[5 मार्च 1997 को भाकपा(माले) द्वारा पटना में आयोजित हल्ला बोल जनसैलाब में दिया गया भाषण (संक्षिप्त);
समकालीन लोकयुद्ध, 16 मार्च – 15 अप्रैल 1997 से ]

बिहार के 53 जिलों से आई हुई संघर्षशील जनता और पटना शहर के प्रगतिशील सम्मानित नागरिकों को मैं अपना अभिवादन पेश करता हूं.

दोस्तो, इसी गांधी मैदान में सात दिन पहले एक तमाशा हो गया. भ्रष्टाचार-विरोध के नाम पर एक रैली की गई भारतीय जनता पार्टी के द्वारा. उसमें भूतपूर्वों की एक तिकड़ी आई थी जिसके जरिए भीड़ जुटाने की कोशिश की गई. उसमें एक थे – भूतपूर्व प्रधानमंत्री, वर्तमान में विपक्ष के नेता; दूसरे थे भूतपूर्व हीरो जो आजकल हीरो के बाद की भूमिका निभाने की स्थिति में आ गए हैं; और तीसरे थे ‘महाभारत’ सीरियल में श्री कृष्ण की भूमिका निभाने वाले कृष्ण जो वर्तमान में हवाला वाले लालकृष्ण की चमचागीरी करके संसद में पहुंचे हुए हैं. भूतपूर्वों की ये तिकड़ी आई थी, उनके जरिए भीड़ इकट्ठा की गई थी और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष की बातें की गई थीं. इस भीड़ में एक बहुत बड़ा हिस्सा था सफेदपोशों का, महिलाओं की संख्या नदारद थी. भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी मार जिस गरीब जनता को झेलनी पड़ती है, वो दलित-गरीब जनता उनकी इस रैली में शामिल नहीं थी. ऐसी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई सामाजिक संघर्ष, कोई गंभीर आंदोलन नहीं कर सकती. हां, उसमें कुछ भीड़ जमा हुई थी और कुछ अखबार लिखने लगे थे, नेताओं के वादे भी होने लगे थे कि अब भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाली सबसे बड़ी ताकत भारतीय जनता पार्टी है जिसके पास सबसे ज्यादा लोगों को गोलबंद करने की क्षमता है. उनकी ये घोषणाएं थीं कि रणवीर सेना के हमलों के सामने भाकपा(माले) का अस्तित्व खत्म-सा हो गया है. इसीलिए उन्हें ये उम्मीद थी कि भाकपा(माले) की रैली में शायद ही कुछ लोग आ पायेंगे.

ये घोषणाएं की गई थीं अखबारों में उनके सिद्धांतकारों के जरिए कि मध्य बिहार में भाकपा(माले) की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. हम उन तमाम मुर्खों को कहना चाहते हैं कि आज आकर यहां तुम देख लो. यहां इस रैली में इस उमड़े हुए जनसैलाब ने इस बात को साबित कर दिया है कि भाकपा(माले) सिर्फ मध्य बिहार की पार्टी नहीं है, भाकपा(माले) पूरे बिहार की पार्टी है. भोजपुर के जिले में जहां से दसियों-हजार की संख्या में हमारे साथी यहां आए हैं उनको रोकने की ताकत उन रणवीर सेना के गुंडों में नहीं थी. भाकपा(माले) ने ही, जमीनी स्तर से भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष चलाया है. भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में यहां वो जनता शामिल है जिसको भ्रष्टाचार की मार सबसे बड़े पैमाने पर झेलनी पड़ती है.

