(समकालीन जनमत, 14 अक्टूबर – 20 नवम्बर 1990 अंक से)

साथियों,

पार्टी की केंद्रीय कमेटी की ओर से मैं आप सबका अभिवादन करता हूं.

आज देश का कोना-कोना जल रहा है. देश की एकता और अखंडता का दिन-रात जाप करने वाले उसे तोड़ने का पूरा इंतज़ाम किए नजर आते हैं. दिलों को जोड़ने की शायरी करने वाले दिलों को तोड़ने का ही काम कर रहे हैं. पंजाब, कश्मीर, असम की समस्याओं को लेकर अब यहां तक कि किसी राजनीतिक दल की चर्चा भी नहीं हो रही है. सांप्रदायिक-फासीवादी दर्शन के तहत हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़काने की रथयात्रा चल चुकी है. हिन्दी को लेकर उत्तर-दक्षिण विवाद और पूरे उत्तर-मध्य भारत में अगड़ों-पिछड़ों के बीच जाति युद्ध का नगाड़ा बज रहा है.  ऐसे एक माहौल में देश के कोने-कोने से आए लाखों मेहनतकशों की आवाज, चारों ओर लहराते लाल झंडे एहसास कराते हैं कि असली मुद्दे दूसरे हैं, इस बात का संकल्प हैं कि एक लड़ाई है जो हमें मिलकर लड़नी है, एक घोषणा है कि तुम सब अपने-अपने लिए अपना वादा निभाते रहो, हम तो बस अपना दावा जताने आए हैं.

फिलहाल आरक्षण के खिलाफ, मंडल कमीशन के खिलाफ, देश के कई हिस्सों में छात्र-नौजवान अपना गुस्सा जता रहे हैं, यहां तक कि कई नौजवानों ने आत्मदाह भी कर लिया. हम मानते हैं कि ब्राह्मणवादी विचारधारा के कुछ मठाधीश इस आंदोलन का इस्तेमाल देश को मध्ययुगीन स्थितियों में ढकेलने के लिए कर रहे हैं. हम यह भी जानते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी सरीखी पार्टियां एवं जनता दल का ही देवीलाल गुट इस आंदोलन को अपने राजनीतिक स्वार्थ में इस्तेमाल करना चाह रहे हैं. इस सबके बावजूद हमारी मान्यता है कि बेरोजगारी और अंधकारपूर्ण भविष्य के प्रति विद्रोह ही छात्रों, नौजवानों के बड़े हिस्से की शिरकत की असलियत है. कल तक जिस वीपी सिंह को ये मध्यवर्गीय नौजवान एक आदर्शवादी मसीहा मानते थे, आज जब उन्होंने समझा कि ये महाशय भी चाणक्य की चाल में मंजे एक धूर्त राजनीतिक खिलाड़ी भर हैं, तो उनका गुस्सा फट पड़ा.

हम जिस तरह उन राजनीतिज्ञों के खिलाफ हैं जो बाबर का बदला उसकी आज की ‘संतानों’ से लेना चाहते हैं, वैसे ही हम उन सिद्धांतकारों के भी खिलाफ हैं जो मनु का बदला उसकी आज की संतानों से लेना चाहते हैं. हम फिर कहेंगे कि सरकार का पहला काम होना चाहिए था अपने ही किए वायदे के मुताबिक “रोजगार के अधिकार को मौलिक अधिकार” के रूप में मान्यता देना, बड़े पैमाने पर रोजगार की योजनाओं की घोषणा करना, जो छात्रों-नौजवानों में यह विश्वास पैदा करता कि रोजगार की संभावनाएं बढ़ रही हैं. ऐसे एक माहौल में, मंडल कमीशन की अनुशंसाएं लागू करने से छात्रों और नौजवानों को सामाजिक न्याय की लड़ाई में जरूर शामिल किया जा सकता था, ब्राह्मणवादी मठाधीशों और प्रतिक्रियावादी राजनीतिक ताकतों के चंगुल से उन्हें अलग किया जा सकता था. रोजगार के बारे में सरकारी सोच में गंभीरता या सामाजिक न्याय की लड़ाई में प्रतिबद्धता का एहसास यह सरकार करा ही नहीं पाई. पूरा मामला अपने संकीर्ण गुटगत राजनीतिक स्वार्थ में सोची-समझी चाल के सिवा कुछ था भी नहीं, और इसी तरह ही उसका पर्दाफाश भी हुआ.

