बैंकों के खाते में तेजी से बढ़ते एनपीए और पुनर्सूचीकृत (रि-स्ट्रक्चर्ड) ऋणों की अभिव्यक्ति व्यावसायिक घरानों पर खतरनाक हद तक बढ़ गए ऋण-भार के रूप में भी हो रही है. किंगफिशर एयरलाइंस लिमिटेड इसका सटीक उदाहरण है. यह एयरलाइंस अरबपति विजय माल्या द्वारा नियंत्रित होता है, जिन्हें उनके गृह प्रदेश कर्नाटक से दो बार (2002 और 2010 में) स्वतंत्र उम्मीदवार के बतौर राज्य सभा के लिए निर्वाचित किया गया था. उन्हें भारत में और विदेशों में भी कई पुरस्कार मिले, जिसमें द एशियन अवार्ड्स (2010) में मिला ‘वर्ष का उद्यमी’ पुरस्कार भी शामिल था. विडंबना तो देखिए कि उसी वर्ष उनका एयरलाइंस बर्बादी के कगार पर पहुंच गया. उन्होंने किसी प्रकार 77.2 अरब रुपये के ऋण का पुनर्सूचीकरण कराकर स्थिति को संभाला – वह ऋण उन्होंने उभार की अवधि में हवाई जहाज खरीदने और वायु मार्ग बढ़ाने के लिए प्राप्त किए थे. अप्रैल 2011 में ऋण के एक अच्छे-खासे हिस्से को एयरलाइंस में 23 प्रतिशत इक्विटि शेयरों में तब्दील कर दिया गया ताकि इसके ब्याज और ऋण अदायगी प्रतिबद्धता को कम किया जा सके. जल्द ही, इस एयरलाइंस की इक्विटि लगभग अनुपयोगी हो गई, जिससे ऋणदाताओं को भारी नुकसान हुआ. फिर भी ऋणदाताओं ने उदारतापूर्वक ऋणों की रि-स्ट्रक्चरिंग कर दी, बढ़िया शर्तें पेश कीं, ऋण-अदायगी की अवधि बढ़ा दी और एयरलाइंस को चालू रखने के लिए और ज्यादा कर्ज दिए. घाटे के सौदा में पैसा झोंकने का एक क्लासिक नमूना!

बद से बदतर होती अपनी वित्तीय स्थिति के साथ अक्टूबर 2012 में इस एयरलाइंस ने अपने सभी जहाज तब धरती पर उतार लिए, जब इनके चालकों ने सात महीने के बकाया वेतन के भुगतान की मांग पर हड़ताल कर दी, हालांकि वह कंपनी उस समय भी अनुचित ढंग से ऋण-रिस्ट्रक्चरिंग की प्रक्रिया में मशगूल थी. उस वर्ष के अंत में पूजा-अर्चना के नाम पर एक मंदिर में तीन किलोग्राम ठोस सोना भेंट करने के लिए वे पुनः सुर्खियों में आ गए, हालांकि किंगफिशर के कर्मचारियों को उनके बकाया वेतन देने से वे लगातार इनकार करते रहे.

फरवरी 2013 में काफी कानूनी जद्दोजहद के बाद, ऋणदाताओं ने यथासंभव अपना ऋण वसूलने के लिए कंपनी द्वारा रखी गई अतिरिक्त जमानतों व प्रतिभूतियों का इस्तेमाल कर लिया. यह प्रक्रिया अभी चल ही रही है और लगता है कि अंततः ऋण का एक हिस्सा ही वसूल हो पाएगा.

