो जनता के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करते हैं और उनको उग्र प्रतिरोध संघर्षों में धकेल देती है.

अमरीका के पैटको संघर्ष और ब्रिटेन के कोयला मजदूरों की हड़ताल के दिनों से ही नवउदारवादी राज्य पूंजी की एजेंसी की भूमिका निभाते हुए मजदूर वर्ग से वे अधिकार और वेतन के स्तर को वापस छीन लेने की कोशिश करता रहा है, जिन अधिकारों और वेतन स्तर को मजदूरों ने एक सदी से ज्यादा अरसे तक अपना बेशुमार खून-पसीना बहाकर कटु संघर्षों के माध्यम से अर्जित किया है. स्वाभाविक है कि मजदूर हर जगह इन “लचीली श्रम नीतियों” और “श्रम बाजार में सुधार” के खिलाफ संघर्ष चला रहे हैं. हमारे देश में भी हमने औद्योगिक मजदूरों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर की गई कार्रवाइयों को तथा गुड़गांव-मानेसर बेल्ट में, तमिलनाडु के कोयम्बटूर और श्रीपेरुम्बदूर में तथा दर्जनों अन्य स्थानों पर औद्योगिक मजदूरों के सशक्त संघर्षों को देखा है, महिला मजदूरों के बढ़ते जत्थों समेत निर्माण मजदूरों एवं आकस्मिक असंगठित मजदूरों के अन्य हिस्सों, बैंक और सरकारी कर्मचारियों, इत्यादि के संघर्षों को देखा है.

समूची दुनिया में जुझारू आंदोलनों की शृंखला के शीर्ष पर हैं वर्ष 2012 के शुरूआती दिनों में स्पेन में और अगस्त में दक्षिण अफ्रीका में खान मजदूरों की हड़तालें -- दक्षिण अफ्रीका में तो करीब 34 मजदूरों को जान से हाथ धोना पड़ा. इन हड़तालों को देश और विदेश में भारी जन समर्थन मिला. चीन में स्वतंत्र ट्रेड यूनियन आंदोलन की अनुपस्थिति के चलते बहुराष्ट्रीय कम्पनियां लम्बे अरसे से अति-अनुशासित श्रम शक्ति का अतिरिक्त शोषण करती आ रही हैं, मगर हाल के वर्षों में मजदूरों ने अपना दावा पेश करना शुरू कर दिया है. सितम्बर में फाॅक्सकाॅन प्लांट में सिक्योरिटी गार्डों के साथ मजदूरों की बड़े पैमाने पर तीखी मुठभेड़ ऐसी ही एक घटना है.

अतिशय सरकारी कमखर्ची के अभियान के अंग के बतौर शिक्षा बजट में तीखी कटौती और शिक्षा उद्योग को निजी मुनाफाखोरों द्वारा दुहे जाने के लिये खोल देना वैश्विक शिक्षण समुदाय, जिसमें छात्र, शिक्षक (उदाहरणार्थ, हाल में शिकागो में) एवं अन्य लोग शामिल हैं, के सामने लड़ाई के एक प्रमुख मुद्दे के बतौर उभरा है. वर्ष 2010-11 में ब्रिटेन से लेकर चिली, फ्रांस तथा कुछेक अन्य देशों में और इस वर्ष कनाडा में छात्रों ने अपने शिक्षण सम्बंधी प्रतिवादों को स्वास्थ्य सेवा के बढ़े हुए शुल्क, सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को काम से निकाले जाने, फैक्टरियों को बंद करने, यूनियन संगठित करने पर नये-नये प्रतिबंध थोपने, इत्यादि के खिलाफ चलाये जा रहे अन्य जन-संघर्षों के साथ जोड़ा है और उनको व्यापक जनसमर्थन मिला है.

दुनिया भर में कारपोरेट कम्पनियों द्वारा जमीन एवं संसाधनों को हड़पे जाने के कारण खेतिहर लोगों (बड़े किसानों से लेकर मध्यम एवं छोटे किसानों एवं खेत मजदूरों तक) और आदिवासी-मूलवासियों का पूंजी और उसके राज्य के खिलाफ तीखा टकराव चल रहा है. पेप्सी और मोन्सांटो जैसी बहुतेरी कृषि-व्यवसायी कम्पनियों के खिलाफ और साथ-ही-साथ वालमार्ट जैसी खुदरा बिक्री शृंखलाओं के खिलाफ भी संघर्ष बढ़ते जा रहे हैं.