सामाजिक सुरक्षा पर मसौदा श्रम कोड 17 कानूनों को रद्द करना चाहता है. पहला सवाल यह उठता है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ), कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) और विभिन्न कल्याण बोर्डों सहित पूरी तरह से कार्यात्मक प्रणाली को क्यों पूरी तरह से नष्ट किया जा रहा है, बिना किसी कारण के. वास्तव में भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड जिसे सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के साथ ही कार्यात्मक बनाया गया और उसने अब केवल काम करना शुरू किया है, को भी विखंडित किया जा रहा है.
दूसरा, कोड सरकार को प्रतिष्ठान के संबंध में सीमा तय करने की अनुमति देता है, जिस पर कोड लागू होगा, यानी आय और वेतन सीमा, और सरकार को किसी भी प्रतिष्ठान को कोड के दायरे से मुक्त करने की अनुमति भी देता है. यह स्पष्ट रूप से इस उद्देश्य को बचकाना बनाता है कि कोड सार्वभौमिक है.
साथ ही, कोड केंद्र सरकार को किसी भी नियोक्ता या नियोक्ता के वर्ग को सेस की लेवी से मुक्त करने की अनुमति देती है, जिससे गंभीर प्रश्न सामने आते हैं कि यह कैसे काम करेगा.
प्रवर्तन एजेंसी की प्रवर्तन और कार्यप्रणाली की विधि भी अस्पष्ट है. इसके अलावा निरीक्षण योजना जो सरकार द्वारा किनारे लगाये जा रही है वो निरीक्षकों की शक्ति को कम कर रही है. तब प्रवर्तन के संबंध में संदेह और ज्यादा बढ़ जाता है.
सामाजिक सुरक्षा पर कोड असल में, पूंजीपतियों को अपने मजदूरों के प्रति जवाबदेही से मुक्त करता है. यह कोड सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा को ही खत्म कर देने वाला है. सामाजिक सुरक्षा बुनियादी तौर पर मालिकों और साथ ही राज्य की जिम्मेदारी थी. लेकिन अब, जिम्मेदारी मजदूरों के कंधों पर डाली जा रही है जबकि उद्योगपति जो अपने मजदूरों की श्रम शक्ति के जरिये मुनाफा कमाते हैं मात्र मजदूरी देने के अलावा उनकी भलाई के लिये जिम्मेवार नहीं हैं. ‘‘विश्व विकास रिपोर्ट 2019’’ का पैरा 353 कहता है कि ‘‘जैसे ही लोग सामाजिक सहायता और बीमा व्यवस्थाओं के जरिये बेहतर ढंग से सुरक्षित हो जाते हैं, श्रम कानूनों को, जहां उचित हो, एक रोजगार से दूसरे में जाने के लिये लचीला बनाया जा सकता है’’. इस तरह, विश्व बैंक का सुझाव मालिकों को अपने मजदूरों की जिम्मेवारी से मुक्त करना है और अब यह जिम्मेवारी समाज और मजदूरों पर है. सामाजिक सुरक्षा का माॅडल जो विश्व बैंक द्वारा दिया जा रहा है, असल में पश्चिमी है जहां बेरोजगारों को भी तब तक सुरक्षा हासिल होती है जब तक उन्हें कोई रोजगार नहीं मिल जाय. काम के अधिकार से अधिक, आय के अधिकार से सामाजिक सुरक्षा की नीति संचालित होती थी. लेकिन मौजूदा कोड, गारंटीशुदा आय का प्रावधान नहीं करता है. अन्यों के लिये, यह न्यूनतम स्वास्थ्य बीमा हो – कुछ को सरकार से मिले और जो श्रम शक्ति का हिस्सा हों उन्हें खुद इस के लिये खुद पैसा जमा करना पड़े. विश्व बैंक रिपोर्ट यहां एक स्थिति है को मान रहा है जहां कि बढ़ा हुआ सामाजिक सुरक्षा कवरेज, कम लाभ के साथ ही सही, नियोक्ताओं द्वारा न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा लाभ न देने की भरपाई कर देगा.
दूसरी ओर, कोड नियोक्ताओं से योगदान के प्रतिशत को कम कर रहा है जबकि संगठित क्षेत्र के अनौपचारिक कर्मचारियों को भी अपनी मजदूरी का लगभग 17.5 प्रतिशत योगदान देना होगा और स्वरोजगार वालों को 20 प्रतिशत. सामाजिक सुरक्षा की परिकल्पना तीन परतों की हैः वृद्धों के लिए न्यूनतम सामाजिक सहायता, श्रम शक्ति के लिए सामाजिक बीमा और बचत एवं सेस के माध्यम से बनाया गया एक कोष.
दूसरी ओर करोड़ों की धनराशि जो पीएफ, कल्याण बोर्डों में है को विभाजित किया जाएगा और राज्य बोर्डों को सौंप दिया जाएगा, वह भी उन योजनाओं के आधार पर जिन्हें कोड में साफ़ नहीं कहा गया है लेकिन बाद में सरकारों द्वारा उन पर कभी निर्णय लिया जाएगा. केंद्रीय सरकार केवल राज्य बोर्डों के लिए फंड मैनेजर के रूप में कार्य करेगी और इस फंड एक हिस्सा सट्टा बाजार में निवेश करने का काम करेगी. ऐसी स्थिति मे करोड़ों पीएफ सदस्यों के पास सिर्फ वादे हैं, लेकिन उनकी आय को सुनिश्चित करने के लिए कोड में कुछ नहीं है. कोड में मौजूदा योजनाओं जैसे पीएफ, ईएसआई, कल्याण बोर्डों से संक्रमण सिर्फ वादों पर आधारित है कोई ठोस योजना पर नहीं.
100 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले उद्योगपति अपने वैकल्पिक सामाजिक सुरक्षा तंत्र चुनने के लिए स्वतंत्र हैं और श्रमिकों के साथ उनकी कमाई के साथ धोखाधड़ी होने पर भी इसके लिए उन्हें निर्दोष करार कर दिया जायेगा. सामाजिक सुरक्षा मित्र जो मूल रूप से मानदेय आधारित श्रमिक हैं को अधिक शक्तियों के साथ निहित किया गया है जिसमें समझौता कराना और सिफारिशें देना भी शामिल है, वहीं श्रम समझौता करवाने वाले समझौता अधिकारियों की व्यवस्था और निरीक्षण प्रणाली को लगभग नष्ट किया जा रहा है, बस कुछ दिखावा बनाए रखने के अलावा.
इस तरह, सरकार विश्व बैंक के निर्देशों का पालन पूर्ण रूप से कर रही है जो श्रमिकों के लिए नहीं पूंजीपतियों के लिए अनुकूल है. यह एक सामाजिक सुरक्षा कानून नहीं है बल्कि ऐसा कानून है जो पूंजीपतियों को सुरक्षा प्रदान करता है.