हम यह भी कहेंगे कि छात्र-नौजवानों का यह आंदोलन नकारात्मक ढंग से बढ़ रहा है. उन्हें अपना निशाना पिछड़ों के 27 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ नहीं बल्कि रोजगार के मौलिक अधिकार को बनाना चाहिए. हमने इसीलिए ‘काम दो’ के नारे पर इस रैली का आयोजन किया है और हम छात्रों-नौजवानों से अपील करेगे कि वे इस बुनियादी अधिकार के लिए लड़ाई में शामिल हों.

हम अवश्य ही दलितों और पिछड़ी जातियों के लिए नौकरियों में आरक्षण के पक्ष में हैं. आरक्षण के प्रति हमारा समर्थन वीपी सिंह की कुटिल राजनीतिक चाल के प्रति समर्थन नहीं है. आरक्षण के प्रति हमारा समर्थन लोहियावादी सिद्धांतों के प्रति समर्थन नहीं है, जिसमें समाजवाद की अवधारणा को पिछड़ावाद की राजनीति में पतित कर दिया है.

आरक्षण के प्रति हमारे समर्थन का मतलब दलितों को हमलावर पिछड़ी जातियों के पीछे-पीछे उनके जातियुद्ध में सड़कों पर उतारना नहीं है. आरक्षण के प्रति हमारे समर्थन का मतलब लाल झंडे को हरे झंडे का पिछलग्गू बनाना, हंसुआ-हथौड़े को चक्र के नीचे दबाना नहीं है.

हम लाल झंडे की स्वतंत्रता के हिमायती हैं, हम लाल निशान को लालकिले पर सबसे ऊंचा फहराने का सपना देखते हैं और इसके लिए हमने हर कुर्बानी दी है और देते रहेंगे. हमारा आधार दलितों के बीच है किन्तु वह श्री कांशीराम सरीखों के दलितवाद के खिलाफ लड़कर भी है. हमारा आधार पिछड़ी जातियों में बढ़ता रहा है लेकिन वह मुलायम सिंह, लालू यादव सरीखों के पिछड़ावाद के खिलाफ लड़कर भी बना है. दलितों के बीच से उभरते हुए नवब्राह्मणों के खिलाफ भी हमारी लड़ाई है. पिछड़ों के बीच उभरते अगड़ों के दलित-विरोधी हमलों से भी हमें बिहार में हमेशा ही लड़ना पड़ा है. तथाकथित ऊंची जातियों के प्रबुद्ध लोग और उनके गरीब तबके भी क्रमश: हमसे जुड़ रहे हैं.

हम उन तथाकथित प्रगतिवादियों से सहमत नहीं हैं, जो मानते हैं कि हमारा भारतीय समाज नेहरू के सुधारों के चलते जातिवादी-सामंती विभाजन से हटकर आधुनिक समाज में बदल चुका है और आरक्षण उसे पीछे ले जाएगा. यह हिंदुस्तान की असलियत नहीं है.

हम आरक्षण के समर्थक इसलिए हैं कि यह तनावों की प्रक्रिया से गुजरकर पिछड़ों-अगड़ों के बीच पुराने विभाजन को एक हद तक कम करेगा, पिछड़ों के ‘पिछड़ा बोध’ और अगड़ों के ‘अगड़ा बोध’ को चोट देगा और जैसे आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन में, वैसे ही नौकरशाही में – दोनों में समानता लाएगा, जैसे ऊपरी तबकों में एक वर्ग के बतौर उनमें एक रिश्ता कायम करेगा, वैसे ही निचले स्तरों में भी उन्हें नजदीक लाएगा. सामंती, पुरातनपंथी किसी भी धारणा पर चोट, बुर्जुआ जनवादी कोई भी छूट, वह चाहे कितनी ही सतही क्यों न हो, समाज के वर्ग विभाजन को ही तेज करती है. और कम्युनिस्ट होने के नाते, वर्ग संघर्ष के पैरोकार होने के नाते हम ऐसे किसी भी विभाजन का स्वागत करते हैं.