लालू प्रसाद जी हमारी पार्टी को ‘मुड़कटवा’ पार्टी कहते हैं. वे तमाम जगहों पर जाते हैं और गरीबों से कहते हैं – माले मुड़कटवा पार्टी है, इस पार्टी में मत जाओ. ये प्रचार वो हमेशा करते रहते हैं और अपने-आप को गरीबों का नेता भी समझते हैं. लेकिन क्या कारण है कि गरीबों की संख्या हमारी रैलियों में, हमारी पार्टी के समर्थन में लगातार बढ़ती चली जा रही है? पिछले दिनों गृह-मंत्रालय की जो रिपोर्ट छपी उसने इस बात को साफ किया कि किस तरह भारतीय जनता पार्टी सामंती निजी सेनाओं को प्रश्रय दे रही है. किस तरह जनता दल तमाम अपराधियों को प्रश्रय दे रहा है. इस तरह बिहार की इस धरती पर जितनी राजनीतिक पार्टियां हैं, हिंसा के सहारे खड़ी हैं. हिंसा का जहां तक सवाल है, मैं ये बात दावे के साथ कहता हूं कि सबसे कम अगर हिंसा का कोई सहारा लेती है तो वह हमारी पार्टी भाकपा(माले) है. बाकी तमाम पार्टियों का वजूद हिंसा पर ही खड़ा है.

हमने रणवीर सेना के साथ भी लड़ाई लड़ी; उन्होंने जनसंहार किए लेकिन हम जाति संघर्ष नहीं करते. किसी जाति के खिलाफ युद्ध हम नहीं करते. इसलिए हमने उस जाति के लोगों को, जो छोटे-मंझोले गरीब किसान थे, धीरज और संयम के साथ समझाया कि हमारी लड़ाई आपके साथ नहीं है, हमारी लड़ाई कुछ गिने-चुने सामंतों के साथ है. आप उनका साथ छोड़ें, हमारे साथ आएं. हम आपको यह बताना चाहते हैं कि आज भोजपुर में बड़े पैमाने पर उस जाति के जो गरीब-मंझोले किसान है वे हमारे साथ जुड़ रहे हैं. वहां हालात बदले हैं.

साथियों, जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है हम यह बात आपसे कहना चाहेंगे कि बिहार हमारे देश की आजादी के समय भी देश का सबसे पिछड़ा हुआ राज्य था. आज आजादी के पचास साल गुजर गए; पचास सालों बाद बिहार आज भी देश का सबसे बड़ा पिछड़ा हुआ राज्य है. लेकिन इसी राज्य में शताब्दी का सबसे बड़ा घोटाला – एक अरब रुपये का चारा घोटाला हुआ. यह एक बहुत बड़ी विडंबना है. मैं समझता हूं यह जनता के साथ बहुत बड़ी गद्दारी है. जनता के साथ बहुत बड़ी धोखेबाजी है और इससे बड़ा अपराध कोई नहीं हो सकता. हम यह कहना चाहते हैं कि जिस दिन हिंदुस्तान में भाकपा(माले) का निजाम आएगा, जिस दिन हिंदुस्तान में भाकपा(माले) की सरकार बनेगी, उस दिन इन तमाम घोटालेबाजों को, इन तमाम हवालाबाजों को लैंपरोस्टों पर लटका कर फांसी दे दी जाएगी. हमें अपना वो निजाम बनाना है, अपनी हुकुमत बनानी है, अपनी सरकार बनानी है जिस हुकुमत में, जिस निजाम में हवालाबाजों के लिए, इन घोटालेबाजों के लिए कोई जगह नहीं होगी; उनकी जगह लैंपपोस्टों पर झूलने के लिए होगी, इसके सिवा कुछ नहीं होगा. यह लड़ाई हमें लड़नी ही होगी.

तो साथियों, देश में बनी है संयुक्त मार्चे की सरकार. उसमें हमारे वामपंथी भाई भी शिरकत कर रहे हैं. बड़ी-बड़ी बाते की गईं  कि सरकार के जरिए ऐसी नीतियां बनाई जाएंगी जिससे गरीब लोगों को फायदा होगा. अमीरी और गरीबी के बीच दूरियां कम होंगी. लेकिन आपने देखा कि पिछले दिनों एक बजट पेश किया गया – इस बजट में जो तमाम बड़े-बड़े उद्योगपति हैं, जो विदेशी पूंजी वाले लोग हैं, जो कालाधन कमाने वाले लोग हैं उन तमाम लोगों के लिए तमाम छूटें दी गईं, तमाम रियायतें दी गईं और आम गरीब जनता को इस बजट में कुछ भी नहीं मिला. इसी सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में, जो बजट के तीन दिन पहले पेश किया गया था, यह लिखा था कि भारत के खेत मजदूरों की आय घटी है, चीजों की कीमतें बढ़ी हैं. इस बजट ने धनी और गरीब के बीच दूरी बढ़ाने का काम किया है और यह ऐसी सरकार के द्वारा किया गया है जिसमें हमारे वामपंथी दोस्त भी शिरकत कर रहे हैं. लेकिन इसके खिलाफ जोरदार ढंग से आवाज उठाने की ताकत भी आज वे खो चुके हैं.

