संकट में फंसी पूंजी के खिलाफ संघर्षों का हमारा सर्वेक्षण अक्षम्य रूप से अधूरा रह जायेगा अगर हम यहां लैटिन अमरीका का उल्लेख नहीं करते. कारण यह कि लैटिन अमरीका ही वह जगह है जहां सड़कों पर चले लम्बे और कठोर संघर्षों के फलस्वरूप कई देशों में लोकप्रिय सरकारों का उदय हुआ है, जो अमरीकी वर्चस्व वाले विरोधी विश्व आर्थिक वातावरण में जिस हद तक संभव है, उस हद तक भांति-भांति की नवउदारवाद-विरोधी नीतियों पर अमल करने की कोशिश कर रहे हैं. उदाहरणार्थ, जैसा कि जेम्स पेट्रास ने दर्शाया है, वेनीज्वेला में “अपराध एवं सरकारी अक्षमता तथा भ्रष्टाचार के बावजूद शैवेज का शासनकाल निम्न वर्गों एवं व्यावसायिक, वाणिज्यिक एवं वित्तीय परिक्षेत्रों के लिये अत्यंत अनुकूल साबित हुआ है. यह वर्ष -- 2012 -- इसका अपवाद नहीं है. संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुसार, वेनीज्वेला की वृद्धि दर (5 प्रतिशत) अन्य देशों, जैसे अर्जेंटीना (2 प्रतिशत), ब्राजील (1.5 प्रतिशत) और मेक्सिको (4 प्रतिशत) से आगे निकल गई है. श्रम बाजारों में वृद्धि, ऋण एवं सार्वजनिक निवेश के बढ़ने के कारण निजी उपभोग वृद्धि की मुख्य चालक शक्ति बन गया है. (वेनीज्वेलन इलेक्शंस: ए च्वायस एंड नाॅट एन ईको, 4 अक्टूबर 2012)

वेनीज्वेला, बोलीविया, इक्वेडोर जैसे देशों ने जिस कदर प्रभावशाली प्रगति हासिल की है और जिन कठिन चुनौतियों का वे मुकाबला कर रहे हैं, वह इतना विशाल विषय है कि यहां उस पर विचार नहीं किया जा सकता, मगर यकीनन वे उन तमाम लोगों के लिये प्रेरणा के स्रोत हैं जो पूंजी की बेड़ियों को तोड़ने और अधिक विवेकसम्मत समाज के निर्माण के लिये संघर्ष कर रहे हैं.