आरक्षण का समर्थन करने वाली तमाम वामपंथी ताकतों से हमारी अपील है कि आइए किसी वीपी सिंह, किसी रामविलास पासवान, किसी शरद यादव, किसी मुलायम सिंह, किसी लालू यादव के पीछे-पीछे नहीं, बल्कि हम सब मिलकर एक स्वतंत्र आवाज के रूप में उभरें. आरक्षण के लिए संघर्ष को रोजगार के मौलिक अधिकार के हमारे संघर्ष का ही एक हिस्सा बना दें. हिन्दी भाषी क्षेत्रों में हम कम्युनिस्ट और क्रांतिकारी जनवादी लोग, बार-बार ऐसे मोड़ों पर पिछड़ गए हैं, व्यावहारिकता के नाम पर लोहियावादी और किस्म-किस्म की जातिवादी धाराओं के सामने या तो निष्क्रिय हो गए हैं या उनके पीछे-पीछे चले हैं. यही वजह है कि आज भी हम यहां कम्युनिस्ट-वामपंथी धारा को मजबूत नहीं कर पाए हैं. बिहार में आज वामपंथ का झंडा मजबूती से खड़ा है जिसे न बहुजन समाज पार्टी का दलितवाद हिला सका है, न लोकदल सरीखों का पिछड़ावाद. बुनियादी वर्गीय आधार पर हमने ब्राह्मणवादी परंपरा के खिलाफ दलितों और पिछड़ों की एक नई किस्म की गोलबंदी को भी अंजाम दिया है. आइए, इस मजबूत आधारशिला पर वामपंथ अपनी आवाज बुलंद करें.

पूर्वी यूरोप में, रूस में जो भी हो, हमारे अपने देश में वामपंथ का, कम्युनिस्ट पार्टी का भविष्य अवश्य ही उज्ज्वल है. जनवाद के लिए किसी भी लड़ाई का नेतृत्व वामपंथियों को ही देना है. सीपीआई और सीपीआई(एम) के अपने दोस्तों से हम फिर कहना चाहेंगे -- हमारी लड़ाई आपके खिलाफ नहीं है. राजनैतिक लाइन के सवालों पर, नीतियों के बहुत से मुद्दों पर आपसे हमारे मतभेद हैं, जिन पर हम चाहते हैं एक स्वस्थ बहस की शुरूआत हो. आप जहां सरकारें चला रहे हैं वहां आपके जनविरोधी कदमों का हम विरोध करते हैं और करते रहेंगे, क्योंकि कम्युनिस्ट होने के नाते हमारी पहली व अंतिम प्रतिबद्धता अवाम के प्रति है और हम उनके स्वार्थ से गद्दारी नहीं कर सकते. लेकिन अगर सवाल सांप्रदायिकता का हो, मजदूर विरोधी नई औद्योगिक नीति का हो, बढ़ती महंगाई का हो, त्रिपुरा में या कहीं भी आप पर दमन का हो, साम्राज्यवाद विरोध का हो, हम हमेशा आपके साथ मिल कर लड़ना चाहते हैं. हम यह समझौता कर लेते हैं कि जब हजार विरोधों के बावजूद आप कांग्रेस से भी कभी-कभी समझौता कर लेते हैं, जनता दल के साथ मोर्चा बना लेते हैं, बीजेपी के साथ भी एक साथ चल लेते हैं, तब हमें ही भला क्यों अपना प्रधान दुश्मन बनाए हुए हैं, जिनके झंडे का रंग लाल है, जिस पर हंसुआ-हथौड़ा ही आंका हुआ है, जो गांव और शहर के सबसे गरीब तबकों की ही लड़ाई लड़ते हैं, जो उनके लिए बड़ी-से-बड़ी कुर्बानियां देते हैं, जो कांग्रेस हो या बीजेपी, जनता दल हो या एजीपी, बुर्जुआ-जमींदारों के सभी किस्म के गठजोड़ों के खिलाफ समझौताहीन संघर्ष की अगली कतार में खड़े हैं. वामपंथी कतारों और उनके ईमानदार नेताओं के नाम हम अपील करेंगे कि पूरे मामले पर फिर से विचार करें. अतीत की बहुतेरी बातें आज के जमाने में अप्रासंगिक हो चुकी हैं. पिछले बीस सालों में हमारे चारों ओर की दुनिया बहुत-बहुत बदल चुकी है. जो गुजर गया सो गुजर गया, आइए हम भविष्य की ओर देखें, आज के अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय माहौल में सीपीआई, सीपीआई(एम) और सीपीआई(एमएल) के बीच सारे मतभेदों के बावजूद जितनी दूर तक संभव हो एक साथ चलने के उपाय निकालने की जरूरत है. हमारी कोई भी एकता जनता में नई आशा का संचार करेगी, समास्याओं से जर्जर इस देश में जहां बुर्जुआ के सारे विकल्पों के प्रति जनता का  मोहभंग हो रहा है, वामपंथ के एक नए उभार को जन्म देगी नम्बूदरीपाद या इन्द्रजीत गुप्त, क्या इतिहास की इस मांग पर आगे बढ़ने की हिम्मत दिखाएंगे?  

