प्रस्तावित मजदूरी पर श्रम कोड विधेयक, 2015 (लेबर कोड आॅन वेजेस्) चार कानूनों को खत्म करने के लिए लाया जा रहा है – मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948, बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976.

यह कोड कई मौजूदा अधिकारों को ख़त्म करता हैः

  1. अप्रेंटिस को कर्मचारी की परिभाषा से बाहर रखा गया है, जबकि वे मौजूदा कानून के तहत शामिल हैं. जाहिर है इसलिए वे मजदूरी पर कानून की किसी भी सुरक्षा के हकदार नहीं होंगे.

  2. मजदूरी तय करने के लिए मानदंडः इस कोड को सभी श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी तय करने के इरादे से पेश करना बताया गया है. हालांकि कोड में भारतीय श्रम सम्मेलन और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों में लाए गए न्यूनतम मजदूरी को तय करने के मौलिक सिद्धांतों को पूरी तरह से अनदेखा किया गया है. रेप्टाकाॅस ब्रेट केस के फ़ैसले मे सुप्रीम कोर्ट ने न्यूनतम मजदूरी निर्धारण के लिए निम्नलिखित छह मानदंड निर्धारित किएः (1) एक कमाने वाले के लिए 3 खपत इकाइयां; (2) औसत भारतीय वयस्क के लिए 2,700 कैलोरी की न्यूनतम खाद्य आवश्यकता (3) प्रति परिवार प्रति वर्ष 72 गज की वस्त्र आवश्यकता (4) सरकारी औद्योगिक आवास योजना के तहत प्रदान किए गए न्यूनतम क्षेत्र के बराबर किराया (5) ईंधन, प्रकाश और अन्य विविध वस्तुओं पर व्यय कुल न्यूनतम मजदूरी का 20 प्रतिशत (6) बच्चों, शिक्षा, चिकित्सीय आवश्यकताओं, त्योहारों/समारोहों सहित न्यूनतम मनोरंजन और वृद्धावस्था, विवाह इत्यादि के लिए प्रावधान, कुल न्यूनतम मजदूरी का 25 प्रतिशत. नए कोड में न्यूनतम मजदूरी तय करने में इन सब खर्चों के लिए कोई प्रावधान नहीं है. इसी सूत्र के आधार पर सातवें वेतन आयोग द्वारा न्यूनतम मजदूरी के लिए 18,000 रुपये/महीने की सिफारिश जिसे सरकार ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए स्वीकार किया है, पर्याप्त नहीं है. हालांकि, जब सभी श्रमिकों के लिए इसी न्यूनतम मजदूरी की मांग की गई, तो सरकार ने 18,000 रुपये मासिक राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी तय करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया. हमें आज की कीमतों के आधार पर 26,000 रूपये न्यूनतम मजदूरी की मांग करनी चाहिये.

  3. मजदूरी का पुनरीक्षणः नया कोड मजदूरी के पुनरीक्षण के लिए मानक समय के रूप में पांच साल निर्धारित करता है, जबकि वर्तमान में पांच वर्ष मजदूरी के पुनरीक्षण के लिए अधिकतम अवधि है. हालांकि, कई राज्यों ने पहले से ही इस अवधि को 5 साल से भी कम कर दिया है, उदाहरण के लिए तमिलनाडु में आज के कानून के हिसाब से कम से कम 3 वर्षों में न्यूनतम मजदूरी में पुनरीक्षण की आवश्यकता है. इस प्रकार प्रस्तावित कोड विशेष रूप से इन राज्यों में श्रमिकों के हित में बने वर्तमान प्रावधानों को खत्म करेगी.

  4. निरीक्षकों को हटाने और “फेसिलिटेटर्सं“ को लाने के बारे मेंः प्रस्तावित कानून द्वारा किए गए बड़े बदलावों में से एक निरीक्षकों के पदों को खत्म करना और उनकी जगह ‘‘फेसिलिटेटर्स’’ (मददकर्ताओं) को लाने के बारे में है. यह सेल्फ-सर्टीफिकेशन (आत्म-प्रमाणीकरण) की नीति को मंजूरी देता है जो त्रुटिपूर्ण है. इसके अलावा, प्रस्तावित कोड मददकर्ताओं को इस बात के लिये बाध्य करता है वे एक लिखित आदेश के माध्यम से इस कोड के प्रावधानों का अनुपालन करने के लिए नियोक्ता को अवसर प्रदान करें. यदि नियोक्ता दी गई अवधि के भीतर आदेश का अनुपालन करता है, तो मददकर्ता अभियोजन कार्यवाही शुरू नहीं करेगा. यह श्रमिकों के पसीने और खून की लूट के लिए सेल्फ-सर्टीफिकेशन के अलावा कुछ भी नहीं है.

