आजादी के बाद, तीव्र आर्थिक विकास हासिल करने के लिए, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में भारी निवेश किया गया. 1948 और 1956 के औद्योगिक नीति प्रस्तावों में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के कार्यों के इलाकों का सीमांकन कर दिया गया. सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सरकारी नीति में 1991 में मूलभूत परिवर्तन हुआ, जिसमें नई औद्योगिक नीति को अपनाया गया जहां सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को जबर्दस्त तरीके से कम कर दिया गया. पूर्व की औद्योगिक नीतियों में, 17 उद्योगों को पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित किया गया था, जबकि 12 अन्य उद्योगों को निजी मालिकाने के तहत लाना था. हालांकि, 1991 की औद्योगिक नीति में सिर्फ आठ उद्यमों को जिनमें रक्षा उत्पादन, परमाणु ऊर्जा, कोयला और लिग्नाइट, खनिज तेल, कच्चा लोहा, मैग्नीज़, सोना एवं हीरा, आणविक खनिज और रेल को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित किया गया था. इस नीति ने इस बात की जगह छोड़ी कि अगर जरूरत होगी तो निजी क्षेत्र के उपक्रमों को उपरोक्त उद्यमों में दाखिल होने की इजाज़त दी जाएगी. सार्वजनिक क्षेत्र के बारे में 1991 की नीति का सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह था कि इसमें काॅरपोरेट पुनर्संरचना के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश और निजीकरण को शामिल किया गया था. 2001 में वाजपेयी सरकार में विनिवेश मंत्रालय की भी स्थापना की गई जिसे बाद में 2004 में यूपीए-1 द्वारा वित्त मंत्रालय के अंतर्गत एक विभाग में बदल दिया गया. महत्वपूर्ण यह है कि इस विनिवेश प्रक्रिया ने, जो 1991-92 में कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में आधे से भी कम हिस्सेदारी की बिक्री से शुरु हुई थी, अपना केंद्र बिंदु 1999-2000 से 2003-04 के दौरान रणनीतिक बिक्री की तरफ मोड़ दिया. हिंदुस्तान ज़िंक, बाल्को, मारुति को 2001 के बाद इसी रणनीतिक बिक्री के तहत बेच दिया गया. बाल्को के विनिवेश को जब चुनौती दी गई तो सर्वोच्च न्यायालय ने उसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों का विनिवेशीकरण सरकार का प्राधिकार है और मजदूरों का इस मामले में कोई मत नहीं बनता है. तो यह भ्रम कि कोर्ट मजदूरों के हितों की रक्षा करेगा, क्योंकि विनिवेश से सबसे ज्यादा वही प्रभावित होते हैं, बुरी तरह टूट गया. 2004 में, यूपीए-1 सरकार ने अपनी विनिवेश नीति का नवीकरण किया लेकिन वाम-सहयोगियों के हस्तक्षेप और मजदूर वर्ग के संघर्ष के चलते विनिवेश गतिविधियों में शिथिलता आ गई. लेकिन यूपीए-2 बिना वाम पार्टियों की थी, और उसने अपनी