दिवालियेपन जैसी स्थिति का दूसरा उदाहरण है दक्कन क्रोनिकल होल्डिंग लिमिटेड (डीसीएचएल), जिसे अखबार दक्कन क्रोनिकल, पूर्व की आइपीएल क्रिकेट टीम दक्कन चार्जर्स, एशियन एज और फाइनांशियल क्रोनिकल जैसी पत्रिकाओं और साथ ही अन्य कई व्यवसायों के स्वामी के बतौर जाना जाता है. अगस्त 2006 और मार्च 2013 के बीच डीसीएचएल ने कर्ज और ऋण विस्तार सुविधाओं के रूप में केनरा बैंक से 330 करोड़ रुपये हासिल किए. ऋण अदायगी में लगातार असफलता के कारण बैंक ने सितंबर 2012 में डीसीएचएल ऋण को बट्टा खाता (एनपीए) घोषित कर दिया. यह भी आरोप लगाया गया कि कंपनी उन संपत्तियों को बेचने की कोशिश कर रही है, जिन्हें उसने बैंक के पास गिरवी रखा था. मजेदार बात यह है कि दक्कन क्रोनिकल को अपनी संपत्तियों की बोली लगाते पाए जाने के ठीक एक माह पूर्व सीआरआइएसआइएल जैसी एजेंसियां इसे उच्च निवेश रेटिंग दे रही थीं.

पिछले वर्ष फरवरी के मध्य में ‘सेबी’ ने सहारा ग्रुप के मुखिया सुब्रत राय और इस गु्रप की दो फर्मों के बैंक खातों को निष्क्रिय करने का आदेश दिया. सुब्रत राय के नाम पर जितनी अचल संपत्तियां थीं, उन्हें भी कुर्क कर लिया गया. ‘सेबी’ ने ये कदम सर्वोच्च न्यायालय के कहने पर उठाए, जिसने सहारा ग्रुप को बारंबार निर्देश दिया था कि वे निवेशकों को लौटाने के लिए 24,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की राशि बैंक में जमा करें, लेकिन उन फर्मों ने इन निर्देशों की अनसुनी कर दी. लेकिन यह सवाल नहीं उठाया गया कि ‘सेबी’ और आरबीआइ इन तमाम वर्षों में क्या करते रहे, जब साधारण लोगों से पैसे इकट्ठा करने के लिए “विभिन्न गैर-कानूनी तरीके” अपनाए जा रहे थे, और लोग सोच रहे थे कि इन दो नियामकों के जरिए उनके हित महफूज रहेंगे.

किंगफिशर एयरलाइंस, दक्कन क्रोनिकल होल्डिंग्स और सहारा के उदाहरण दिखाते हैं कि इन्हें उस वक्त भी ऋण दिए जाते रहे, जब वे मरने की कगार पर थे और उनसे पैसा लौटाने की कोई उम्मीद नहीं थी. आज, ये तीनों कंपनियां ऋणदाताओं के द्वारा दायर कानूनी लड़ाइयां लड़ रही हैं.

बहरहाल, इस किस्म के नामी-गिरामी उदाहरण उंगली के पोर भर हैं. भारत के 10 शीर्ष व्यासायिक गु्रपों का सम्मिलित ऋण पिछले पांच वर्षों में 5 गुना होकर 99,300 करोड़ से 5,39,500 करोड़ रुपया हो गया है. आज के जमाने की प्रवृत्ति का इजहार करते हुए अदानी, जीएमआर और वेदांता जैसी कंपनियां ऋण के अंबार इकट्ठा करके समूची दुनिया में जोर-शोर से परिसंपत्तियां अर्जित कर रही हैं. अदानी ने दक्षिण पूर्व एशिया और आॅस्ट्रेलिया में खदानों की खरीद की है, जीएमआर मालदीव में हवाई अड्डा बना रहा था (जहां उसने सर्वाधिक गैर-जिम्मेदाराना ढंग से काम किया, फलतः उसका ठेका रद्द हो गया), और वेदांता हर जगह कंपनियों को हड़पने में मशगूल है. इन दस ग्रुपों द्वारा लिया गया कुल ऋण कुल बैंक ऋण के 13 प्रतिशत के बराबर होता है, जबकि (कर्जदाता बैंकों के नजरिए से) अत्यंत जोखिमभरे काॅरपोरेट ऋण की कुल मात्र 36,00 अरब रुपये के समतुल्य है.