अब देखिए, कश्मीर को लेकर हम झगड़ा चला रहे हैं. रोज 6 करोड़ रुपये वहां खर्च होते हैं. लेकिन हम जब इस बात को उठाते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती होनी चाहिए, कश्मीर के सवाल पर भी हमें लेन-देन के आधार पर समझौता करना चाहिए तो हमें देशद्रोही कहा जाता है. पाकिस्तान में भी माहौल बदल रहा है. पाकिस्तान की जनता भी नए सिरे से सोच रही है और हम यह उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में वह माहौल बनेगा जिसमें भारत और पाकिस्तान दोनों देश, दोनों दोशों की जनता, एक दूसरे के नजदीक आएगी और रोजाना 6 करोड़ रुपये जो कश्मीर में खर्च हो रहा है उन 6 करोड़ रुपयों को गांव में पीने के पानी के लिए, गांव में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए गरीब जनता के लिए लगाया जा सकेगा. लेकिन हम आपसे ये कहना चाहते हैं कि यह शासक वर्ग इन दिशाओं में नहीं जाना चाहते. इनके सारे खर्चे इस तरह से सजाए जाते हैं जिससे वे नए-नए ढंग के घोटाले कर पाएं.

इसलिए दोस्तो, तमाम आतंक को धता बताते हुए आज इस जनसैलाव में शामिल होकर आपने इस बात को साबित किया है कि गरीब जनता बिहार में तहेदिल से किसी को अगर अपनी पार्टी मानती है तो वो भाकपा(माले) को मानती है. ये रैली किसी सरकार के द्वारा प्रायोजित रैली नहीं है. लालू यादव की जहां तक बात है, गरीब उनकी राजनीति का मोहरा भर हो सकता है, इसके सिवा उन्हें गरीबों से कुछ भी लेना-देना नहीं. गरीब हमारी पार्टी की आत्मा है, गरीब हमारी पार्टी की शक्ति है, गरीब हमारी पार्टी की ताकत है.

आप देख रहे होंगे बिहार में इतनी गंभीर समस्याएं हैं लेकिन बिहार विधानसभा में बहसों का स्तर देखिए, आपको नफरत होने लगेगी कि ये किस तरह के राजनीतिक दल बिहार विधानसभा में हावी हैं. जिस विधानसभा में लोगों को जाने से रोकने के लिए बड़े-बड़े लोहे के बैरिकेड बनाए हुए हैं, वहां मांग करने के लिए जब हमारे छात्र पहुंचते हैं, उनपर लाठियां चलाई जाती हैं. मैं उस दिन पार्टी आफिस में मौजूद था मैंने अपनी आंखों के सामने देखा, वित्तरहित शिक्षक हजारों की तादाद में अपनी मांगे लेकर वहां खड़े हुए थे. उनके ऊपर, महिला शिक्षकों के ऊपर भी, किस निर्ममता के साथ, किस बेरहमी के साथ, पुलिस ने लाठियां बरसाईं. यह किसी भी सभ्य समाज में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. वे सारे शिक्षक दौड़-दौड़ कर भाग-भागकर एमएलए फ्लैटों में छिप रहे थे. जिस राज्य में शिक्षकों की ऐसी तौहीन होती हो, जिस राज्य में शिक्षकों को रास्तों पर दौड़ा-दौड़ा कर मारा जाता हो, सिर्फ इसलिए कि वे विधानसभा के ऐसे नेताओं के पास न जा सकें, जिन्हें सभ्य भाषा में बात करनी नहीं आती, जिन सबके ऊपर एक पर एक घोटालों के केस पड़े हुए हैं, वह बिहार एक राजनीतिक चौहारे पर आकर खड़ा है. आज बिहार परिवर्तन की मांग कर रहा है, सामाजिक क्रांति की मांग कर रहा है, आज बिहार आगे बढ़ने की मांग कर रहा है.

