हालांकि 100 मजदूरों से कम वाले संस्थानों ने तुलनात्मक रूप से बड़े संस्थानों से कहीं अधिक नियोजन बढ़ाया, जो कि शायद आईडी ऐक्ट के अध्याय 5-बी जो छोटे संस्थानों को छंटनी की खुली छूट देता है, के चलते हुआ, लेकिन हाथ से काम करने वाले मजदूरों के लिये यह अंतर कुछ खास नहीं था. दूसरी तरफ, इन छोटे संस्थानों की तुलना में, बड़े संस्थानों के अधिकतर हिस्से ने नियोजन में कमी दर्शायी, जो कमी संस्थान के आकार के बढ़ने के साथ और अधिक बढ़ी. इसका यह नतीजा निकला कि इन बड़े संस्थानों को हायर एंड फायर से रोका नहीं गया, बावजूद इसके कि आईडी ऐक्ट के प्रावधान कमजोर नहीं किये गये’. भारत में श्रम सवालों पर 2007 में अपने सर्वे में, आर. नागराज ने चिन्हित किया कि कैसे संगठित क्षेत्र ने ‘1997-2004 के बीच 18 लाख (6.3 प्रतिशत) रोजगार खत्म किये, जो कि अधिकतर विनिर्माण क्षेत्र (12 लाख यानी 18 प्रतिशत) में थे’. ये आंकड़े दिखाते हैं कि श्रम के लचीलेपन में कमी पहले से ही नहीं है.