हाल में हमने बंगाल में क्रांतिकारी वामपंथी ताकतों के साथ मिलकर मोर्चा लिया. हमारी लड़ाई सीपीआई(एम) की सरकार के दमनकारी और जनविरोधी कदमों के खिलाफ ही नहीं है, हम साथ ही साथ जनविक्षोभ को पूंजी बनाकर वामपंथ के खिलाफ भावनाएं भड़काने की कांग्रेसी साजिश और विरोध के दक्षिणपंथी अभियान के खिलाफ भी एक मजबूत दीवार के रूप में खड़े हैं. हम समझते हैं कि बंगाल में पूर्वी यूरोप की पुनरावृत्ति को रोकने का यही एकमात्र कारगर तरीका है.

इतिहास साबित कर चुका है कि क्रांतिकारी कम्युनिस्ट धारा की विरासत हमारी पार्टी के हाथों ही सुरक्षित है. जो साथी किन्हीं धारणाओं के चलते हमें छोड़ चुके हैं, जो हमारे बिखर जाने की उम्मीद पर गलत कदम उठा चुके हैं, जो जल्दबाजी में क्रांति के सपने देखते हुए इधर-उधर भटक गए हैं, जो धक्कों से उपजी निराशा से इस या उस उदारवादी राजनीति के चक्कर काट रहे हैं, ऐसे तमाम कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों से हमारी अपील है कि सच्चाइयों से रूबरू हों, हमारी पार्टी के झंडे तले गोलबंद हों, हमारे दरवाजे अपने बिछड़े हुए साथियों के लिए हमेशा खुले रहेंगे.

आईपीएफ क्रांतिकारी जनवाद के लिए सबसे सुसंगत आंदोलन का ही दूसरा नाम है, जिसने अपने आगोश में परंपरागत वामपंथ की धारा को ही नहीं, मजदूरों-किसानों के संघर्षो को ही नहीं, जनवाद की हर प्रवृत्ति को समेटने की कोशिश की है, वह चाहे अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं के आंदोलन हों या नागरिक अधिकार आंदोलन हों. हमारी पार्टी आईपीएफ की इस दिशा के प्रति प्रतिबद्ध है, प्रतिबद्ध है आईपीएफ की स्वतंत्रता के प्रति. भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन में यह अपने-आप में एक अनूठा प्रयोग है. जनवाद की सारी ताकतों से, जो कम्युनिस्टों की अंधविरोधी नहीं हैं, उनसे हमारी अपील है कि इस प्रयोग को सफल बनाने में हमारी मदद करें.

हमसे अतीत में गलतियां हुई हैं, आज भी हम जो कर रहे हैं उसमें कमियां और गलतियां रह ही सकती हैं. हम उनसे सीखने को हमेशा तैयार हैं और इतिहास गवाह है कि हम किसी रूढ़ीवादी विचारधारा से जकड़े हुए नहीं हैं.

आप सब जब अपनी-अपनी जगहों पर लौट जाएंगे, तब आप में से हर एक को इस रैली के संदेश का वाहक बनना होगा, लाल झंडे की मर्यादा की रक्षा करनी होगी, और पूरी ताकत के साथ क्रांतिकारी जनवाद की एक नयी लहर पैदा करनी होगी, जो लहर सही मायने में भारत को जोड़ेगी, सारे मेहनतकशों के दिलों को जोड़ेगी, चाहे वे किसी भी प्रांत के क्यों न हों उनकी भाषा, उनकी राष्ट्रीयता, उनकी जाति, उनका धर्म चाहे जो हो.

भारतीय क्रांति जिंदाबाद !
आपकी ताकत जिंदाबाद !!