इसलिए अपने वामपंथी दोस्तों से हमने बार-बार अपील की है कि वामपंथ अगर इस चुनौती को स्वीकार नहीं करेगा तो आज लालू यादव की जो ताकत गिर रही है, उनके प्रति जनता का जो आक्रोश बढ़ रहा है, इसका विकल्प तब ये सांप्रदायिक पार्टियां देंगी. इसीलिए हमें इन दोनों मोर्चें पर लड़ाई लड़नी है. ये सामाजिक लूटतंत्र की जो ताकतें है इनके खिलफ भी और ये सांप्रदायिकता की जो ताकतें हैं इनके खिलाफ भी. बिहार वह राज्य है जहां वामपंथ यह चुनौती ले सकता है क्योंकि बिहार पूरे हिंदी प्रदेश का एकमात्र राज्य है जहां वामपंथ एक बड़ी ताकत रखता था. हमने पिछले सात वर्षों में अपने सीपीआई-सीपीएम के भाइयों से बार-बार ये अपील की है कि तुम अगर उनके पिछलग्गू बनोगे तो तुम सांप्रदायिकता को नहीं रोक पाओगे, तुम्हारी अपनी ताकत कमजोर होगी. उन्होंने पार्टी आत्मालोचना कर रही है. मैं यह बात कहना चाहता हूं, कि सात साल तक बिहार में वामपंथ की दो धाराओं ने यहां काम किया है. एक वह धारा है जिसने अपने स्वतंत्र अस्तित्व को कुर्बान कर दिया और जो जनता दल की पिछलग्गू बनकर रह गई.और दूसरी धारा थी जिसने तमाम दमन झेलते हुए भी, तमाम तिकड़में झेलते हुए भी अपनी स्वतंत्रता को बरकरार रखा. वामपंथ अगर यहां इकट्ठा हो, एक साथ कूच करने के लिए तैयार हो तो हम इन सामाजिक लूटपंथी ताकतों को पीछे हटा सकते हैं और सांप्रदायिक ताकतों का बिहार में विकल्प बनने का जो सपना है वो सपना भी हम हमेशा-हमेशा के लिए चकनाचूर कर सकते हैं और इस रैली की ओर से उनसे एक बार फिर यह अपील है. दोस्तो, ये जनता यहां आई है और भी कुछ कहने के लिए. शायद बिहार में ऐसा कोई मुख्यमंत्री आज तक नहीं हुआ जिसने बिहार की जनता को इतने बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए हों और बिहार की जनता को इतना छला हो, मैं कहना चाहूंगा कि बिहार की जनता ऐसे लोगों को जिन्होंने उसको इतना बड़ा धोखा दिया, ऐसे गद्दारों को कभी माफ नहीं करेगी. आप मुख्यमंत्री रहें या न रहें, आप जेल जाएं या मत जाएं, आप विपक्ष में रहें या कहीं रहें लेकिन ऐसे व्यक्ति को, ऐसे नेता को बिहार की जनता कभी भी माफ नहीं करेगी.

साथियों, हमें इस लड़ाई को आगे बढ़ाना है, बिहार के हर जिले में फैलाना है, जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष को हम और भी आगे बढ़ा सकें. यह हमारी पार्टी का आह्वान है. आप यहां से जा रहे हैं, आपके सामने फिर एक नया संघर्ष है, उस नए संघर्ष की तैयारियों के साथ आपको जाना है और आपको मेरे साथ फिर एक बार एक नारा लगाना है ‘माले ने ललकारा है, सारा बिहार हमारा है!’