मौजूदा श्रम कानून व्यवस्था, जो बहुत सीमित है, फिर भी उद्योगपति लॉबी के दबाव में मजदूर वर्ग पर मोदी सरकार के हमलों के प्रमुख लक्ष्यों में से एक है. पिछले तीन सालों में विभिन्न कानूनों में संशोधन किया जा चुका है और विभिन्न कोड विचाराधीन हैं.
प्रबंधन को खुश करने के लिये, मोदी ने यूनियनों के विरोध के बावजूद औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) केंद्रीय नियमों में एकतरफा संशोधन कर दिया है और सभी क्षेत्रों में नियोजन के तरीके के रूप में “नियत अवधि नियोजन“ को शुरू किया है. कानूनी रूप से, अब, नियत अवधि नियोजन में नियोजित श्रमिक अनुबंध या रोजगार के नवीनीकरण नहीं किये जाने के कारण अनुबंध अवधि की समाप्ति पर उनकी सेवा समाप्त होने के समय किसी भी नोटिस या भुगतान के हकदार नहीं होंगे. “नियत अवधि“ में लगे कामगारों को आईडी अधिनियम के तहत छंटनी के समय मिलने वाली सुरक्षा से भी अलग किया गया है. बेहद सचेतन रूप से संशोधन ने नियमित कर्मचारियों और नियत अवधि के कर्मचारियों के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है, जो सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिये स्थायी रोजगार को नियत अवधि रोजगार में बदलने के लिए मार्ग प्रशस्त करता है.
असल में, यह संशोधन प्रबंधन को किसी मजदूर को स्थाई मजदूर के कानूनी दर्जे से वंचित करने के परोक्ष उद्देश्य से नियोजित करने की छूट देता है. अब प्रबंधन के लिये दरवाजा खुल गया है कि वह अब मजदूर को नियत अवधि नियोजन के तहत नियोजित कर सकता है, मनमर्जी से मजदूरी दे सकता है, उनका हर तरह से शोषण कर सकता है और मनमर्जी से उन्हें निकाल सकता है, क्योंकि उनके पास अब कोई अधिकार बचे ही नहीं हैं. यह सब संबंधित कानून में बिना किसी बड़े बदलाव के बावजूद किया जा सकता है.
भारत में 3.30 करोड़ बाल मजदूर हैं, जिनमें से 80 प्रतिशत से अधिक दलित हैं जबकि शेष पिछड़ा वर्ग से हैं. बढ़ती गरीबी, कृषि संकट, प्रवासन और अन्य संबंधित संकटों के कारण, देश में बाल श्रम बढ़ रहा है. बाल श्रम मानसिक और शारीरिक रूप दोनों तरह से बच्चों को प्रभावित करता है और उनके भविष्य को नष्ट कर देता है. इसलिए बाल श्रम अधिनियम, 1996 को बनाया गया था.
लेकिन मोदी सरकार बाल श्रम (निषेध और नियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 लायी है जो प्रभावी रूप से बाल श्रम को रोकने के बजाए उसे जारी रखने का काम करता है. संशोधन प्रावधान करता है कि खनन, विस्फोटक और कारखाना अधिनियम में उल्लिखित व्यवसायों को छोड़कर 14 से 18 साल की उम्र के किशोरों को किसी भी प्रक्रिया में नियोजित किया जा सकता है. इस प्रकार, 83 खतरनाक व्यवसायों की मौजूदा सूची को कानूनी रूप से खत्म कर दिया गया है. रासायनिक मिश्रण इकाइयों, घरेलू काम, कपास खेतों, बैटरी रीसाइक्लिंग इकाइयों, और ईंट भट्ठों जैसे तमाम खतरनाक उद्योगों, जो अब तक प्रतिबंधित थे, उनमें बाल श्रम को अब कानूनी रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है. दूसरा, यह संशोधन “परिवार या पारिवारिक उद्यमों“ में बाल श्रम की अनुमति देता है. बच्चों की एक बड़ी संख्या, जिन्हें पारिवारिक उद्यम बताया जाता है में काम करती है, लेकिन वास्तव मे ये अत्यधिक शोषणकारी अंतःपीढ़ियों के कर्जों के मामले होते हैं जहां बाल श्रम के उपयोग के जरिये इन कर्जों की वसूली की जाती है, और मोदी सरकार ने प्रभावी रूप से ऐसे शोषणकारी रोजगारों को कानूनी मंजूरी दे दी है.