राजस्थान सरकार के संशोधन

राजस्थान श्रम-विरोधी, कॉरपोरेट-परस्त सुधारों को लागू करने के लिए केंद्र में भगवा सरकार की प्रयोगशाला है. भाजपा शासित राज्यों में पहले और फिर केंद्र सरकार द्वारा कानूनों में संशोधन किया जाता है. राजस्थान सरकार ने पहले ही श्रमिकों के व्यक्तिगत और सामूहिक अधिकार दोनों को प्रभावित करने वाले श्रम कानूनों में कई संशोधन किए हैंः

  • औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में उचित सरकार की अनुमति से छंटनी के लिए प्रावधान को 100 श्रमिकों से बढ़ाकर 300 कर दिया गया है. इस प्रकार, 300 श्रमिकों तक को नियोजित करने वाली कंपनियों के लिए कोई सरकारी मंजूरी की जरूरत नहीं है. इस संशोधन के साथ, कानून के दायरे से 85 प्रतिशत से अधिक उद्योग बाहर हो गए हैं.

  • कारखाना अधिनियम में संशोधनः कारखाने की परिभाषा को 20 श्रमिकों या उससे अधिक (पहले 10) की इकाई में संशोधित किया गया है जहां उत्पादन में बिजली का प्रयोग हो रहा है; और किसी भी हिस्से में जिसमें बिजली की सहायता से उत्पादन प्रक्रिया नहीं चल रही है वहां श्रमिकों कि संख्या 40 या अधिक (पहले 20) कर दी गयी है. इस वृद्धि के कारण, अधिनियम के तहत छोटी इकाइयों को कानून से बाहर कर दिया गया है. इस संशोधन के साथ, श्रम कानूनों के दायरे से औपचारिक क्षेत्र के 65 प्रतिशत से अधिक उद्योग बाहर हो जाएंगे.

  • अपराध के संज्ञान के लिए सरकार की स्वीकृति प्राप्त करना अनिवार्य बनाने के लिए कारखाना अधिनियम में संशोधन किया गया है.

  • ठेका श्रम अधिनियम में संशोधन कर ऐसे प्रतिष्ठानों को जो 50 से कम लोगों (पहले 20) को नियोजित करते हैं, अधिकाधिक प्रतिष्ठानों और ठेकेदारों को कानून के दायरे से बाहर कर दिया गया है. इसमें बड़ी संख्या में प्रतिष्ठान कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे और नियोक्ताओं को अपनी स्थापनाओं को विभाजित करने और अधिनियम से खुद को बाहर करने का मौका भी मिल जाएगा. ठेका श्रमिकों की बहुसंख्या को इस संशोधन द्वारा श्रम कानूनों के प्रावधानों के दायरे से बाहर कर दिया गया है.

  • सरकार ने 26 मई, 2014 को एक सर्कुलर जारी किया है जो उच्च अधिकारियों से अनुमति प्राप्त करने के बाद ही सभी लागू कानूनों के तहत प्रत्येक प्रतिष्ठान के लिए प्रति वर्ष केवल 1 निरीक्षण करने के लिए श्रम निरीक्षकों को सीमित कर देता है. यह निरीक्षण की अवधारणा और प्रभावकारिता को पूरी तरह से बेकार बना देता है.

गुजरात श्रम कानून 2015

गुजरात की भाजपा सरकार ने श्रम कानून (गुजरात संशोधन) अधिनियम, 2015 पास करके कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, कारखाना अधिनियम, मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम, बोनस का भुगतान अधिनियम, बीड़ी और सिगार श्रमिक अधिनियम, ठेका श्रम अधिनियम, ग्रैच्युटी भुगतान अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम और असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम को कमजोर बना दिया है.

  • विधेयक राज्य सरकार को पहली बार 1 साल तक सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं में हड़तालों पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति देता है, जो 2 साल तक विस्तारित की जा सकती है, और श्रमिकों के लिए औद्यागिक विवाद खड़ा करने की अविधि को 3 वर्ष से घटाकर 1 वर्ष करता है.

