अर्जुन सेनगुप्ता कमेटी की रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया था कि जब सारे अनौपचारिक मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओ के अंतर्गत ले आया जाएगा (जैसा कि इसका प्रस्तावित माॅडल और पैकेज था), तो 2010-11 के वित्त वर्ष के अंत तक, केंद्र सरकार का योगदान 20,583 करोड़ रु. होगा (इसमें गरीबी रेखा से नीचे के मजदूरों की पेंशन और प्रशासकीय खर्च भी शामिल हैं), और राज्य सरकारों का योगदान 4,819 करोड़ रु. होगा. कुल मिलाकर, सकल घरेलू उत्पाद की अपेक्षित 8 प्रतिशत वृद्धि के हिसाब से, यह साल 2010-11 के सकल घरेलू उत्पाद का कुल 0.48 प्रतिशत बैठता है. अन्य आकलन ये दिखाते हैं कि यह भी संभव है कि इन स्रोतों को देश में कराधान की संरचना को बेहतर बना कर बढ़ाया जा सकता है. आसान सा मामला यह है कि व्यापक सामाजिक सुरक्षा के बुनियादी स्तर को पाना ना तो महंगा होगा और ना ही इससे किसी भी तरह से देश की वैश्विक प्रतिद्वंद्विता की क्षमता को कोई नुकसान पहुंचेगा. लेकिन मोदी-नीत भाजपा सरकार ऐसी बीमा योजना की हिमायत कर रही है जिसमें व्यक्तिगत तौर पर मजदूर खुद पैसे देंगे और जो कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों समेत काॅरपोरेट बीमा माफिया के भीषण मुनाफे कमाने के सपनों को पूरा करेगा.