मनमोहनोमिक्स के दो दशक यह और कुछ नहीं, बल्कि भारतीय मार्का उदारवाद का चालू नाम है, जिसे 1990-दशक से विभिन्न पूंजीवादी विचारकों, नौकरशाहों और राजनीतिक दलों द्वारा अंतरराष्ट्रीय प्रवृत्तियों व घरेलू स्थितियों के अनुरूप विकसित किया गया है.

अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन द्वारा वाशिंगटन डीसी से नवउदारवाद एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाने के लगभग एक दशक बाद, वह 1991 में नई दिल्ली पहुंची, जिसकी ड्राइवर की सीट पर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह विराजमान थे. जैसे कि 1950 और 1960 के दशकों में पूंजीवादी-भूस्वामी राज्य ने भारत और दुनिया भर में समाजवाद के प्रति मौजूद आकर्षण का इस्तेमाल करके “मिश्रित अर्थव्यवस्था” पर समाजवादी रंग चढ़ाने की कोशिश की, उसी प्रकार सुधारों के इस नए समुच्चय ने नव-उदारवादी ‘टिना’ (देयर इज नो आॅल्टरनेटिव – कोई विकल्प नहीं है) मंत्र से वैधता प्राप्त की.

इस नीति समूह के गौरव-गान में लोग प्रायः 2003-04 से 2009-10 के बीच हासिल आपवादिक रूप से गतिशील वृद्धि का बखान करते हैं. सिर्फ जीडीपी में वृद्धि के लिहाज से ही नहीं, बल्कि कुछ अन्य सूचकों के लिहाज से भी, यकीनन, उस दौरान नई जमीनें तोड़ी गई थीं. वृद्धि सिर्फ सेवा क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि एक लंबे अंतराल के बाद मैन्युफैक्चरिंग (विनिर्माण) में भी वृद्धि देखी गई. बचत और निवेश अभूतपूर्व दरों से बढ़े. आयात व विदेशी निवेश कानूनों के उदारीकरण के साथ-साथ कुछ क्षेत्रों की प्रौद्योगिकी में भी सुधार हुआ. इससे प्रतिद्वंद्विता तेज हुई और उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई. भारतीय काॅरपोरेट घराने बड़ी उमंग से विदेशों में – न केवल अल्प-विकसित देशों में, बल्कि विकसित अर्थतंत्रों में भी – पहुंचने लगे, हालांकि उन्होंने मुख्यतः विलय व अधिग्रहण का ही रास्ता पकड़ा.