आखिरकार, वर्ष 2004 के आसपास भारतीय अर्थव्यवस्था उड़ान भरती प्रतीत होने लगी, और तीन वर्ष में वह 9 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि दर के शिखर पर जा पहुंची. वर्ष 2008 में ऐसा लगा, मानो अर्थतंत्र में ठंडी कंपकपी आई, लेकिन वह किसी प्रकार इससे निकलने में सफल रहा. किंतु यह राहत थोड़ी देर तक ही टिक पाई. वर्ष 2011 आते-आते अर्थतंत्र नीचे गिरने लगा, मानो गुब्बारे में कोई छेद हो गया हो. 2008 में अमेरिकी अर्थतंत्र में अचानक आई तबाही के विपरीत भारतीय अर्थतंत्र की यह ढलान धीमी थी, लेकिन बिलकुल निश्चित.