  5. हल्के दंडः वर्तमान में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948, बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 दंड के रूप में जुर्माना और/या कारावास का प्रावधान करते हैं. पर, प्रस्तावित कोड के तहत, कारावास का कोई दंड नहीं दिया गया है. इसके अलावा, प्रस्तावित कोड किसी भी न्यूनतम जुर्माने का प्रस्ताव नहीं देता है. अधिकतम जुर्माना केवल 50,000 रुपये का है. प्रस्ताव से कारावास की मौजूदा सजा हटा दी गई है. प्रस्तावित कोड केवल दूसरे अपराध पर कारावास की सजा देता है. इसके अलावा, अपराध पर समझौते को अनिवार्य बनाने के लिए एक नया खंड पेश किया गया है. यह एक खतरनाक खंड है जो नियोक्ता को कानून का अनुपालन किए बिना, सरकार को एक निश्चित राशि के भुगतान पर, अपराध से पूरी तरह मुक्त करने के प्रावधान को अनिवार्य बनाता है.

  6. समान पारिश्रमिक अधिनियम को कमजोर करना: मजदूरी के भुगतान के संबंध में लैंगिक भेदभाव को छोड़कर, पदोन्नति, व्यावसायिक प्रशिक्षण, स्थानांतरण जैसी सेवा शर्तों में भेदभाव आदि के सवाल को पूरी तरह से हटा दिया गया है जिनके लिए मौजूदा अधिनियम के तहत प्रावधान हैं. इसके अलावा, कोड समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 के तहत प्रदान की गई सलाहकार समिति के लिए भी प्रावधान नहीं करता है.

  7. काम के घंटे और ओवरटाइम: कोड के सेक्शन 13 के प्रावधानों के अनुसार सरकार घंटों की संख्या को तय कर सकती है, जो एक सामान्य कार्य दिवस होगा. लेकिन, श्रमिकों की कई श्रेणियों को सामान्य कार्य दिवस को तय करने के प्रावधानों से बाहर रखा गया है. तत्काल काम, तैयारी कार्य, अनिरंतर काम, समय पर काम आदि के नाम पर, कर्मचारियों को कितने भी घंटों तक काम करने के लिए मजबूर किया जा सकता है. प्रभावी रूप से 8 घंटे का कार्य दिवस अतीत की बात बन गया है. इसका मतलब यह है कि काम के ओवरटाइम को तय करने की मौजूदा परिभाषा प्रति दिन 8 घंटे और प्रति सप्ताह 48 घंटे से अधिक को ख़त्म किया जा रहा है. ओवरटाइम की स्पष्ट परिभाषा को हटाकर और सामान्य घंटे से अधिक सहायक और अनिरंतर कार्य के नाम पर अनुमति देकर, प्रस्तावित बिल अतिरिक्त भुगतान के बिना अनिवार्य ओवरटाइम का दरवाजा खोलता है.

  8. बोनस भुगतान अधिनियम को कमजोर करना: बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 में बोनस के भुगतान में नये प्रतिष्ठानों को छूट के प्रावधान को प्रस्तावित कोड में कई अस्पष्ट शर्तों के साथ पेश करके और आगे बढ़ाया गया है. परिभाषा में अब “परीक्षण के दौर में चल रही फैक्ट्री“ और “किसी भी खान का भावी चरण“ शामिल किया गया है. इसलिए, न केवल नए प्रतिष्ठानों को बोनस प्रदान करने से मुक्त किया गया है, बल्कि मौजूदा प्रतिष्ठान भी अपने कर्मचारियों को बोनस का भुगतान करने से छूट प्राप्त करने के लिए “परीक्षण का दौर“ या “भावी चरण“ पर होने के बहाने बच सकते हैं. और इन के लिए कोई समय सीमा नहीं है. कोड यह भी निर्धारित करता है कि “कंपनियों के लेखापरीक्षित खातों पर आम तौर पर सवाल नहीं किया जाएगा“, जिससे श्रमिकों या उनके संघों के बैलेंसशीट पर सवाल उठाने के अधिकारों को और यहां तक कि स्पष्टीकरण मांगने, बोनस अधिनियम में उल्लिखित न्यूनतम स्तर से ऊपर बोनस मांगते समय “अधिशेष“ का पता लगाने के लिए, को भी हटाया गया है.