  • अधिनियम नियोक्ता द्वारा तुच्छ राशि के भुगतान पर अपराधों पर समझौते के लिए भी अनुमति देता है (उदाहरण के लिए 50 से कम श्रमिकों वाले प्रतिष्ठान में अनुचित श्रम व्यवहार के लिए प्रति दिन रू. 300 जो कि अधिकतम रू. 7,000 होगी, न्यूनतम मजदूरी ना भुगतान करने के लिए रू. 1,500, समान पारिश्रमिक अधिनियम के उल्लंघन के लिए रू. 1,500, मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम, 1961 के उल्लंघन के लिए रू. 5,000, बोनस अधिनियम के उल्लंघन के लिए रू. 1,500, आदि.)

  • संशोधन निम्नलिखित पहलुओं में बदलाव से पहले श्रमिकों को सूचना देने के प्रावधान को संबंधित अनुसूची से हटा देता हैः प्रबंधन अब अपनी मनमर्जी से शिफ्ट के समयकाल और नियोजित श्रमिकों की संख्या तय करने के लिए स्वतंत्र हैं. अब किसी भी कर्मचारी को निकालने के लिए नियोक्ता आज़ाद है और श्रमिकों को कोई सुरक्षा नहीं है.

यह विधेयक नियोक्ता को स्व-प्रमाणीकरण (सेल्फ्-सर्टीफिकेशन) के लिए अधिकार प्रदान करता है जो उन्हें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, कारखाना अधिनियम, बोनस का भुगतान अधिनियम, ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम और ग्रैच्युटी का भुगतान अधिनियम के तहत से निरीक्षण से पूरी तरह छूट देता है.

झारखंड संशोधन

2018 में, झारखंड सरकार ने ठेका श्रम विनियमन अधिनियम में बदलाव लाकर किसी भी श्रम कानून को लागू करने के लिए श्रमिकों की न्यूनतम संख्या को बढ़ाकर 50 कर दिया है, जो कि श्रम विरोधी और कॉरपोरेट-परस्त संशोधन है. श्रम मंत्री ने विधानसभा में भी स्पष्ट किया कि ईएसआई, पीएफ और ग्रैच्युटी की मौजूदा अनिवार्य सुविधाएं भी वैकल्पिक हैं और यह संबंधित नियोक्ता को तय करना है कि श्रमिकों के लिए इन सुविधाओं को लागू करना है या नहीं. इस प्रकार, लाखों लाख ठेका श्रमिकों को श्रम कानून के दायरे से बाहर कर हाशिये पर धकेल दिया जा रहा है. इसके अलावा, इसी सरकार ने काम से निकाले गए श्रमिक के लिए अदालत में जाने की सीमा 3 साल से घटाकर 3 महीने कर दी है. छंटनी की तारीख से 3 महीने से अधिक होने पर श्रमिक अदालत मे जाने के लिए कानूनी तौर पर हकदार नहीं होगा.

महाराष्ट्र श्रम कानून 2016

महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) (महाराष्ट्र संशोधन) अधिनियम, 2016 बनाया है जो ठेका श्रम अधिनियम को केवल उन प्रतिष्ठानों तक सीमित करता है जो 50 से अधिक श्रमिकों को नियोजित करते हैं. इस प्रकार बड़ी संख्या में छोटे और मध्यम-स्तरीय प्रतिष्ठान अब अधिनियम के दायरे से बाहर हो जाएंगे, और बड़े प्रतिष्ठान इस कानून के तहत आने से बचने के लिए 40 ठेका श्रमिकों के चार से पांच सेट नियोजित कर सकेंगे. इसका मतलब है कि नियोक्ता छोटी इकाइयों में ठेका श्रमिकों को ईएसआई, भविष्य निधि, न्यूनतम मजदूरी, छुट्टी और अन्य लाभ सहित, वैधानिक लाभ प्रदान करने से इंकार कर सकते हैं.

केंद्र सरकार मौजूदा कानूनों में विभिन्न संशोधन ला रही है जिससे मजदूरों के मूल अधिकारों में कटौती हो रही है.