“मौद्रिक उपाय

... उत्तरोत्तर कदमों के जरिए, रिजर्व बैंक ने कैश रिजर्व अनुपात (सीआरआर) को घटाते हुए 9 प्रतिशत से 5 प्रतिशत कर दिया, अनिवार्य तरलता अनुपात (एसएलआर) को 25 प्रतिशत से 24 प्रतिशत किया, रेपो रेट को 9 से घटाकर 4.75 प्रतिशत और रिवर्स रेपो रेट को 6.0 से कम करके 3.25 प्रतिशत कर दियासीआर, एसएलआर, रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा – हमारे मामले में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा – प्रणाली के अंतर्गत तरल मुद्रा को नियंत्रित करने के लिए अपनाए जानेवाले औजार हैं. कैश रिजर्व (सीआर) अनुपात नकद जमा के इस अंश को कहते हैं, जिसे हर बैंक को रिजर्व बैंक के पास जमा रखना पड़ता है. जब यह अनुपात बढ़ता है तो बैंकों को रिजर्व बैंक में ज्यादा पैसा जमा करना पड़ता है, ताकि वे बैंक व्यवसाइयों अथवा अन्य ग्राहकों को कम राशि कर्ज के बतौर दे सकें. जब यह अनुपात घटता है तो उलटी प्रक्रिया सामने आती है. बैंकों के लिए यह भी जरूरी है कि वे अपने यहां जमा धन राशि का एक अंश सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करें – इसे अनिवार्य तरलता अनुपात (एसएलआर) कहते हैं. जब एसएलआर बढ़ता है तो बैंकों को इन प्रतिभूतियों में अधिक निवेश करना पड़ता है, ताकि वे सापेक्षिक रूप से कम मात्रा में गैर-सरकारी शेयर वगैरह खरीद सके (अर्थात् इन शेयरों में कम निवेश कर सकें); एसएलआर घटने पर प्रक्रिया उलट जाती है. इस प्रकार, रिजर्व बैंक सीआरआर और एसएलआर का इस्तेमाल करके अर्थतंत्र में कम या ज्यादा धनराशि उड़ेलने की बैंकों की क्षमता पर नियंत्रण बनाए रखता है. Next para -- रेपो रेट वह दर है जिस पर कोई बैंक रिजर्व बैंक से कोष उधर लेता है, ताकि वह ऋण के लिए अपने ग्राहकों की मांग को पूरा करने हेतु आवश्यक धनराशि और अपने पास मौजूद राशि के बीच के अंतराल को खत्म कर सके. अगर रिजर्व बैंक यह चाहे कि बैंकों द्वारा कोष उधार लेना ज्यादा महंगा हो जाए (यानी, वह बैंक ग्राहकों को कर्ज देने में कोताही करे), तो इसके लिए रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ा देता है; इसी प्रकार, अगर वह अन्य बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता बनाना चाहे, तो वह रेपो रेट को घटा देता है. रिवर्स रेपो रेट रेपो रेट का ठीक उलटा है. यह वह दर है, जिस पर रिजर्व बैंक अन्य बैंकों से कर्ज लेता है. इस दर में वृद्धि होने से अन्य बैंक व्यवसाइयों में कर्ज देने रिजर्व बैंक को कर्ज देना ज्यादा पसंद करते हैं, जिससे कि बाजार में कर्ज महंगा हो जाता है. स्पेशल पर्पज वेहिकल एक ऐसा निकाय (कंपनी) है जो किसी एकल सुपरिभाषित और छोटे मकसद से गठित किया जाता है. ऐसे वेहिकल अधिकांशतः बाजार से कोष संग्रह करने के लिए बनाए जाते हैं..

म्युचुअल फंडों, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और हाउसिंग फाइनांस कंपनियों को ऋण देने हेतु रिजर्व बैंक ने बैंकों के लिए विशेष व्यवस्था की. सेंट्रल बैंक ने भी बैंकों, लद्यु उद्योग विकास बैंक (सिडबी), राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) तथा आयात-निर्यात (एक्जिम) बैंक के लिए पुनर्वित्त सुविधाओं की शुरूआत की; इसके साथ ही उसने ‘स्पेशल पर्पस वेहिकल’ के जरिए एनबीएफसी के लिए तरलता सुविधा आरंभ की और निर्यात ऋण पुनर्वित्त की सीमा बढ़ाई.

राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज

केंद्र सरकार ने एक-के-बाद-एक तीन राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज घोषित किए – पहला दिसंबर 2008 के आरंभ में, दूसरा 2009 की शुरूआत में और तीसरा मार्च 2009 के शुरू में. इनमें ये चीजें शामिल थीं: सभी क्षेत्रों में केंद्रीय उत्पाद शुल्क को 4 प्रतिशत के रूप में कम करना ; 200 अरब रुपये का अतिरिक्त योजना व्यय, योजना व्यय के लिए ही राज्य सरकारों द्वारा 300 अरब रुपये का अतिरिक्त ऋण लेना; निर्यात वित्त पर ब्याज में सब्सिडी, उत्पाद शुल्कों/केंद्रीय बिक्री कर की वापसीे तथा अन्य निर्यात प्रोत्साहन के रूप में कुछ निर्यात उद्योगों को सहायता; तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्कों व सेवा कर में 2 प्रतिशत की कमी . इन कदमों को लागू करने का कुल राजकोषीय बोझ जीडीपी के 1.8 प्रतिशत के बराबर था.